ऋषि सुनक से जो उम्मीदें लगी, उनमें एक वाग्देवी प्रतिमा वापसी भी!

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ऋषि सुनक से जो उम्मीदें लगी, उनमें एक वाग्देवी प्रतिमा वापसी भी!

हेमंत पाल की त्वरित टिप्पणी

इंदौर के डेली कॉलेज में यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव के शुभारंभ में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने धार की भोजशाला में स्थापित वाग्देवी की प्रतिमा को लंदन से वापस लाने के गंभीर प्रयास की बात क्या कही, हिंदूवादी खुशी से भर गए। मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार लंदन से वाग्देवी (सरस्वती) की प्रतिमा को भारत वापस लाने की कोशिशें फिर से शुरू करेगी। मुख्यमंत्री को यह उम्मीद इसलिए जागी कि ब्रिटेन में एक भारतवंशी ऋषि सुनक सत्ता की सबसे ऊंची कुर्सी पर काबिज हो गया। सुनक के इस ऊंचे पद पर पहुंचने से भारत में कई तरह की उम्मीदें की जाने लगी है, ये भी उनमें से एक है।

ऋषि सुनक के PM बनने से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की उम्मीदें भी जाग गई। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार लंदन के संग्रहालय में रखी वाग्देवी (सरस्वती) की प्रतिमा को भारत वापस लाने की कोशिशें फिर से और गंभीरता से शुरू करेगी। हिंदू समुदाय की तरफ से वाग्देवी की प्रतिमा को ब्रिटेन से वापस लाने की मांग नई नहीं है, बरसों से की जा रही है। धार में हर साल बसंत पंचमी पर होने वाले भोज उत्सव के मंच से भी यही मांग दोहराई जाती रही है। अभी तक तो भारत को ऐसी कोई उम्मीद नजर नहीं आती थी, कि इस प्रतिमा को कभी वापस लाया जा सकता है।लेकिन, ऋषि सुनक के ब्रिटिश प्रधानमंत्री बनने के बाद आशा की जा रही है कि शायद वाग्देवी की प्रतिमा को वापस लाने का कोई रास्ता निकल सकेगा।

वाग्देवी की प्रतिमा से जुड़ा एक विवाद भी है, जो आज तक सुलझ नहीं सका। अपने शासनकाल के दौरान अंग्रेज इस प्रतिमा को 1875 में धार की भोजशाला से लंदन ले गए थे। माना जाता है कि राजा भोज ने वाग्देवी की प्रतिमा को भोजशाला परिसर में 1034 ईस्वी में स्थापित किया था। धार की भोजशाला केंद्र सरकार के अधीन एएसआई (भारतीय पुरातत्व विभाग) का संरक्षित स्मारक है।

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करीब डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेज धार की भोजशाला में स्थापित इस सफेद पत्थर की चार हाथ वाली सुंदर प्रतिमा को यहाँ से ले गए थे। प्रतिमा के नीचे 1034 ईस्वी सन अंकित हैं। पर, वाग्देवी की इस प्रतिमा का नाम बदलकर अंबिका कर दिया गया। शिलालेख पर तीन लाइनें और लिखी हैं, लेकिन उसके अक्षर टूट गए, जिन्हें पढ़ा नहीं जा सकता।

हिंदू धर्मावलंबियों का मानना है कि धार की भोजशाला वास्तव में वाग्देवी (विद्या की देवी सरस्वती) का मंदिर है। जबकि, मुस्लिमों का मानना है कि यह जगह कमाल मौला की मस्जिद है। विवाद के बाद भोजशाला में बरसों तक कोई धार्मिक गतिविधियां नहीं हुई। सिर्फ हिंदुओं को साल में एक बार भोज उत्सव के दौरान भोजशाला में जाने की इजाजत थी। इसी तरह मुस्लिम इस परिसर के बाहर हर साल उर्स का आयोजन करते हैं। लेकिन, करीब दो दशक पहले केंद्र सरकार ने व्यवस्था दी, कि भोजशाला में हर मंगलवार को पूजा होगी और शुक्रवार को मुस्लिम नमाज अता कर सकते हैं। दोनों समुदायों के इस स्थान को लेकर अपने-अपने दावे हैं। यही कारण है कि इस विवाद को आज तक सुलझाया नहीं जा सका। लेकिन, प्रतिमा को वापस लाने की मांग कभी कमजोर नहीं पड़ी। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शनिवार को कहा कि मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि लंदन के संग्रहालय में रखी वाग्देवी की प्रतिमा को भारत वापस लाने की पहल प्रभावी ढंग से शुरू की जाएगी, तो हिंदू धर्मावलंबी उत्साह से झूम गए।

ब्रिटिश म्यूजियम लंदन के ग्रेट रसल स्ट्रीट पर है, जहां यह प्रतिमा रखी है। इस संग्रहालय में दुनियाभर से लाई गई प्रागैतिहासिक वस्तुएं, प्रतिमाएं और ऐतिहासिक महत्व की चीजें देश के हिसाब से रखी गई है। चीन और भारत के सेक्शन आमने-सामने हैं। उस भव्य हॉल में भारत से लाई गई कई वस्तुएं और प्रतिमाएं रखी हैं। 500 से अधिक प्रतिमाओं के बीच मां वाग्देवी की प्रतिमा भी कांच के बड़े बॉक्स में है। इस संग्रहालय में मां वाग्देवी की प्रतिमा के पास ही दुर्गा देवी और गणेशजी की प्रतिमा के साथ भगवान महावीर, बुद्ध की प्रतिमाएं भी रखी है।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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