इन दिनों चारों ओर गणेश उत्सव की धूम है , दस दिनों तक पुरे देश में “गन्नू भैय्या” के कई रूप देखने को मिलेंगे | यद्यपि कोरोना महामारी के कारण गणपति पांडालों में कुछ सावधानियाँ बरतने के निर्देश हैं , लेकिन उत्सवों की चहल पहल तो रहेगी | हमारे देश में गणेश उत्सव के सार्वजानिक रूप से मनाने की शुरुआत शिवाजी महाराज के जमाने से ही हो गयी थी , पर मुख्यतः महाराष्ट्र में मनाये जाने वाले इस उत्सव को पूरे देश में धूमधाम से मनाने की परंपरा श्री बाल गंगाधर तिलक ने 1894 में आरम्भ की थी | ये उनके स्वराज के सपने को जन जन से जोड़ने का बेमिसाल मन्त्र था |
गणेश विघ्न हर्ता भी हैं और विघ्न कर्ता भी , देवासुर संग्राम में देवो के लिए वे विघ्न हर्ता थे तो असुरों के लिए विघ्न कर्ता | गणेश के पूरे विन्यास के बड़े गूढार्थ हैं | गजमुख के एक एक अंग की अपनी एक व्याख्या है , सूंड जो है वो शक्ति और क्षिद्रान्वेषण के बीच साम्य का प्रतीक है , बड़े कान जो हैं वे ये दर्शित करते हैं कि बुद्धिमान व्यक्ति सबकी सुनता है , एरोगेंट नहीं होता | गणपति अपने भक्तों की एक भी पुकार अनसुनी नहीं करते , उनकी हस्तमुद्राओं की भी अलग अलग व्याख्या है | यहाँ तक कि उनका वाहन जो कि मूषक है , उसका भी निहितार्थ है | चूहा सबसे लालची जीव है और लालच को बुद्धिमान व्यक्ति अपने नियंत्रण में रखता है जो उसकी जिजीविषा के रूप में उसे मंजिल तक तो ले जाए पर भटकाए न |
भगवान गणेश के अनेक रूपों का विभिन्न कवियों और लेखकों ने तरह तरह से महिमा गान किया है , और दिलचस्प बात यह कि अपने आराध्य का प्रेम भी गणपति से ही माँगा है , यानी जो कुछ भी आप चाहते हो वो बिना बाधा के सहज संभाव्य हो तो गणपति की कृपा ज़रूरी है | प्रथमेश की सबसे प्रसिद्द आरती है ; जय गणेश – जय गणेश -जय गणेश देवा , इसकी एक गूढ़ बात देखें | ये प्रसिद्द आरती महाकवि सूरदास ने लिखी है , तो पूरी वंदना तो वे गणपति की ही करते हैं , यानी कि अंधों को आँख देने की , कोढ़ियों को सुन्दर काया प्रदान करने की आदि आदि पर आखिर में कहते हैं ” सूर श्यामशरण आये सफल कीजे सेवा ” यानि आखिर में अपने घनश्याम की कृपा गणपति से मांग लेते हैं | चलिए महाकवि तुलसी दास की रचित आरती देखें “गाइए गणपति जग वंदन , शंकर सुवन भवानी जी के नंदन …….” | कितनी प्रसिद्द आरती है ? पूरी महिमा कितने सुन्दर भावों में व्यक्त है पर आखिर में अपने राम की कृपा गणपति से मांगते हैं ” मांगत तुलसीदास कर जोरे , बसहु राम सिय मानस मोरे “|
उज्जैन में चिंतामन गणेश मंदिर है , जहाँ बिना मुहूर्त के विवाह सम्पन्न कराये जाते हैं , यानी सारे विघ्नों के देवता के समक्ष ही विवाह हो रहा है तो काहे का डर | चिंतामन गणेश मंदिर का यह रिवाज़ भी बड़ा प्रसिद्ध है , कि किसी को कुछ मनोवांछा है तो वो मंदिर में जाकर उल्टा स्वस्तिक बना देता है , और जब कामना पूरी हो जाए तो जाकर भगवान को प्रणाम कर सीधा स्वस्तिक बना देता है | वर्ष 1999 की बात है , श्री कमठान डिप्टी कलेक्टर के रूप में पदोन्नत होकर उज्जैन पधारे | मैं उन दिनों वहाँ ए डी एम के पद पर था , सो कई बार आकर मेरे पास बैठ जाते | उनके हावभाव से मुझे लगा उज्जैन आकर वे प्रसन्न नहीं हैं | मैंने कारण पूछा तो कहने लगे सर मेरी पूरी नौकरी ग्वालियर-चम्बल संभाग की है तो ये क्षेत्र मुझे अजीब लगता है , आप कृपा करके मेरा तबादला वापस ग्वालियर के इलाक़े में करवा दो | मैंने कहा भाई मेरी इतनी क्षमता तो नहीं है की ऐसे मनोवांछित परिवर्तन करा सकूँ , पर उज्जैन में चिंतामन गणेश मंदिर है , वहाँ जाकर तुम उलटा सांतिया बना आओ शायद गणपति तुम्हारी सुन लें | कमठान साहब जी सर कह कर उठ कर चल दिए , और मैं भी भूल भाल गया | एक सप्ताह बाद कमठान जी दमकते चेहरे से मेरे कमरे में घुसे , आते ही मेरे पैर छुए और बोले सर मेरा ट्रान्स्फ़र मुरैना हो गया है , अभी गणेश जी के मंदिर में उल्टा स्वस्तिक सीधा करके सीधा आपके पास ही आया हूँ , कृपया मुझे रिलीव करवा दें | मैंने उनकी दरखास्त को स्थापना शाखा में मार्क करते हुए सोचा , मैंने तो जनश्रुति के आधार पर सलाह दे दी थी , ये तो सचमुच चमत्कार हो गया | तो दोस्तों जब महाकवियों से लेकर अफ़सर तक अपनी वाँछा की पूर्ति के लिये गणपति की शरण लेते हैं तो आप क्यों संकोच कर रहे हैं , माँगिये बप्पा से जो चाहिये |
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