कौन है ओबीसी का सच्चा हितैषी : पंचायत चुनाव में होगा फैसला

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अंततः मध्यप्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही बिगुल बज गया है । नगरीय निकाय चुनाव भी होना है। परिसीमन के बाद त्रिस्तरीय पंचायतराज संस्थाओं के चुनाव में सीटें भले ही बढ़ गई हों परन्तु पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में कमी आई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सांसद विष्णु दत्त शर्मा ने दावा किया है कि पंचायत व नगरीय निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी जीत का इतिहास रचेगी, तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ का आरोप है कि पिछड़े वर्ग के साथ अन्याय हुआ है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के सामने शिवराज सिंह सरकार ने तीन माह में भी सही तरीके से आंकड़े व रिपोर्ट पेश नहीं की है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का भी फैसला आ गया कि आरक्षण होगा पर हमारा यह मानना है कि यह उचित आरक्षण नहीं है और पिछड़ा वर्ग के साथ शिवराज सरकार के कारण ही अन्याय हुआ है। भाजपा और कांग्रेस के तेवरों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अभी कुछ समय और पिछड़े वर्ग का मुद्दा राजनीतिक फलक पर छाया रहेगा क्योंकि दोनों ही दल इस बात में ही पूरी ताकत लगा देंगे कि वही पिछड़े वर्गों के सच्चे हिमायती हैं और दूसरा उनका विरोधी है। आखिरकार यह तो चुनाव नतीजों से ही पता चल सकेगा कि पिछड़े वर्ग के मतदाताओं ने भाजपा और कांग्रेस के बीच उनको लेकर चल रही आरोपों की घनघोर झड़ी में से किसकी बातों को सही माना है।

पिछले पंचायती राज चुनावों में जिला पंचायत सदस्यों की संख्या 841 थी जो इस बार बढ़कर 875 हो गयी है लेकिन ओबीसी आरक्षण कुछ घट गया है। 2014-15 के चुनाव में ओबीसी के लिए 167 सीटें आरक्षित थीं जो इस बार घट कर 98 रह गयी हैं इसी तरह सरपंच पद के आरक्षण में भी पिछड़ा वर्ग को नुकसान हुआ है। पंच पदों की आरक्षण की स्थिति अभी साफ होना बाकी है और जिला पंचायत अध्यक्ष पद का आरक्षण 31 मई को भोपाल में होगा। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने सुप्रीम कोर्ट से राज्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का पिछड़े वर्ग के लिए जो प्रतिवेदन दिया गया था उसके आधार पर आरक्षण की प्रक्रिया पूरी की है। जिला पंचायत सदस्य के लिए हुए आरक्षण में अनुसूचित जाति वर्ग के लिए 140, अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 231 और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 98 पद आरक्षित हुए हैं 406 सीटें अनारक्षित हैं जिन पर किसी भी वर्ग का व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है। 2014-15 के चुनाव में जिला पंचायत में अनुसूचित वर्ग के लिए 136 अनुसूचित जनजाति के लिए 222 और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 168 सीटें आरक्षित थीं तथा 315 सीटें अनारक्षित थीं। एक ओर जहां आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है तो वहीं कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कहना है कि हमारे पास कई शिकायतें आ रही हैं, पिछड़ा वर्ग के साथ अन्याय तो हुआ है लेकिन हम चाहते हैं कि पंचायत चुनाव हों। उन्होंने सभी से अपील की है कि यदि कहीं थोड़ी-बहुत कमी रह गयी है तो इसको अदालत के मामले में न उलझायें और सीधे जनता के बीच ही अब जाना चाहिए।

2023 के विधानसभा चुनाव के पूर्व पंचायती राज संस्थाओं व नगरीय निकाय संस्थाओं के चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों ही सेमीफायनल का मुकाबला मानकर ही लड़ेंगे और शायद यही वजह है कि दोनों पार्टियों की कोशिश है कि वे चुनाव में बढ़त हासिल करें ताकि जो आगे निकले उसे अगली चुनावी लड़ाई में मनोवैज्ञानिक बढ़त मिल सके। चूंकि पंचायती राज और नगरी निकाय चुनावों के बाद अगला मुकाबला विधानसभा चुनाव में ही होना है इसलिए भाजपा व कांग्रेस के विधायकों के चेहरों पर भी चिन्ता की लकीरें उभरना स्वाभाविक है क्योंकि जिनके क्षेत्र में दलीय उम्मीदवार पिछड़ जायेंगे उनके ऊपर टिकट कटने की तलवार लटक जायेगी। वैसे भी इस बार चुनावी मुकाबला भले ही भाजपा एकतरफा मानकर चल रही हो लेकिन वह भलीभांति समझती है कि विधानसभा की चुनावी लड़ाई आसान नहीं है , क्योंकि कांग्रेस भी इन चुनावों में बढ़े हुए मनोबल के साथ उतरेगी। 2003 के बाद यह पहला चुनावी मुकाबला होगा जिसमें कांग्रेस के पास भी 90 से अधिक विधायक होंगे तो भाजपा के पास सत्ता की ताकत होगी। कांग्रेस के हौंसले इसलिए बुलन्द हैं क्योंकि वह उम्मीद न होते हुए भी 2018 के विधानसभा चुनाव में बारीक अन्तर से भाजपा को शिकस्त दे चुकी है और कमलनाथ भी 15 माह तक मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जब कमलनाथ ने प्रदेश की बागडोर संभाली थी उस समय वह राज्य की राजनीति से पूरी तरह अनभिज्ञ थे क्योंकि उन्होंने हमेशा ही केन्द्र की राजनीति की थी। लेकिन 15 माह सरकार चलाने के अनुभव और उसके बाद विपक्ष की भूमिका में उन्होंने राज्य की राजनीतिक तासीर को भलीभांति परख लिया है। इसलिए अब वह अधिक चौकन्ना होकर चुनाव लड़ेंगे। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह अपने लोगों और दल बदल कर आये विधायकों के बीच चुनाव में कैसे तालमेल बिठाये और भाजपा के कुछ खाटी नेताओं को कैसे एडजस्ट करे जो कि पिछला चुनाव हार गये थे।

भले ही भाजपा और कांग्रेस निकाय चुनावों को सेमीफायनल मानकर चल रहे हों और अपनी पूरी ताकत लगा रहे हों लेकिन इन चुनावों के नतीजों का कोई विशेष फर्क विधानसभा चुनावों पर नहीं पड़ेगा क्योंकि गांव व शहर सरकार चुनते समय मतदाताओं का अलग-अलग मानस होता है सरकार चुनते समय अलग। फिर भी अपने-अपने क्षेत्रों में अपने दलीय प्रत्याशी को बढ़त दिलाकर विधायक कुछ समय के लिए चैन की सांस ले सकते हैं लेकिन उनके भाग्य का फैसला तो अंततः उनकी पांच साल की परफारमेंस पर ही निर्भर करेगा। चूंकि भाजपा को अपनी सरकार बचाना है और कांग्रेस को अपनी सरकार बनाना है इसलिए दोनों ही दल फूंक-फूंक कर कदम रखेंगे। न तो भाजपा सभी विधायकों को टिकट दे सकती है और न ही कांग्रेस, इसलिए बड़े पैमाने पर दोनों ही दलों में नये चेहरों को मौका देने के नाम पर टिकट का बंटवारा होगा जिसमें अनेकों विधायक टिकट पाने से वंचित हो जायेंगे। भाजपा में ज्यादा और कांग्रेस में उससे कम विधायकों की टिकट कटेंगी। चूंकि बड़ी संख्या में नये चेहरों को अवसर मिलेगा इसलिए अनेक विधायकों को भूतपूर्व होना पड़ेगा और जो टिकट से वंचित हो जायेंगे तथा विद्रोह करने का साहस दिखायेंगे तो भी इस बात की संभावना बहुत कम रहेगी कि फिर से उनके चेहरे विधानसभा में नजर आयें।

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वैसे तो राजनेता हमेशा अपने आपको आत्मविश्वास से लबरेज दिखाने का हरसंभव प्रयास करते हैं लेकिन कभी-कभी छात्रों के सवाल ऐसे हो जाते हैं कि उनका उत्तर भी देना जरुरी हो जाता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इन दिनों राज्य के किसी न किसी जिले में जा रहे हैं और वहां लोगों से गांवों में रुबरु हो रहे हैं। कोंडा गांव के माकड़ी में स्वामी आत्मानंद स्कूल में पहुंचे तो एक छात्रा ने उनसे पूछ डाला कि मुख्यमंत्री किनसे सीखते हैं, इस पर भूपेश बघेल का अपना अंदाज था और उन्होंने कहा कि “मैं तो रोज सीखता हूं। आज आपसे सीख रहा हूं। किसी से भी सीखा जा सकता है, कोई जरुरी नहीं कि हम बड़ों से ही सीखें, बच्चों से भी सीख सकते हैं।‘‘ सीखने को लेकर यह पाठ बच्चों को प्रदेश के मुखिया बघेल ने पढ़ाया। छात्रा के सवाल पर सहज भाव से बघेल का कहना था कि सीखना एक निरन्तर प्रक्रिया है हम अपने आसपास के लोगों से सीख सकते है। अपने शिक्षक, माता-पिता और दोस्तों से सीख सकते हैं, इतना ही नहीं बल्कि प्रकृति से भी काफी कुछ सीख सकते हैं क्योंकि उसमें सीखने लायक बहुत-सी चीजें हैं। जहां तक बघेल का सवाल है जब भी वे बच्चों से रुबरु होते हैं तो उनसे बहुत ही सहजता व अपनेपन से मिलते हैं यही कारण है कि बच्चे भी उनसे सवाल-जवाब करने में झिझकते नहीं।