अपनी भाषा अपना विज्ञान: समुद्र विज्ञान में नदियों  का महत्व

अपनी भाषा अपना विज्ञान: समुद्र विज्ञान में नदियों  का महत्व

ताल मिले नदी के जल में,

नदी मिले सागर में,

सागर मिले कौन से जल में

 कोई जाने ना जाने

अपनी भाषा अपना विज्ञान: समुद्र विज्ञान में नदियों  का महत्व

सभी नदियों को सागर से मिलना नसीब नहीं होता। अफ्रीका में कुछ नदियां हैं जो रेगिस्तान की दिशा में बहती हैं और वही सूख कर मर जाती हैं। कुछ नदियां है जो समुद्र में ही बनती है, बहती है, मिलती हैं और कभी नहीं मिटती है। इन्हें Oceanic Currents कहते हैं। महासागरीय धाराएं। स्कूल में भूगोल की किताब में एक Gulf Stream के बारे में पढ़ते थे। उत्तरी अमेरिका के अटलांटिक किनारे के समीप मेक्सिको की खाड़ी से निकलकर गर्म पानी की यह धारा पश्चिमी यूरोप, इंग्लैंड और नार्वे तक के तटों को गर्म रखती है। सर्दियों में भी जमने नहीं देती। साल भर सामुद्रिक पहुंच खुली रख पाने के कारण यूरोपीय देशों को उपनिवेश फैलाने में मदद मिली।

इंसान की गतिविधियों के कारण धरती पर होने वाले जलवायु परिवर्तनों के बारे में हम हमेशा पढ़ते रहते हैं, चिंतित होते हैं, कुछ करो  कुछ करो की गुहार लगाते हैं या मन मसोसकर रह जाते हैं।

मनुष्य की कारगुजारियों के एक और पहलू पर हम आज चर्चा करने जा रहे हैं।

अपनी भाषा अपना विज्ञान: समुद्र विज्ञान में नदियों  का महत्व

चित्र: सागर प्रदूषण: यदि कोलंबस आज के जमाने में यात्रा कर रहा होता तो कहता –

“बधाई हो, ऐसा लगता है कि हम किसी सभ्यता के किनारे के समीप पहुँच रहे हैं।“

पूरी धरती पर लगभग 6000 नदियां, प्रतिदिन अपना पानी और उसके साथ गाद, मिट्टी, रेत, खाद्य पदार्थ [और पिछले 200 वर्षों से प्रदूषक तत्व भी] समुद्र में उलीचती रही है।

“सागर तो अनंत है। उसका पेट बहुत बड़ा है। वह सब को अपने अंदर भर सकता है।“

 ऐसा हम मानते रहे हैं। बात इतनी आसान नहीं है।

प्रदूषक तत्वों की भरमार से जलधि की सेहत बिगड़ चुकी है। इसके ठीक विपरीत दिशा में एक और चिंताजनक दुष्परिणाम हो रहा है; मनुष्य जाति के विकास के कारण।

‘ पोषक तत्वों की कमी। ‘

समुद्र को पोषक तत्व नदियां प्रदान करती है। बड़ी नदियों के डेल्टा-मुहानों के  सेटेलाइट चित्रों को जूम करके गौर से देखिए। मीलों दूर तक नदियों का मट मैला पानी दिखाई पड़ता है। यह अच्छी बात है। ऐसा होना चाहिए। खारे और मीठे जल के इन विशालकाय मिलन स्थलों में समुद्री जीवों के लिए प्रजनन, भोजन और डार्विनीयन विकास की अनंत संभावनाएं मौजूद रहती है।

क्रिस्टोफर कोलंबस पुर्तगाल के तट से निकलकर अटलांटिक महासागर पार करके अमेरिका की खोज में था तब प्रतिदिन सुबह वह समुद्र के जल को अंजुली में भर कर चखता था। हर दिन खारा का खारा। एक दिन वह खुशी से चिल्ला उठा। जमीन शायद पास में है। पानी थोड़ा मीठा है। कम खारा है। जरूर कोई बड़ी नदी अपने आपको उंढेल रही है।

नदियों की देन में नाइट्रोजन और फास्फोरस तत्व प्रमुख होते हैं। फाइटोप्लांकटन नामक सूक्ष्म प्राणी इन्हीं पर जिंदा रहते हैं। जो नन्हीं मछलियों का आहार बनते हैं।

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चित्र: PHYTOPLANKTONS

जंगल के कानून और मत्स्य न्याय के चलते “बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है”।

सामुद्रिक आहार पिरामिड के शिखर पर बड़ी शार्क और व्हेल मछलियां होती है किसी भी पिरमिड का शिखर उसके आधार के बिना नहीं बन सकता है. प्लांकटन नामक सूक्ष्म हरे पौधे यही आधार बनाते हैं।

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चित्र: OCEANIC FOOD PYRAMID

नदियों द्वारा सागर को पोसने के काम में सबसे बड़ी बाधा (शाब्दिक और अलंकारिक दोनों अर्थों में) बांध है। जी हां Man made Dams

दुनियां भर में 58000 बांध है जो 50 फीट या उससे अधिक ऊंचाई के हैं। 3700 से अधिक होंगे जो निर्माणाधीन है। इनमें अधिकांश अब एशिया और दक्षिणी अमेरिका के निम्न तथा मध्यम आय वाले राष्ट्रों में है। बांधों के नुकसान सर्व-विदित है। मछलियों तथा अन्य जलनिर्भर प्राणियों का संचार, पोषण, प्रजनन, विविधता, विकास  – सब रुक जाता है। जंगलों तथा जल क्षेत्रों (wetlands) की इकोलॉजी बदल जाती है। रहवासी क्षेत्र, खेत खलिहान और ऐतिहासिक धरोहर डूब में आ जाती है।

अभी तक वैज्ञानिकों का ध्यान, बांधों के कारण समुद्र के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों पर कम गया था।

उपग्रह से प्राप्त चित्रों द्वारा पता लगा है कि पिछले 40 वर्षों में उत्तरी अमेरिका यूरोप और एशिया की 414 नदियों के मुहानों के समीप स्थित सागरीय क्षेत्रों में तलछट/sediment/ गाद के जमा होने की दर आधी रह गई है।

विज्ञान जगत की सबसे प्रतिष्ठित शोध पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित लेख के निष्कर्ष और भी ज्यादा चिंतनीय है क्योंकि तुलना करने हेतु आधार वर्ष 1970 के बाद ही दुनिया में बड़े बांधों का बेतहाशा निर्माण हुआ है। बोदाइन कॉलेज, ब्रंसविक, मैन, अमेरिका के समुद्र वैज्ञानिक तथा उक्त शोध पत्र के प्रमुख लेखक इवान डिथर के अनुसार नदियों के किनारे और नदियों के आसपास इंसानी दखल ने जलवायु परिवर्तन के अनेक अन्य कारकों की तुलना में अधिक असर डाला है।

नदियों द्वारा लाई जाने वाली तलछठ उसके जल क्षेत्रों, किनारो, मुहानों, डेल्टाओंऔर समुद्र तक नाना प्रकार की वनस्पतियों तथा उन पर आधारित प्राणियों के संधारण का काम करती है। शैवाल (algae) खूब पैदा होती है जो प्लान्कटन का भोजन बनती है। सागर तटों पर यही गाद समुद्री लहरों द्वारा भूमि के क्षरण को रोकती हैं और उसकी भरपाई करती है।

इस बारे में थोड़ी बहुत जागरूकता है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण धीरे-धीरे समुद्र का जल स्तर उठता जाएगा। लेकिन इसका एहसास नहीं है कि धरती धसती जा रही है, उसके किनारों को समुद्र कुतर रहा है।

नदियों का पानी और गाद सागरीय धाराओं (oceanic current) पर प्रभाव डालते हैं।

नदियों के ताजे, मीठे पानी का घनत्व कम होता है। समुद्र का खारा जल, ठंडा और थोड़ा सा अधिक गाढ़ा होता है। दोनों के मिश्रण का प्रक्षेत्र 80 मील तक फैला हो सकता है। यहां पर छोटी बड़ी भवरें(Eddy currents) बनती और मिटती रहती है। हजारों मील दूर तक जाने वाली सागरिया नदियां इन्हीं भवरों से उर्जा और दिशा प्राप्त करती है।

जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी  की आशेनोग्राफर एनालिसा ब्राको ने दुनिया की 12वी बड़ी नदी ‘मिकांग’ के प्रभाव का अध्ययन किया। तिब्बत पठारों से निकलकर चीन, बर्मा, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम होते हुए यह नदी दक्षिण चीन सागर में गिरती है। मुख्य नदी और सहायक नदियों पर लगभग 150 बांध बन चुके हैं। अनेक और बन रहे हैं। नदी के वार्षिक और मौसमी औसत बहाव के गणितीय कंप्यूटरीकृत मॉडल्स के अनुसार सागर धाराएं कमजोर पड़ती जा रही है। मीठा कम घनत्व वाले पानी की परत जो सतह पर रहती है उसे हवाओं द्वारा लहरों और धाराओं में परिवर्तित करना आसान होता है, बजाए के भारी और ठंडे पानी के।

दक्षिण चीन सागर से ग्रीष्म ऋतु में उठने वाली मानसूनी हवाएं इन्हीं धाराओं पर निर्भर करती है।

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चित्र : वर्ष 2014 में अप्रैल से ऑक्टोबर के मध्य दक्षिण चीन सागर में मेकॉङ्ग नदी के मीठे पानी का बहाव

Eddie Current  या भंवरे कम बनने से न केवल महाद्वीपों के समीप बल्कि दूरस्थ सागरीय थालों या Basins तक मछलियों की संख्या पर असर पड़ता है।

दुनिया भर में समुद्रों में मछलियों के अति दोहन के कारण पहले ही उत्पादन कम हो चुका है। देशों के मध्य जल सीमाओं को लेकर विवाद बढ़ रहे हैं। Indo-pacific और क्वाड नाम से भू-सामरिक राजनीति गर्मा रही है।

मनुष्य की गतिविधियों के समस्त प्रभाव एक जैसे नहीं होते। विपरीत दिशा में होकर भी वे अनन्तः इकोलॉजी के लिए नुकसानदायक होते हैं। उत्तरी अमेरिका की मिसिसिपी नदी जब मेक्सिको की खाड़ी में गिरती है तो वहां से निकलने वाली गल्फ स्ट्रीम पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ा है लेकिन मिसिसिपी के पानी में खेती में प्रचुर मात्रा में  प्रयुक्त रासायनिक खादों के कारण पोषक तत्व सामान्य से अधिक होने से खाड़ी में एक Dead Zone  बन गया है।

जलवायु परिवर्तन के अनेक प्रचलित मॉडल्स तथा उन पर आधारित भविष्यवाणियां कितनी सही होंगी यह संदेहास्पद है। मैं अपने आपको Climate Change Denier (जलवायु परिवर्तन नकारने वाला) नहीं मानता लेकिन मैं शायद  Lukewarmer (गुनगुनाहट वाला) हूँ।

 Climate Change Modals are Low Resolution.

 जलवायु एक जटिल विज्ञान हैं। दो-दो, चार-चार किलोमीटर के लघु क्षेत्रों में पानी की लहरों को गिनना नापना होता है। लेकिन  वर्तमान मॉडल 50-100 किलोमीटर से कम के दायरे पर नजर नहीं डाल सकते। पानी की सांद्रता (Density) के साथ अन्य कारकों पर भी ध्यान देना होता है। हवाओं की दिशा और गति, हवाओं का तापमान, ज्वार और भाटा की आवृत्ति और तीव्रता, धूप की अवधि और तीव्रता। आदि आदि।

जलवायु परिवर्तन को लेकर खूब ज्यादा चिंता और शोर मचाने वाले Climate Alarmists  अति सरलीकृत मॉडल्स से प्राप्त उन भविष्यवाणियों पर फोकस करते हैं जो सबसे खराब परिदश्य चित्रित करते हैं। (Worst Case Scenario)।

एक और जटिलता। अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया आदि की नदियों के साथ समुद्र में कम sediment के बजाय अधिक गाद/ तलछट जमा होने की समस्या है। वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण भूमि का क्षरण होने से ऐसा हो रहा है।

 मनुष्य द्वारा अधिकांश प्रभाव स्थानीय किस्म के हैं। लेकिन उनके ग्लोबल प्रभावों पर और अध्ययन की जरूरत है।

मुझे याद है मैं और नीरजा जब अमेरिका में ग्रांड केनियन देखने गए थे तब हूबर बांध भी देखा था। इंजीनियरिंग उपलब्धियों में उसका उल्लेख गर्व के साथ होता है। लेकिन घाटी में हेलीकॉप्टर से उतरकर जब कोलोरेडो नदी में बोटिंग करी तो उसका क्षीण काय रूप देखकर मन उदास हुआ। गाइड दोनों किनारों की चट्टानों पर पानी का पुराने जमाने का स्तर दर्शा रहा था।

ऐसा ही दुख भरूच में नर्मदा को देखकर होता है।

नदियों और सागर का जल इंसानों की कायाओं में और उनके द्वारा निर्मित भौतिक दुनिया में समाता जा रहा है।

 अच्छा है या बुरा, राम जाने।

अस्वीकरण

मेरे लेखन/वक्तव्य में जहां-जहां जलवायु परिवर्तन और प्रकृति क्षरण का विषय आता है, मेरा प्रयास रहता है कि समस्याओं और खतरों को वस्तु पूर्वक सही-सही वर्णित करूं। लेकिन मैं ना तो ग्रेटा थूनबर्ग   की तरह पैनिक बटन दबाता हूं और ना रुदन भरी निराशा के गर्त में डूब जाता हूं। मैं आशावादी हूं। इतिहास गवाह है कि जब-जब कोई समस्या या खतरा एक क्रिटिकल या क्रांतिक  स्तर पर पहुंचता है तब तब मनुष्य की मेधा, पूंजी और परिश्रम मिलकर उसका हल निकाल लेते हैं।

संदर्भ/ स्रोत :

  1. Dethier, E.N., Renshaw, C.E., & Magilligan, F.J. Rapid changes to global river suspended sediment flux by humans. Science 376, 1447-1452 (2022).
  2. 2. The One Earth Editorial Team. Keeping pace with changing deltas. One Earth 6, 183-184 (2023).
  3. 3. Zeng, X., Bracco, A., & Tagklis, F. Dynamical impact of the Mekong River plume in the South China Sea. JGR Oceans 127, e2021JC017572 (2022).

Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).