अमिताभ बच्चन… बस उपस्थिति ही काफी है
किसी फिल्म में अमिताभ कहते हैं कि हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है। फिल्म देखने के कई वर्षों बाद आज महसूस किया कि वे जहां खड़े होते हैं, वहां वास्तव में क्या होता है। इंदौर में काेकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के लोकार्पण पर अमिताभ आए। वे जया जी और अनिल व टीना अंबानी के साथ गाड़ी से उतरे। जैसे ही उन्होंने कार के बाहर कदम रखा आसपास खड़े लोगों के चेहरों पर चमक और होठों पर मुस्कान खिल गई। पेट में मानो तितिलियां मचलने लगीं। कोई इधर से झांक रहा है, कोई उधर से उनकी एक झलक पाने को बेताब है। और वे इन सब उथल-पुथल, भागदौड़ से निस्पृह खड़े हैं। किसी ने इशारा किया तो आगे बढ़ गए। लोकार्पण के लिए लगे स्टोन का अनावरण किया, फीता काटा और अस्पताल में दाखिल हो गए।
अब अमिताभ अस्पताल घूम रहे हैं। एक-एक मंजिल पर उन्हें ले जाया जा रहा है। डॉक्टर साथ हैं जो उन्हें हर हिस्से के बारे में बता रहे हैं। यहां ओटी कॉम्प्लेक्स होगा। एक ओटी 450 से 750 स्क्वेयर फीट का है। आईसीयू सबसे बड़ा है। इसमें फलां मशीन ऐसी लगी हैं, फलां पूरे सेंट्रल इंडिया में पहली है। स्टाफ कैसा है, डॉक्टर कैसे हैं, उपकरण कैसे हैं से लेकर लिफ्ट और वॉशरूप में बुजुर्ग मरीज न गिरे उसके लिए लगाई गई तकनीक तक से अमिताभ को वाकिफ कराया गया। इन सबके बीच अमिताभ बेहद अनुशासित ढंग से एक-एक कदम आगे बढ़ते रहे। न उनके चेहरे पर इस अनपेक्षित और थोपे गए ज्ञान को लेकर किसी तरह की झुंझलाहट थी न ही किसी तरह की उक्ताहट या बेचैनी।
वे किसी मासूम बच्चे की तरह एक-एक बात सुनते रहे और बीच-बीच में कुछ पूछते भी रहे, जिससे कहने वाले की रुचि भी बनी रहे। न कभी उनकी लय बिगड़ी न ताल गड़बड़ाया न चेहरे के भावों में ही कोई उतार-चढ़ाव देखने को मिला। वैसे ही सहज–सरल और सधे हुए नजर आए। गोया कह रहे हो कि भाई ये समय मैंने तुम्हारे नाम कर रखा है, अब इसका तुम चाहो जैसे इस्तेमाल करो। मैं अपने पूरे आभा मंडल के साथ तुम्हारे साथ खड़ा हूं।
अमिताभ पूरा अस्पताल घूमफिर कर मंचीय कार्यक्रम के लिए आ गए। मंच खाली था, सामने सोफे पर वे जया जी के साथ सहजता के साथ बैठ गए। लोगों में कोलाहल बढ़ना स्वाभाविक था। कहीं से घुस कर उनकी एक झलक देखने को बेकरार लोग सुरक्षाकर्मियों के लिए चुनौती बढ़ाते रहे, लेकिन उनके चेहरे के भाव नहीं बदले। इसी बीच दीप प्रज्ज्वलन की बारी आई। जया जी के साथ अमिताभ उठे और अपने हिस्से की बाती पर मोमबत्ती की लो लगाई। दीप जल उठा और वे उतनी ही सहजता से दो कदम पीछे हो गए। बाकी लोग करते रहे, एक-दूसरे को मोमबत्ती बढ़ाते रहे। अमिताभ जैसे यंत्रवत इस दृश्य को निहारते रहे। मंच पर बढ़ने की बारी आई तो उसी रुबाब से सीढ़ियां चढ़ने लगे। कांधों के यहां से थोड़ा झुकाव महसूस हुआ, लेकिन ऊर्जा में कोई कमी नहीं। सहजता से जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गए।
अब भाषणों का दौर शुरू हुआ। पहले डॉक्टर ने अस्पताल की खूबियां बताईं जो वे पहले ही देख आए थे और लाइव स्क्रीन पर दर्शकों ने भी देख ली थी। फिर भी दोहराई गईं, अस्पताल की चेयरमैन टीना अंबानी ने अपनी फिलासफी इंदौर आने की वजह से लेकर तमाम बातें शेयर की। वर्चुअली कोकिलाबेन भी शामिल हुईं और उन्होंने अस्पताल की शुरुआत पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए पूरी टीम को बधाई व शुभकामनाएं दीं। इस बीच अमिताभ वैसे ही किसी मलंग की भांति बैठे रहे। कोई कितनी देर बोल रहा है, उनके बारे में कुछ बोल रहा है, क्या बोल रहा है से बिल्कुल अप्रभावित से। अपनी ही लय और शैली में। अच्छी बात यह थी कि इस बीच भी न चेहरे पर कोई बेचैनी न बोरियत का कोई भाव। लग रहा था जैसे वे सभी की बात गौर से सुन रहे हैं। प्रेजेंटेशन का पन्ना-पन्ना आत्मसात कर रहे हैं। कभी दोनों हाथों को मिलाते तो कभी दोनों हाथों की अंगुलियों के पोरों को आपस में छुआते। अंगुलियों में पहनी अंगुठियों से उनकी आस्था झांकती तो कभी एक ही अंगुली में दो-दो अंगूठियों से थोड़ा संशय भी।
पैर एक जैसे सधे जमे रहे। बार-बार बदले नहीं, टिके रहे, भाव भी, पैर भी। सबकी सुनते रहे, बीच-बीच में टीना अंबानी से बात करते तो भी इन्वाॅल्व लगते। वे भाषण देने खड़ी हुई तो ये सम्मान में खड़े हुए। इनकी बारी से पहले जब डॉक्टर ने तारीफों के पुल बांधे तो माइक संभालते ही उन्हें रिक्गनाइज किया। कुछ ही मिनट बोले, उतना ही सधा और शब्द-शब्द, तराशा हुआ, जतन से गढ़ा हुआ। अस्पताल के लोकार्पण पर आए थे तो सेहत, अस्पताल और अंबानी परिवार के बाहर एक शब्द नहीं कहा। जितनी सहजता से बोले उतनी ही सहजता से जाकर फिर बैठ गए। इसके बाद शुरू हुई एक और चुनौती। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान काे भी वर्चुअल शामिल होना था। वे राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में थे। कार्यक्रम पूरा खत्म हो गया, यहां तक कि आभार प्रदर्शन भी हाे गया, मगर सीएम जुड़ नहीं पाए।
लोग उठकर जाने लगे, क्योंकि जिसे सुनने आए थे, उन्हें सुन चुके। लोगों के धैर्य जवाब दे रहे थे। अस्पताल वालों ने फिर अस्पताल का एक प्रेजेंटेशन चला दिया, ताकि समय काटा जा सके। लोग बेचैन थे, लेकिन अमिताभ उसी भावभूमि को जी रहे थे, जिसमें वे आए थे। इन सब से बिल्कुल अप्रभावित होकर वे प्रेजेंटेशन देखते रहे। अंतत: 15-20 मिनट बाद सीएम जुड़े। कार्यक्रम औपचारिक रूप से पूरा हुआ।
यहां फिर हजारों निगाहें अमिताभ पर टिकी थीं। फोटोग्राफर्स ने शोर मचाना शुरू किया तो वे मंच के एक कोने तक आ गए। फोटोग्राफर्स के कैमरे चमचमाने लगे। वे झुक गए, थोड़ी देर यूं ही पोज देते रहे। तभी एक मध्यमवय महिला लंबू-लंबू करते हुए मंच तक पहुंच गई। वे थोड़ा झिझके भी मगर फिर साथ फोटो खिंचवा लिया। अमिताभ मंच से विदा हो चुके थे, लेकिन उनकी उपस्थिति का हर क्षण जैसे वक्त के पन्ने पर हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
तब समझ में आता है कि आखिर कोई सदी का महानायक कैसे बन पाता है। पूरे समय कितनी विनम्रता, सहजता, सरलता और अनुशासन को जीता है। एक पल आपको अहसास नहीं होता है, न वे किसी तरह बताने की कोशिश करते हैं कि वे क्या हैं। न बार-बार घड़ी देखते हैं, न मोबाइल निकालते हैं, न किसी को इशारा करते हैं। किसी तरह का कोई स्टारडम दिखाने, झाड़ने का कोई प्रयास नजर नहीं आता। झरने की तरह वे बहते चले जाते हैं और उनके व्यक्तित्व का हर पहलू आपको सुखद अनुभूति देता चला जाता है। वास्तव में यही बड़प्पन है, जिसे जताने या दिखाने की जरूरत न पड़े। आप तो बस अपनी हस्ती को, अपनी मौजदूगी को जीते रहिए, बाकी दुनिया क्या हिसाब लगाती है, क्या फर्क पड़ता है।