Amul Milk: अब तो छठी का दूध याद आ गया

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पूरा देश अडाणी और अमेरिका में उलझा हुआ है और इधर देश में सबसे ज्यादा विश्वसनीय दुग्ध ब्रांड अमूल का फुलक्रीम दूध तीन रूपये लीटर मंहगा हो गया. इस खबर से आपको याद आया हो या न आया हो, लेकिन मुझे तो छठी का दूध याद आ गया है. मुझे अब लगने लगा है कि सरकार की गुप्त योजना में दूसरों की तरह ये गुजराती अमूल भी शामिल है.
दूसरों का तो पता नहीं लेकिन पिछले 63 साल से तो मेरा और अमूल दूध का रिश्ता है. अमूल का दूध पी-पीकर ही हमारी पीढ़ी बड़ी हुई थी और आज भी महानगरों में रहने वाले अधिकाँश परिवार दुग्ध के स्थानीय ब्रांडों के बाद अमूल के दूध और दूसरे उत्पादों को पसंद करते हैं. अमूल का दूध माँ के दूध जैसा तो बिलकुल नहीं होता लेकिन माँ के दूध से कुछ कम भी नहीं होता. कुपोषण के शिकार मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए तो अमूल का दूध ही अमृत जैसा माना जाता रहा है. घरों में भी हुए सरकारी अस्पतालों में भी.

मुझे आम बजट के बाद सबसे आघात पहुँचाने वाली खबर अमूल के दूध के मंहगे होने की ही मिली. आप सच मानिये कि मुझे आयकर की सीमा में 50 हजार रूपये के इजाफे की जितनी खुशी नहीं हुई उससे कहीं ज्यादा दुःख अमूल दूध के तीन रूपये लीटर मंहगे होने का हुआ. मैं बढ़ी हुई आयकर छूट का लाभ नहीं ले सकता, क्योंकि मेरी आमदनी न पहले ढाई लाख सालाना थी और न इस साल तीन लाख सालाना होने वाली थी, लेकिन अमूल का दूध मुझे कल भी उपयोगी लगता था और आज भी जरूरी लगता है और इसे ही मंहगा कर दिया गया है.

अमूल ने दूध के दाम 3 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दिए हैं. दूध के ये बढ़े हुए दाम आज से लागू हो गए हैं. अमूल कंपनी ने एक बयान जारी कर इसकी जानकारी दी. अमूल फुल क्रीम दूध की कीमत अब 66 रुपये हो गई है. वहीं आधा लीटर के लिए 33 रुपये चुकाने होंगे. अमूल ताजा का एक किलो का पैकेट 54 रुपये का होगा और आधा लीटर 27 रुपये में मिलेगा. भैंस का ए-2 दूध अब 70 रुपये प्रति किलो मिलेगा.श्रीमती जी ने बताया कि पिछले 1 साल में ‘8 रुपये’ दाम बढ़े हैं.

अमूल कि दूध कि दाम बढ़ने कि लिए मैं क्या, कोई भी केंद्र सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकता, लेकिन विपक्ष यही कर रहा है. विपक्ष का काम है सो उसे करना चाहिए.

सब जानते हैं कि अमूल भारत का एक दुग्ध सहकारी आन्दोलन है. अमूल की जड़-मूल आणंद (गुजरात) में है। मैं गर्व भी महसूस करता हूँ कि यह एक ऐसा विश्वसनीय भारतीय ब्रांड है जो अपने कामयाबी कि मूल में सहकारिता को जोड़े हयात है.

अमूल को गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड नाम की सहकारी संस्था बनाती है। गुजरात के करीब 26 लाख दुग्ध उत्पाद दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड के अंशधारी (मालिक) हैं।

हमारे लंकेश पंडित जी हमें बताया करते थे कि अमूल, संस्कृत के अमूल्य का अपभ्रंश है. अमूल्य का अर्थ है- “जिसका मूल्य न लगाया जा सके।” अमूल (आणंद सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ), की स्थापना 14 दिसम्बर, 1946 में एक डेयरी यानि दुग्ध उत्पाद के सहकारी आन्दोलन के रूप में हुई थी। जो जल्द ही घर घर मे स्थापित एक ब्राण्ड बन गया अमूल दूध कि अलावा दूध का चूर्ण , मक्खन (बटर), घी, चीज, दही, चॉकलेट, श्रीखण्ड, आइस क्रीम, पनीर, गुलाब जामुन और स्वादिस्ट न्यूट्रामूल भी बनाता है. जाहिर है की जब दूध के दाम बढ़े हैं तो अब अमूल कि सभी उत्पादों कि दाम भी बढ़ेंगे ही. सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर सकती.

देश में श्वेत क्रान्ति के जनक जाने वाले वर्गीज कुरियन की आत्मा भी मुमकिन है कि इस मूल्य वृद्धि से खुश न हो लेकिन वे भी होते तो कुछ न कर पाते. अनमोल चीज सस्ते में मिलना ही नहीं चाहिए. देश में अमूल की उत्पादों की खपत को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन दुःख की बात ये है की ये मूल्य वृद्धि गुजरात पर लागू नहीं होगी. ये भेदभाव है.हमारा संविधान भी कहता है कि भेदभाव मत करो किन्तु संविधान की मानता कौन है? संविधान तो केवल शपथ ग्रहण के समय काम आता है.

दरअसल अमूल कि दाम बढ़ने से मै इसलिए भी चिंतित हूँ क्योंकि मैंने हमेशा सुना है कि -‘अमूल दूध पीता है इंडिया’ अब इंडिया इतना मंहगा दूध कैसे पियेगा? और अगर पियेगा तो इंडिया की माली हालत का क्या होगा? मुझे नहीं पता कि देश कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री अमूल का दूध पीते हैं या नहीं लेकिन मैं जानता हूँ कि अमूल का दूध आँख वाले भी पीते हैं और बिना आँख वाले भी. भक्त भी पीते हैं और अभक्त भी. इसलिए सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए. जनहित और राष्ट्रहित में ये आवश्यक काम है. मुझे हमेशा लगता है कि जो लोग अमूल का दूध नहीं पिएंगे वे सस्ती शराब की और उन्मुख हो सकते हैं.

अमूल अपने विश्वसनीय दूध और अन्य दुग्ध उत्पादकों की वजह से ही मुझे पसंद हो ऐसी बात नहीं है. मुझे अमूल के विवादास्पद विज्ञापन भी बहुत पसंद हैं. आपको ज्ञात ही है कि अमूल लगभग हर हफ्ते नए ताजातरीन मुद्दों पर विज्ञापन लेकर आता है. पिछले साल अमूल ने चीन में फैले खतरनाक कोरोना वायरस पर विज्ञापन तैयार किया था तो हंगामा हो गया था. अमूल के विज्ञापन दशकों से भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य का हिस्सा रहे हैं.

अमूल कि रोचक विज्ञापनों की शुरुआत 1966 में हुई और होर्डिंग्स पर अमूल की नटखट लड़की याददाश्त पर अमिट छाप छोड़ने लगी- वह हमेशा विज्ञापन में रहती है, और ज्यादा कहे बगैर उत्पाद के संदेश को लोगों तक पहुंचा देती है और ऐसा करते हुए अक्सर मक्खन का जिक्र तक नहीं होता. बहरहाल अमूल कि विज्ञापनों कि साथ ही देश को अमूल के दूध की भी जरूरत है. इसे मंहगा होने से कोई बचाये तो मजा आ जाये.