Analysis Before Election:Part 9:क्या सिंधिया और भाजपा दोनों एक—दूसरे से असहज हैं
जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के कारण भारतीय जनता पार्टी को मध्यप्रदेश में फिर से सरकार बनाने का मौका मिला,क्या वही सिंधिया भाजपा में खुद को सहज महसूस नहीं कर पा रहे? यही हाल भाजपा का भी है। भाजपा का ठेठ कार्यकर्ता भी सिंधिया को लेकर अचकचा रहा है। इन हालात में नवंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उन्हें लेकर असमंजस बना हुआ है। यह जारी रहा तो भाजपा-सिंधिया दोनों के लिये मुश्किलें तो खड़ी होंगी। ऐसा लग रहा है, जैसे परिवार वालों ने दूल्हा-दुल्हन को समझा-बुझाकर शादी तो करा दी, किंतु पहले ही दिन से दोनों के बीच कभी अबोला तो कभी बोलाबोल चल रही है। आशंका यही है कि कहीं यह शादी बेमेल न करार दे दी जाये।
यूं देखा जाये तो सिंधिया का भाजपा में शुरुआती दौर में स्वागत तो नई दुल्हन की तरह गर्मजोशी से हुआ,किंतु समय बीतने के साथ ही इस बहू से मोहभंग होता नजर आया। वैसे सिंधिया ने भाजपामय होने में कोई कसर नहीं रखी, लेकिन ये शायद तात्कालिक जोश या सौजन्य रहा हो। वे नागपुर में संघ कार्यलय गये। भोपाल,इंदौर,दिल्ली व अन्य शहरों में दौरे के समय भाजपा कार्यालय और प्रमुख नेताओं के घर भी जाते रहे। बतौर पारितोषिक सिंधिया को राज्यसभा में लेकर केंद्र में मंत्री पद भी दिया गया। मोदीजी से मिलने सिंधिया सपरिवार भी गये।
इस तरह की तमाम रस्में निभाई जाती रहीं, लेकिन दिल मिलने का आत्मीय भाव तीन साल बाद भी यदि प्रकट नहीं हो पा रहा तो गलती अकेले सिंधिया के मत्थे नहीं मढ़ी जा सकती। भाजपा,उसके प्रमुख नेता और नीचले स्तर के कार्यकर्ताओं ने भी कुछ तो कंजूसी दिखाई है। कोई भी यह याद रखना नहीं चाहता कि 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले मप्र में फिर से भाजपा की सरकार सत्तासीन करवाने का बड़ा काम टीम सिंधिया ने अंजाम दिया है। इसका स्वाभाविक लाभ उसे चुनाव में मिल सकता है । अब यदि भाजपा इस लाभ को पाने में सफल नहीं होती है तो अकेले सिंधिया पर अंगुली उठाना तो तर्क संगत नहीं माना जा सकता।
भाजपा कार्यकर्ताओं की आम शिकायत यह है कि सिंधिया समर्थक मंत्री अभी-भी कांग्रेसी मानसिकता से ही काम कर रहे हैं। वे कांग्रेसियों को काम तो आसानी से कर देते हैं, लेकिन भाजपा वा्लोँ से बेरूखी जताते हैं। एक बड़ी शिकायत सिंधिया समर्थक मंत्रियों के कथित भ्रष्टाचार को लेकर भी है। भोपाल से लेकर तो दिल्ली तक इन शिकायतों का पुलिंदा भेजा गया है। अभी तो इसे बस्ताबंद किया जाता रहा है, लेकिन कभी ब्रह्मास्त्र की तरह उपयोग किया जा सकता है।
भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच सर्वाधिक दुविधा जिस बात को लेकर बनी हुई है, वह है आगामी चुनाव में प्रत्याशी चयन का मुद्दा। 2018 में जिन भाजपा प्रत्याशियों को पराजित कर कांग्रेस के ये प्रत्याशी विजयी हुए थे, उन्हें बगावत के बाद हुए उप चुनाव में भाजपा प्रत्याशी बनाकर उतारा गया और वे सफल भी हुए। तब तो सरकार की कीमत पर मूल कार्यकर्ता मान गये, लेकिन अब वे उन स्थानों से पुराने प्रत्याशियों को ही मैदान में देखना चाहते हैं या मूल भाजपा के व्यक्ति को। यह मुद्दा भाजपा के प्रादेशिक और राष्ट्रीय नेतृत्व के लिये फांस बनता जा रहा है। वह एकसाथ सभी सिंधिया समर्थकों के टिकट काट नहीं सकता । ऐसे में जहां पर इन्हें फिर से प्रत्याशी बनाया जायेगा, वहां पुराने कार्यकर्ता का नाराज होना,घर बैठ जाना, बगावत करना या सिंधिया समर्थकों को निपटाने का खतरा खड़ा हो सकता है।
बीच में पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के बेटे और खुद पूर्व मंत्री रहे दीपक जोशी का कांग्रेस में जाना,भाजपा के पूर्व विधायक द्वय सत्यनारायण सत्तन व भंवरसिंह शेखावत का बगावती बिगुल बजाना,अटल बिहारी वाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा के तीखे तेवर,वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा का नसीहत देना जैसे अनेक मसले उठते रहे, जो नेतृत्व को बेचैन किये हुए हैं। इस दरम्यान कद्दावर नेता जयंत मलैया के बेटे की घर वापसी कराने जैसे आपदा प्रबंधन के काम भी हुए, किंतु ये कितने असरकारी होंगे, कहा नहीं जा सकता।
इन दिनों ज्योतिरादित्य सिंधिया की अपेक्षाकृत कम सक्रियता भी कुछ कह रही है। यह भी सही है कि उनके अनेक विधायक अपने क्षेत्र में भारी नाराजी झेल रहे हैं । ऐसे में सिंधिया भी उनके टिकट कटने से बचाने में जोर तो नहीं लगा पायेंगे। वे खुद भी शायद यह चाहें कि उनके समर्थक की बुरी तरह हार हो,इससे बेहतर है कि उसका टिकट कट जाये, ताकि इज्जत बच जाये, बंदी मुट्ठी लाख की बनी रहे और बाद में सरकार बनने पर वे समर्थकों को कहीं समायोजित करने का दबाव बना सकें।
एक बात तो तय है कि न तो सिंधिया कांग्रेस वापसी कर सकते हैं, न ही इतनी जल्दी नई पार्टी बना सकते हैं। उनके लिये फायदे का सौदा तो भाजपा में रहना ही है।यह तो देखा ही जायेगा कि सिंधिया और उनकी टीम विधानसभा चुनाव में कितना कमाल दिखा सकते हैं। साथ ही 2024 के चुनाव में राष्ट्रीय नेतृत्व उन्हें मप्र में कहीं से प्रत्याशी बनाकर उनका जनाधार भी टटोल सकता है। इन दोनों अग्नि परीक्षा में सिंधिया खरे उतर गये तो राजनीति का भव सागर पार करना भी आसान हो जायेगा।