‘आदिवासी गलियों ” में सत्ता की डगर तलाशती भाजपा (BJP Searching For Power In Tribal Streets)

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‘आदिवासी गलियों ” में सत्ता की डगर तलाशती भाजपा (BJP Searching For Power In Tribal Streets);

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान द्वारा आदिवासी मतदाताओं को रिझाने और उन्हें अपने पाले में करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे थे उन्हें धार देने का काम केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किया । अमित शाह ने भोपाल के जम्बूरी मैदान में आयोजित एक विशाल आदिवासी समागम में वनोपज का लाभांश प्रतीकात्मक रुप से वितरित किया। यह लाभांश 40 लाख रुपये से लेकर 5 करोड़ रुपये तक का था, जो कि वनोपज समितियों को दिया गया। सत्ता और संगठन से जुड़े नेताओं को भी अमित शाह ने 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने का मूल मंत्र दिया। इस सबसे भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं का जोश हिमालयीन उछाल मारने लगा है। सत्ता व संगठन के सामने अब प्रदेश में न केवल इसे बनाये रखने की अहम जिम्मेदारी है बल्कि मैदानी स्तर पर और अधिक प्रभावी कर शाह के जीत के मंत्रों को साकार करने की चुनौती होगी। इस प्रकार कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भाजपा इन दिनों आदिवासी गलियों में सत्ता की डगर तलाश रही है।

'आदिवासी गलियों " में सत्ता की डगर तलाशती भाजपा

मिशन 2023 की सफलता के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नजर दलित व आदिवासी मतदाताओं को फिर से पूरी ताकत से भाजपा की तरफ मोड़ने की है जो 2018 के विधानसभा चुनाव में उससे छिटक गया था तथा कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार प्रदेश में बनी थी। शिवराज के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यह रही कि शाह ने उनकी तारीफ की और कहा कि मध्यप्रदेश को छोड़कर देश में शायद ही किसी राज्य सरकार ने 10 साल में सकल घरेलू उत्पाद में 200 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की है। उन्होंने कहा कि पिछली बार मैं जब जबलपुर आया था तब शिवराज ने 17 घोषणाएं की थीं । मैंने उसी समय कहा था कि घोषणाएं तो कर दीं लेकिन जनता जवाब भी मांगती है। इस बार पता चला कि सभी घोषणाएं पूरी हो गयी हैं।

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आज की घोषणाओं को 2024 से पहले पूरा करने की चुनौती भी शाह ने शिवराज के सामने उछाल दी है। इन दिनों भाजपा के प्रादेशिक व राष्ट्रीय एजेंडे में अब आदिवासी और दलित वर्ग प्राथमिकता सूची में सर्वोच्च पायदान पर आ गया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 आदिवासी सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें ही जीत पाई और यही कारण रहा कि डेढ़ दशक की उसकी सत्ता बहुत बारीक अन्तर से हाथ से फिसल गई। आगामी विधानसभा चुनाव में जीत के जिस राजपथ का रोडमैप अमित शाह ने सत्ता व संगठन को समझाया है उसका मूलमंत्र सत्ता व संगठन के बीच अधिक से अधिक तालमेल करना और कमजोर व हारे हुए मतदान केन्द्रों की जिम्मेदारी बड़े नेताओं द्वारा संभालना शामिल है।

उनका साफ कहना था कि मध्यप्रदेश में अनुकूल माहौल है तथा यह संगठन के गढ़ जैसा है जहां पर संभल कर काम करने की जरुरत है, यदि मध्यप्रदेश बिगड़ेगा तो इसका असर पूरे देश पर पड़ेगा। दिल्ली में पुराना काम था पार्टी का लेकिन लापरवाही हुई इस कारण दिल्ली बिगड़ गया। उल्लेखनीय है कि एक नयी बनी आम आदमी पार्टी ने अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में देश की राजधानी दिल्ली में भाजपा को हाशिए पर पहुंचा दिया और कांग्रेस का सूपड़ा भी साफ कर दिया। पंजाब की सफलता के बाद अब आम आदमी पार्टी बुलंद हौसलों के साथ हिमाचल व गुजरात में दस्तक देने लगी है, लगता है कि भाजपा ने उस खतरे को भांप लिया है तथा वह और कांग्रेस दोनों ही चौकन्ने हो गए हैं।

राजभवन में बना आदिवासी प्रकोष्ठ
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां दिन-रात एक कर भाजपा के वोट बैंक को बढ़ाने का जतन कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने राजभवन में आदिवासियों के लिए चलाई जा रही योजनाओं की निगरानी के लिए आदिवासी प्रकोष्ठ गठित कर दिया है। इसके साथ ही उन्होंने अपने उस मंतव्य को भी स्पष्ट कर दिया है कि क्रियान्वयन पर सीधे-सीधे अब राजभवन की नजर होगी। अक्सर यह देखने में आया है कि राज्यपाल राजभवन में सिर्फ सरकार को पत्रों के जरिए राज्य की विशेष घटना पर या तो रिपोर्ट बुलाने का काम करते हैं या जनता से मिलने वाले ज्ञापनों को आवश्यक कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को भेज कर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं।

लेकिन पहली बार आदिवासियों के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर अब सीधे राज्यपाल की नजर होगी। वैसे तो मध्यप्रदेश में आदिवासी कांग्रेस का परम्परागत वोट बैंक रहा है लेकिन पिछले डेढ़ दशक से उसके रुझान में बदलाव परिलक्षित हुआ है और भाजपा का भी इसका लाभ मिलने लगा। आदिवासी अंचलों में यदि तेजी से फिर से भाजपा की तरफ उनका रुझान बढ़ता है तो इस परिवर्तन की भूमिका में राज्यपाल का भी महत्वपूर्ण योगदान होगा, क्योंकि प्रदेश में सत्ता की राह उस दल की कुछ अधिक आसान हो जाती है जो थोकबंद आदिवासियों को अपने पाले में करने में सफल रहता है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 21 प्रतिशत से कुछ अधिक है और इन आदिवासी क्षेत्रों में आये बदलाव के कारण ही पिछले विधानसभा चुनाव में डेढ़ दशक बाद सत्ता साकेत में नौका विहार करने का अवसर कांग्रेस को मिल गया।

यह बात अलग है कि अपने अंतर्विरोधों और आपसी महत्वाकांक्षाओं के चलते कांग्रेस इस अवसर का लाभ लगभग डेढ़ साल तक ही उठा पाई। 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग ने भाजपा का जोश-खरोश के साथ समर्थन किया था और उसने 36 सीटें जीत कर हैट्रिक बनाने में सफलता प्राप्त की थी, जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 16 सीटों पर ही सफलता मिल सकी। उत्तरप्रदेश या बिहार की तरह यदि मध्यप्रदेश में कांग्रेस कमजोर नहीं हो पाई तो उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि आदिवासी वर्ग का रुझान उसकी तरफ रहा है और उसने पूरी तरह से कांग्रेस से किनारा नहीं किया था।

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प्रदेश में भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उसके पास कोई स्थापित बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं है जबकि कांग्रेस में नेताओं की भरमार है, इस कमी को राज्यपाल पद की मर्यादा में रहते हुए मंगूभाई पटेल बखूबी निभाते हुए उसके लिए मददगार साबित हो सकते हैं, क्योंकि पटेल पड़ोसी राज्य गुजरात के एक कद्दावर आदिवासी नेता हैं और वह आदिवासियों के लिए आरक्षित विधानसभा सीटों पर वहां चुनाव जीतते रहे हैं। राज्यपाल बनने के बाद वह मध्यप्रदेश में काफी सक्रिय हैं और अब आदिवासी मामलों से जुड़े निर्णय राजभवन में होंगे, यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि आदिवासी मामलों के लिए राजभवन में कोई प्रकोष्ठ बनाया गया है।

राजभवन आदिवासियों से जुड़े विकास कार्यों व योजनाओं की जब सीधे-सीधे निगरानी करेगा तो इससे विभागीय मंत्री की भूमिका भी अवश्य ही बदलेगी। इस प्रकोष्ठ को राजभवन सचिवालय का हिस्सा बनाया गया है। इससे जाहिर है कि राज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा जिसे सामान्य तौर पर कोई भी मुख्यमंत्री पसंद नहीं करेगा कि एक निर्वाचित सरकार में राज्यपाल की इस तरह दखलंदाजी हो। हालांकि सरकार का समूचा काम राज्यपाल के नाम से आदेशानुसार होता है लेकिन यदि प्रकोष्ठ के गठन पर शिवराज सहमत हुए हैं तो इसकी एक बड़ी वजह राजनीतिक भी हो सकती है।

यहां डबल इंजन की सरकार है और सरकार के भीतर राजभवन की भूमिका को लेकर अच्छा-खासा समन्वय भी दृष्टिगोचर हो रहा है। इस प्रकोष्ठ का अध्यक्ष 1985 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी दीपक खांडेकर को बनाया गया है जो कि भारत सरकार में कार्मिक मंत्रालय में सचिव भी रह चुके हैं। उनके अलावा प्रकोष्ठ में चार अन्य अधिकारी भी नियुक्त किए हैं जिनमें दो अधिकारी विधि विशेषज्ञ भी हैं। खांडेकर का मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से बेहतर तालमेल रहा है।
और यह भी

गृहमंत्री अमित शाह ने भाजपा के प्रदेश कार्यालय में चुनिंदा नेताओं से बंद कमरे में चर्चा की जो लगभग आधा घंटे चली। इसमें शामिल नेताओं में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वी.डी. शर्मा, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया शामिल थे। इस प्रकार शाह ने प्रदेश की भाजपा राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बढ़ते कद व अहमियत को इशारों ही इशारों में सबको समझा दिया है। इससे एक संकेत यह भी मिलता है कि 2023 के विधानसभा चुनावों में ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका भी एक अहम किरदार के रुप में हो सकती है।