अपनी भाषा अपना विज्ञान:अमृतकाल में विज्ञान  

अपनी भाषा अपना विज्ञान:अमृतकाल में विज्ञान  

स्वतंत्रता दिवस हमें प्रायः गर्व करने का अवसर प्रदान करता है कि हम अपने राष्ट्र की उपलब्धियों पर फूलें न समाएं।  लेकिन इसी के साथ एक दूसरा पहलू भी है। राष्ट्र कवि श्री मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में –  “ हम क्या थे? क्या हो गए हैं? क्या होंगे अभी? आओ मिल कर हम विचार्रें अभी”।

बहुत सारे पहलू हैं किसी राष्ट्र के जीवन के जिसके बारे में जिसमें हम सब विचार कर सकते हैं कि फलांफलां क्षेत्र में काश आने वाले वर्षों में हम फलांफलां कमियों को दूर कर पाएं और बेहतर बन पाएं। जिसे हम अमृत काल कह रहे हैं ।पच्चीस वर्षों में हम अपनी 1947 वाली स्वतंत्रता का सौंवा साल मनाएंगे। हम ऐसी उम्मीद करते हैं कि हम एक विकसित राष्ट्र के रूप में दुनिया में एक प्रतिष्ठा पूर्ण स्थान अर्जित करेंगे। उसमें बहुत सारी चीज़ें करने की है।लेकिन मैं बोलना चाहता हूं संक्षेप में विज्ञान और तकनालाजी के बारे में। वैज्ञानिक सोच और समझ। [Scientific Temper.] शोध और विकास | Research & Development.

हमारे संविधान में नीति निर्देशक सिद्धांत होते हैं। Directive principles in the constitution which are not binding.शासन के लिए बाध्यकारी नहीं है। लेकिन हमारे संविधान निर्माताओं ने यह उम्मीद की थी कि शासन इन पर अमल करेगा। उनमें से एक नीति निर्देशक सिद्धांत है कि राष्ट्र के नागरिकों में वैज्ञानिक टेम्पर, Scientific Temper, वैज्ञानिक प्रवृत्ति, विकसित की जाएगी।

एक यह बहुत ही प्रगतिशील और भविष्योन्मुखी महान विचार था। इसके लिए हमें क्या करना होगा?

अपनी भाषा अपना विज्ञान:अमृतकाल में विज्ञान  

  1. इसके लिए हमारे GDP का एक बड़ा प्रतिशत हमें Research and Development में लगाना पड़ेगा। शोध और विकास में। अन्य विकसित देश और ऐसे देश जिन्होंने वैज्ञानिकऔर तकनीकी क्षेत्रों में प्रगति खूब अच्छी की है वे अपने GDP का एक बड़ा प्रतिशत R & D में लगाते है। दो प्रतिशत, तीन प्रतिशत, चार प्रतिशत अपनी GDP का Research and Development में लगाते हैं। भारत में यह प्रतिशत 0.7% है। दुनिया का औसत है 1.8%। चीन का 2.2%। वर्ष 2021 में भारत में कुल सकल उत्पाद का सिर्फ 0.8 % शोध और विकास पर खर्च किया गया था, जो पिछले वर्षों की तुलना में बढ़ने के बजाय कम हुआ था। हालांकि शासन की ओर से दावा किया जाता है कि राशि बढाई जा रही है।

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GDP को नापने के दो पैमाने होते है। एक है वास्तविक या सकल। दूसरा है खरीद सकने की क्षमता को आधार बना कर तैयार किया गया पैमाना। Purchasing Power Parity. दूसरे पैमाने के आधार पर हमारी हालत उतनी बुरी प्रतीत नहीं होती है। विज्ञान मंत्री के अनुसार PPP Terms में भारत का दुनिया में छटा स्थान है

एक और पैमाना होता है Science Citation Index. भारत के लेखकों द्वारा, वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित शोधपत्रों को कितनी बार उद्धृत किया जाता है। एक जमाने में चीन हमसे पीछे हुआ करता था.अंग्रेज़ी तो उनकी प्राथमिक भाषा भी नहीं है जबकि हमारे लिए कुछ हद तक है लेकिन अंग्रेज़ी भाषा के जर्नल्स में उनके नागरिकों के द्वारा प्रकाशित लेखों का उल्लेख होने की दर हम से कहीं आगे निकल गयी है।  Science Citation Index (उद्दरण सूचकांक) वर्तमान की रेंकिंग है –
1. अमेरिका, 2. चीन, 3. यू.के., 4. जर्मनी, 5. जापान, 6. फ़्रांस और फिर सातवें स्थान पर भारत। हालांकि केंद्रीय मंत्री के दावे के अनुसार भारत तीसरे स्थान पर पहुचने वाला है।

 

पेटेंट अर्थात एकस्व अधिकार : भारतीय नागरिक, दुनिया भर में जितने नए Patent का दावा करते  है, उसका कितना छोटा सा प्रतिशत बनाते है अर्थात जो नया आविष्कार है और जिन्हें Patent किया जा रहा है, हम उसमें बहुत पीछे हैं। इस क्षेत्र में चीन ने अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है। अगले क्रम में अन्य देश है – जापान, कोरिया, जर्मनी, रूस और फिर सातवे स्थान पर भारत।

 बौद्धिक संपदा(Intellectual Property) की गणना में Patent के साथ कॉपीराइट और ट्रेडमार्क को भी जोड़ा जाता है। इस पैमाने पर अमेरिका सबसे आगे है । भारत का स्थान 42 वां है।

हमें क्या करना होगा?

2.इन सब के लिए हमें बजट के साथ विज्ञान शिक्षा पर भी ध्यान देना पड़ेगा। स्कूल और कॉलेज के लेवल पर और उसके बाहर भी आम नागरिकों के लिए।

3. हम उम्मीद करें कि हम जगह जगह अच्छी पुस्तकालय बनाएंगे और उम्मीद करें कि लोगों की पढ़ने की आदत बढ़ेगी उसमें विज्ञान की किताबों का अच्छा प्रतिनिधित्व होगा।

4. हम जगह जगह साइंस म्यूजियम बनाएं, कम से कम जिला स्तर तक।

5. Science Center या विज्ञान केंद्र बनाएं

6. Planetarium(तारामंडल) जगह जगह बनाएं, तो बच्चों के अंदर, स्कूली बच्चों में, कॉलेज के बच्चों में विज्ञान के प्रति एक उत्सुकता बढ़ेगी और exposure बढ़ेगा।

 

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7.विज्ञान पत्रकारिता को सुदृढ़ करने की ज़रूरत है। उसके लिए अच्छे Courses और अच्छे संगठन बनाए जाएं जो हमारे देश के पत्रकारों को और Science communicator या विज्ञान प्रेषक, विज्ञान संचारकर्ता, उनको अच्छी training प्रदान करे और अंधविश्वास वाली प्रवृत्तियों का प्रतिकार बहुत अच्छी तरीके से मीडिया के अंदर और अन्य माध्यमों के अंदर हो।

8.विज्ञान शिक्षा, विज्ञान प्रचार प्रसार तथा विज्ञान शोध में श्रेष्ठ काम करने वालों को बेहतर पुरूस्कार, मान्यता और प्रतिष्ठा प्रदान करनी होगी।

यह सही है कि गरीब देशों की प्राथमिकताएं अलग होती है – रोटी-कपड़ा-मकान-बिजली-सड़क-पानी। विज्ञान और तक्नोलाजी उनके लिये Luxury के समान प्रतीत होते है। शोध से होने वाले लाभ अनेक दशकों बाद फलीभूत होते हैं या ना भी हों। एक जुआ सा रहता है।

19वीं शताब्दी में इंग्लैंड की महरानी विक्टोरिया, एक वैज्ञानिक माइकल फेराडे की प्रयोगशाला में घूम रही थी। फेराडे महोदय “डायनामों” नामक मशीन के बारे में बता रहे थे जो विद्धुत चुम्बकीय सिद्धांत पर काम करती है। रानी ने पूछा “यह मशीन आज किस काम की है?” फेराडे ने रानी के साथ चल रही एक आया बाई की गोद में रखे नन्हें शिशु की और इशारा करके पूछा – “यह शिशु आज किस काम का है?”

विज्ञान की मूलभूत शाखाओं [Basic Sciences] की शोध, आम नागरिकों के लिये बोर, कठिन और अप्रांसगिक लगती है । प्रति वर्ष राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस में परम्परानुसार प्रोटोकाल के माफिक, देश के प्रधानमंत्री उसे सम्बोधित करते हैं। प्रधानमंत्री किसी भी पार्टी या विचारधारा का हो, उनकी एक पिटी पिटाई बात को सुन सुनकर मैं थक चुका हूँ।

“वैज्ञानिकों से आव्हान है कि उनकी शौध द्वारा देश की ज्वलंत संमस्याओं” को हल करने में मदद मिले जैसे गरीबी, असमानता, बीमारियां, खाद्यान उत्पादन, ऊर्जा, तापमान परिवर्तन आदि-आदि।” Basic Science के क्षेत्र में काम करने वालों की प्राथमिताएं अलग प्रकार से निर्धारित होती है। शुरू-शुरू में लगता है इसकी क्या जरूरत ? बाद में पता नहीं कब क्या ज्ञान काम आ जावें।

जैसे-जैसे राष्ट्र का सकल उत्पाद बढ़ता है, प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है वैसे-वैसे उस देश का R&D का कुल बजट बढ़ता है और GDP में उस बजट का प्रतिशत भी बढ़ता है। भारत में इस दिशा में गति में त्वरण आया है। काश और भी अधिक आवे।

विश्व गुरु बनने के लिए पुरातन आध्यात्मिक धरोहर पर्याप्त नही है, आधुनिक भौतिक [Materialistic & Physical] ज्ञान में अग्रिम पंक्ति में दौड़ना अनिवार्य है।

ये कुछ विचार है मेरे, ये कुछ सुझाव है मेरे, कुछ उम्मीदें हैं, कल्पनाएं हैं मेरी।

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं

Author profile
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डॉ अपूर्व पौराणिक

Qualifications : M.D., DM (Neurology)

 

Speciality : Senior Neurologist Aphasiology

 

Position :  Director, Pauranik Academy of Medical Education, Indore

Ex-Professor of Neurology, M.G.M. Medical College, Indore

 

Some Achievements :

  • Parke Davis Award for Epilepsy Services, 1994 (US $ 1000)
  • International League Against Epilepsy Grant for Epilepsy Education, 1994-1996 (US $ 6000)
  • Rotary International Grant for Epilepsy, 1995 (US $ 10,000)
  • Member Public Education Commission International Bureau of Epilepsy, 1994-1997
  • Visiting Teacher, Neurolinguistics, Osmania University, Hyderabad, 1997
  • Advisor, Palatucci Advocacy & Leadership Forum, American Academy of Neurology, 2006
  • Recognized as ‘Entrepreneur Neurologist’, World Federation of Neurology, Newsletter
  • Publications (50) & presentations (200) in national & international forums
  • Charak Award: Indian Medical Association

 

Main Passions and Missions

  • Teaching Neurology from Grass-root to post-doctoral levels : 48 years.
  • Public Health Education and Patient Education in Hindi about Neurology and other medical conditions
  • Advocacy for patients, caregivers and the subject of neurology
  • Rehabilitation of persons disabled due to neurological diseases.
  • Initiation and Nurturing of Self Help Groups (Patient Support Group) dedicated to different neurological diseases.
  • Promotion of inclusion of Humanities in Medical Education.
  • Avid reader and popular public speaker on wide range of subjects.
  • Hindi Author – Clinical Tales, Travelogues, Essays.
  • Fitness Enthusiast – Regular Runner 10 km in Marathon
  • Medical Research – Aphasia (Disorders of Speech and Language due to brain stroke).