क्या कहीं दिल जल रहे हैं देवर्षि…!

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मानसून आने में देरी क्यों हो रही है…जहां प्री-मानसून की बारिश हुई, वहां भी जान आफत में है और जहां बारिश नहीं हो रही, वहां भी जान सांसत में है। आखिर यह पृथ्वीलोक की देवभूमि में सब जगह कलह-कलह सा माहौल क्यों बन रहा है? और देवभूमि के ह्रदयप्रदेश में कैसी आवाजें आ रही है कि जैसे दिल जल रहे हों और वह भी इस तरह जैसे आग भी नहीं नजर आ रही और धुआं भी दिख रहा…। ऐसा लगा जैसे धृतराष्ट्र, संजय से पूछ रहे हैं कि वत्स महाभारत में तो युद्ध अठारह दिन ही हुआ था और उसमें हाहाकार मच गया था। लेकिन कलियुग में देवभूमि में 21 वीं सदी के 22वें साल में यह कैसे हालात बन रहे हैं कि बिना युद्ध के ही सब हताहत नजर आ रहे हैं।

कश्मीर से कन्याकुमारी और कोहिमा से कच्छ तक सब जगह उथल-पुथल मची है। आखिर यह हो क्या रहा है? क्या शासक प्रजा के हित में फैसले नहीं ले रहे या प्रजा शासक के फैसलों को हलक से नीचे उतारने में बेचैनी महसूस कर रही है? और उधर से आवाज आई नारायण-नारायण और देववाणी सुन धृतराष्ट्र चौंक पड़े। बोले देवर्षि मैंने कुछ गलत सवाल कर लिए क्या…जो आपको आने की तकलीफ उठानी पड़ी। देवर्षि बोले… राजन कलियुग में आपकी आवाज सुनकर मुझे लगा कि कहीं फिर से द्वापर युग लौटकर तो नहीं आ गया और अब तो संजय के पास दिव्य दृष्टि भी नहीं है। ऐसे में आपको कोई शंका हो गई हो तो उसका समाधान कर दूं…नारायण-नारायण।

महर्षि शायद मुझे अचानक महाभारत काल की याद आ गई और मानसिक तनाव ने मुझे घेर लिया, इसीलिए मैं कुछ भी बड़बड़ किए जा रहा हूं। नारद ने धृतराष्ट्र से कहा,नहीं राजन…आपके प्रश्न कलियुग में भी उतने ही समसामयिक हैं, जैसे द्वापर काल में हुआ करते थे। और संजय शायद आपके सवालों का विस्तार से जवाब देने में असमर्थ हो, इसलिए मैं बिना समय गंवाए आपके पास पहुंच गया। तब धृतराष्ट्र बोले, महर्षि जो सवाल मेरे मन में उलझे हैं, उनका समाधान करें तो मैं आपका कृतज्ञ रहूंगा। देवर्षि बोले जैसी आज्ञा राजन। और उन्होंने बोलना शुरू कर दिया।

राजन आपकी चिंता देवभूमि को लेकर है, जिस पर मैं सबसे पहले गौर करता हूं। भारतभूमि पर आजकल “नेशनल हेराल्ड” नामक एक समाचार पत्र को लेकर ईडी और कांग्रेस दल के बीच द्वंदयुद्ध चल रहा है। अब कमल दल में मोदी बाबा प्रधानमंत्री बने बैठे हैं, सो उन्होंने भी ठान लिया है कि उन गढ़े मुर्दों को निकालकर हड्डी-पसली का हिसाब सबके सामने रखकर मानूंगा, जिनकी वजह से परिवारवाद की लाठी टेककर राहुल बाबा  आबाद होने का सपना संजोए हैं। सो ईडी राहुल-सोनिया से पूछताछ पर उतारू है, तो कांग्रेसी राहुल बाबा के पीछे-पीछे दौड़कर यह जता रहे हैं कि राहुल और उनकी मातोश्री सोनिया अकेले नहीं हैं।

जरूरत पड़ी तो कांग्रेस के सब वफादार नेता ईंट से ईंट बजा देंगे। पुलिस इन नेताओं को रोककर यह अहसास करा रही है कि दिल्ली में अब उनका राज नहीं बचा, जमाना गुजर गया है। इसी खटपट की आहट ने आपके कानों तक गूंजकर आपको द्वापर की याद दिला दी है राजन। राजन बोले कि क्या यह मोदी भी भीष्म पितामह की तरह श्वेत बाल और दाढ़ी रखे भारत की रक्षा का राग अलाप रहे हैं क्या देवर्षि। दाढ़ी से हमें डर लगता है नारद। देवर्षि बोले राजन, राग अलाप नहीं रहा बल्कि विरोधी पक्ष को सबक सिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं मोदी। यही वजह है कि विरोधी पक्ष में हाहाकार मचा है और कश्मीर से कन्याकुमारी और कोहिमा से कच्छ तक जहां-जहां सरकारें बदली हैं, वहां-वहां हलचल मची है और जहां सरकारें नहीं बदल पाईं, वहां ज्यादा हलचल है राजन।

Modi birthday 1

मोदी बाबा यह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे कि कांग्रेस का राज धृतराष्ट्र और दुर्योधन की तरह था। जिसमें आसुरी प्रवृत्तियां यत्र-तत्र विद्यमान थीं और अब मोदी राज न्यायप्रिय युधिष्ठिर की तरह प्रजा की रक्षक और अन्यायियों की भक्षक बनकर भारत को फिर देवभूमि बनाकर ही रहेगा। मोदी बाबा जिस मंच पर हों, वहां उनके जयकारों से आसमान गूंज जाता है, पुष्प वर्षा होने लगती है और शासक उनके गुणों का बखान करते मानो थकते ही नहीं हैं। वहीं जिनके हक मारे जा रहे हैं, वह कराह रहे हैं और आक्रोश व्यक्त करने के तरीकों से उथल-पुथल की स्थिति का आभास करा रहे हैं। ऐसे वर्णन से असंतुष्ट धृतराष्ट्र बोले कि देवर्षि सच क्या है और झूठ क्या है?

देवर्षि बोले सच-झूठ को तो राजन आप द्वापर युग में स्वीकार नहीं कर पाए थे और अब तो यह घोर कलियुग है…अच्छा है कि सच-झूठ और न्याय-अन्याय जैसे शब्दों पर कोई टिप्पणी ही न की जाए। यह समझा जा सकता है कि जो जहां राज कर रहा है, वहां सच और न्याय जैसे शब्द उसी में समाए हैं। बाकी कहां से कैसी आवाजें आ रही हैं, वह बहुत ध्यान देने योग्य नहीं हैं। जब चुनाव होता है, तब मतदाता सच और न्याय का साथ देता है, ऐसी मान्यता है…पर यह भी ईवीएम में उलझकर रह गया है, सो ज्यादा माथापच्ची करने की जरूरत नहीं राजन, कहीं ब्लडप्रेशर न बढ़ जाए। धृतराष्ट्र बोले, देवर्षि महाभारत का हाल संजय से सुनने के बाद ब्लडप्रेशर जैसी बातें मिथ्या हो गई हैं। थोड़ा ह्रदयप्रदेश की बात भी बताओ देवर्षि।

नारायण-नारायण उच्चारण कर देवर्षि ने ह्रदयप्रदेश की चर्चा शुरू की। बोले राजन ह्रदयप्रदेश में इन दिनों पंचायत-नगरीय निकाय चुनावों की बयार चल रही है। यहां शिव बाबा का राज है, सो उनने समरस पंचायत की बात समझाई लेकिन मुट्ठीभर लोगों ने समझी…बाकी दो-दो हाथ किए बिना नहीं मान रहे। दिल जलने की गंध जो आपको आ रही है, वह नगरीय निकाय में महापौर प्रत्याशियों और पार्षदों के प्रत्याशी के चयन की है। अब कांग्रेस में तो नाथ ने महापौर के प्रत्याशियों के नाम एक झटके में तय कर दिए। फिर एक डॉक्टर ने आरोप लगाए कि टिकट बिक गए, सो कांग्रेस के मीडिया के कद्दावर नेता ने नोटिस थमाने में देर नहीं की।

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अब पता नहीं चल रहा कि दिल किसका जला और कौन पानी छिड़कने की ड्यूटी पर है। पर दिल तो भाजपा मेयर प्रत्याशियों की घोषणा में थोक में जले हैं। यहां शिव बाबा के साथ विष्णु, नरेंद्र, ज्योति, मुरली, दूसरे शिव, कैलाश, नरोत्तम वगैरह बड़ी महफिल जमीं थी। पहले तो टिकट नहीं मिला उन दावेदारों के दिल तो जलके खाक हो गए। दूसरे जिन बड़े नेताओं का जलवा ज्यादा दिख रहा था, लेकिन टिकट बंटवारे में वह फिसड्डी हो गए…उनके दिल जले भी है और पानी छिड़कने वाला भी कोई नहीं मिल रहा। भाजपा कैडर बेस पार्टी है सो मेयर का चुनाव जिताने के लिए फिर सब नेता दिल को स्वस्थ और प्रसन्न कर पुराने दर्द दूर कर जल्दी सड़क पर दिखेंगे।

पता ही नहीं चलेगा कि इनके दिल कभी जले भी थे। धृतराष्ट्र बोले कि महाभारत युद्ध के बाद हम तो अपने दिल को फिर समझा नहीं पाए थे देवर्षि, तुमसे तो कुछ छिपा नहीं है। देवर्षि बोले, पर कलियुग में जो दिखता है और जो होता है, वह हम भी नहीं समझ पा रहे राजन। समझ में यह भी नहीं आ रहा है कि कहां दिल जल रहे हैं और किस-किसके दिल जख्मी हैं…। और अब बड़ी- बड़ी इमारतों में बड़े-बड़े नेताओं की बैठकें बिना फैसलों के खत्म होती हैं, तब दिखे भले ही न…लेकिन आग लगती जरूर है राजन। धुआं निकलता है पर दिखता नहीं है। मानसून में देरी हो रही है, वहां भी जान आफत में है, क्योंकि दिमाग गरम हैं और फैसले भी जला रहे हैं। जहां प्री-मानसून बारिश हुई, वहां भी जान सांसत में है, क्योंकि जगह-जगह पानी भर रहा है और फिर पांच साल के लिए मेयर चुनने निकलना है।