राज्य शासन के लिए गले की हड्डी बनी अंबेडकर स्मारक समिति

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महू से दिनेश सोलंकी की रिपोर्ट

महू: लगता है संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की महू स्थित जन्मस्थली और अंबेडकर विवि दोनों ही विवादित बनकर राज्य शासन के गले की हड्डी बन गए हैं। लंबे समय से अंबेडकर संस्थान और अब बने विश्वविद्यालय घोटालों और अवैध नियुक्तियों से चर्चित होते रहे हैं। वहीं अंबेडकर स्मारक समिति में पिछले 3 सालों से अनेक मनमानियों के आरोप लगते आ रहे हैं। कहा जाता है कि इसी के चलते पूर्व अध्यक्ष भंते संघशील आत्महत्या भी कर चुके हैं।
आज उक्त समिति के खिलाफ आर्थिक घोटालों की जांच की मांग करते हुए पुणे से चली मशाल यात्रा महू पहुंचकर धरना देने वाली है।
प्रमुख आरोपों में आर्थिक शिकायतें हैं इसे लेकर कहा जाता है की वर्तमान समिति साजिश के साथ काबिज होकर निजी संपत्ति के रूप में संचालन कर रही है, जबकि इस पवित्र स्थल को राष्ट्रीय धरोहर की श्रेणी में रखे जाने के बावजूद यहां पर मनमाफिक बंदरबांट करके समिति बनाई गई है। स्मारक को आर्थिक क्षति पहुंचाने, सदस्यता के नाम पर मनमाफिक चंदा वसूली करने और संस्था के बाइलॉज के विपरीत गतिविधियां संचालित करने का आरोप लगाया जा रहा है। इस मामले में पिछले दिनों पुणे में एक बैठक संपन्न हुई थी जिसके बाद से 15 फरवरी को मशाल यात्रा शुरू की गई।
मशाल यात्रा के साथ मध्यप्रदेश राज्य शासन को आर्थिक घोटालों की जांच करने की मांग की जाएगी।
यात्रा पुणे से शुरू होकर जलगांव, भुसावल, औरंगाबाद, नेपानगर, बुरहानपुर, खंडवा, सनावद, बड़वाह महेश्वर, मंडलेश्वर और धामनोद से होती हुई आज महू पहुंच रही है।

यहां पर इनकी सभा स्थानीय लोगों के साथ दोपहर 12:00 बजे होनी थी जिसकी अनुमति प्रशासन ने सभा स्थल मालवा कंपलेक्स चौराहा महू पर ना देते हुए दशहरा मैदान पर दी है। विरोध की यह लहर मशाल आंदोलन के साथ है जिसका नेतृत्व असलम बागवान, मोहन मार्शल, सचिन अल्हार, महेश चौबे,मोहन राव वाकोड़े आदि कर रहे हैं।

एक प्रश्न यह भी खड़ा हो रहा है कि कि डॉ भीमराव आंबेडकर का नारा समानता को लेकर था लेकिन समिति में पिछले कई सालों से एक ही समुदाय के लोगों को रखा जाता रहा है। जबकि कायदे से समिति संचालन में सभी जाति और वर्ग के लोगों को शामिल किया जाना चाहिए।