Anand Bansal : भारत को मिले ‘ऑस्कर’ से इंदौर का सीना भी गर्व से चौड़ा!
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अशोक जोशी की रिपोर्ट
Indore : इस बार भारत को मिले ऑस्कर अवॉर्ड से मध्य प्रदेश और खासकर इंदौर भी गौरवान्वित और रोमांचित है। क्योंकि, ऑस्कर में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म की श्रेणी में बाजी मारने वाली ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ के साथ इंदौर निवासी और युवा सिनेमेटोग्राफर आनंद बंसल का नाम जुड़ा है उन्होंने अपने प्रकृति प्रेमी परिवार के प्रकृति प्रेम को कैमरे में कैद कर ‘द एलिफेंट व्हिसपर्स’ को दर्शनीय बनाया है। 39 मिनिट का यह वृत्त चित्र मुदुमलाई नेशनल पार्क में फिल्माया गया जो हाथी के एक अनाथ बच्चे रघु की देखभाल में अपना जीवन समर्पित करने वाली दम्पत्ति बोम्मन और बेली की दिल को छूने वाली कहानी कहता है।
आनंद बंसल के लिए यह फिल्म इसलिए भी खास है कि उनके करियर में योगदान देने वाले उनके ताऊजी और इंदौर के व्यवसायी महेश बंसल स्वयं प्रकृति प्रेमी है। उन्होने अपने घर को एक प्राकृतिक स्थल बना रखा है और पेड़ पौधों की देखभाल और संरक्षण के प्रति उनके समर्पण से पूरा परिवार प्रभावित है। आनंद को भी यही प्रकृति प्रेम ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ के फिल्मांकन में काम आया। उन्हें इसके लिए फिल्मांकन करना ऐसा ही लगा जैसे वे अपने परिवार की परम्परा को आगे बढ़ाने के लिए प्रकृति को अपने कैमरे में फ्रेम दर फ्रेम कैद कर रहे हैं।
आनंद के लिए ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ का ऑस्कर जीतना किसी रोमांच से कम नहीं है। इस प्रोजेक्ट की योजना कोई पांच साल पहले तैयार हुई थी। उसी दौरान एक मित्र के माध्यम से आनंद और फिल्म की निर्देशिका कार्तिकी की मुलाकात हुई। दोनों साथ बैठे और बात करते करते इस फिल्म की योजना बना बैठे।
‘द एलिफेंट व्हिसपर्स’ के फिल्मांकन के दिनों की याद करते हुए आनंद बताते हैं कि उनके लिए यह समझना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था कि हाथी या किसी भी जानवर के सामने किस तरह से व्यवहार किया जाना चाहिए। फिल्म का हाथी बहुत छोटा था ,वह बच्चों की तरह हरकतें भी करता था। इसलिए उनके साथ उसी तरह व्यवहार करने के साथ साथ इस बात का खास ध्यान रखा गया कि शूटिंग के दौरान वह सहज रहे और उन्हें किसी तरह की तकलीफ न हो। यह अनुभव उनके लिए बहुत शिक्षात्मक रहा। वह मानते हैं यह अनुभव आगे उन्हें एक परिपक्व सिनेमेटोग्राफर बनने में भी बहुत मदद करेगा।
26 वर्षीय आनंद को कैमरे से परिचय सबसे पहले उनके स्व पिता ने कराया, जिन्हें फोटोग्राफी से बेइंतहा प्यार था। कम उम्र में अपने पिता से विछोह के बावजूद उनकी विरासत, फोटोग्राफी के शौक और गुण को मन में बसा कर वे बचपन से ही फोटोग्राफी के लिए तैयारियां करने लगे। इस काम में उनके ताऊजी-ताईजी ने न केवल उनका उत्साहवर्धन किया, बल्कि दुनिया के बेहतरीन कैमरे उन्हें लाकर दिए और डेली कॉलेज की पढाई के बाद मुंबई स्थित व्हिसलिंग वुड्स फिल्म स्कूल में सिनेमेटोग्राफी का कोर्स भी करवाया।
आनंद ने ‘द एलिफेंट व्हिसपर्स’ से पहले ‘द रूम विद नो विंडो’ का फिल्मांकन भी किया। इस फिल्म को जॉर्जिया की राजधानी थीबिलिस में हुए इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में विशेष पुरस्कार भी मिला। इस समय आनंद फिल्मकार अचल मिश्रा की फिल्म पर काम कर रहे हैं। इससे पहले वे उनकी दो फिल्मों ‘गमक घर’ और ‘धुईन’ पर काम कर अपनी पहचान बना चुके हैं। यह दोनो फिल्में अंतर्राष्ट्रीय सराहना प्राप्त कर चुकी हैं। इन्हें पिछले साल म्यूजियम आफ आर्ट न्यूयॉर्क में दिखाया गया था। इसके अलावा वह नेटफ्लिक्स के दो प्रोजेक्ट पर भी काम रहे हैं, जो इस साल के अंत तक प्रदर्शित होंगे।
उन्हें सिनेमेटोग्राफी का सबसे बडा पाठ ‘द एलिफेंट व्हिसपर्स’ से सीखने को मिला। क्योंकि इसके सितारे कोई फिल्मी कलाकार नहीं, बल्कि वन्य प्राणी थे जिन्हे कैमरे में कैद करने के साथ उनके मनोभाव को कैद करना चुनौतीपूर्ण काम तो था ही साथ ही घने जंगल के अंदर जाकर शूटिंग करना और दक्षिण भारत के लोगों के साथ तालमेल बिठाना भी आसान नहीं था। आनंद ने इसमें धैर्य को अपना हथियार बनाया और पांच साल तक लगातार धैर्यपूर्वक कैमरे के पीछे खड़े रहकर अपने साथी सिनेमेटोग्राफर के साथ मिलकर इसे दर्शनीय बनाया।
उनका मानना है कि किसी भी फिल्म के निर्माण में कथानक और उससे जुड़े संदेश को सम्प्रेषित करने में कैमरा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसी बात को ध्यान में रखकर उन्होने पूरी ईमानदारी के साथ कैमरे का प्रयोग किया और इस बात को सीखा कि बच्चों और अभिभावकों के बीच सरलता और विनम्रता के क्या मायने होते है। यही संस्कार हमें आगे की राह दिखाते हैं। उनका मानना है कि अभी तक हमारे देश में वृत्त चित्रों के निर्माण को दोयम दर्जे की तरह माना जाता रहा है । लेकिन ऑस्कर पुरस्कार जीतने के बाद अब यह धारण बदलेगी और इस विधा से जुड़े फिल्मकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने के अब ज्यादा अवसर मिलेंगे।