कांग्रेस नेता अरुण यादव का यह तर्क किसी के गले नहीं उतर रहा कि पारिवारिक कारणों से उन्होंने खंडवा से उप चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। खंडवा क्षेत्र के प्रभारी मुकेश नायक अपने भाषण में अरुण के इस त्याग की भगवान श्रीराम के त्याग से तुलना कर रहे हैं, यह भी किसी के पल्ले नहीं पड़ रहा।
अरुण पिछले एक साल से खंडवा में सक्रिय थे। सार्वजनिक तौर पर बोलते थे कि वे उप चुनाव लड़ने की पूरी तैयारी में हैं। अचानक यह ह्रदय परिवर्तन, इसकी वजह कमलनाथ को माना जा रहा है। दरअसल, कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही अरुण की उनके साथ पटरी नहीं बैठी।
अरुण कई अवसरों पर कह चुके हैं कि फसल उन्होंने तैयार की और काटने कोई और आ गया। इतना ही नहीं, ग्वालियर के एक गोडसे भक्त को कांग्रेस में लेने पर भी अरुण ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त थी। लिहाजा, कमलनाथ इस बार अरुण को टिकट नहीं देना चाहते थे। उनके पास तर्क भी वाजिब था कि वे दो बार लगातार खंडवा से चुनाव हार चुके हैं। दिल्ली में अरुण को बताया गया कि कमलनाथ आपके पक्ष में नहीं हैं। आपकों टिकट नहीं मिलने वाला। अच्छा होगा कि आप खुद चुनाव लड़ने से इंकार कर दें। इस तरह अरुण ने मजबूरी में समर्पण कर दिया।
फिर मुद्दा बना कमलनाथ का गायब रहना….
– पहले सितंबर माह में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ गायब थे। इसे लेकर सवाल उठाए जा रहे थे। वापस आने पर कमलनाथ ने सफाई देते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को रेस तक की चुनौती दे डाली। इसे लेकर भी शिवराज के साथ कई मंत्रियों एवं भाजपा नेताओं ने कमलनाथ को जमकर घेरा था।
फिर कमलनाथ के नदारद रहने को लेकर भाजपा-कांग्रेस के बीच भिडंÞत जारी है। दरअसल, उप चुनाव के लिए भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किए तो सभी प्रमुख नेता दिखाई पहुंचे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने हर जगह पहुंचने की कोशिश की। दूसरी तरफ कमलनाथ कांग्रेस के किसी प्रत्याशी का नामांकन दाखिल कराते नजर नहीं आए। इस पर वीडी शर्मा ने उन्हें घेरा और भूपेंद्र सिंह, नरोत्तम मिश्रा ने भी। कमलनाथ सामने नहीं आए लेकिन उनके मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने मोर्चा संभाला।
उन्होंने कहा कि कमलनाथ के बहनोई का निधन हुआ है। विदेश से उनकी पार्थिव देह दिल्ली आई है। कमलनाथ उसमें हिस्सा लेने की वजह से शामिल नहीं हो सके। भाजपा को इसे मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। सच भी है, ऐसा किसी भी परिवार में हो सकता है। राजनीति में कुछ नैतिकता तो होना चाहिए।
पृथ्वीपुर में बगावत की अलग किस्म….
– बुंदेलखंड की पृथ्वीपुर विधानसभा सीट का मिजाज कभी भाजपा के अनुकूल नहीं रहा। संभवत: इसी कारण उप चुनाव में पार्टी को सपा के उप्र निवासी शिशुपाल यादव को टिकट देना पड़ा। शिशुपाल पिछली बार दूसरे नंबर थे जबकि भाजपा तीसरे क्रम पर खिसक गई थी।
पृथ्वीपुर क्षेत्र से विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन के कारण यहां उप चुनाव हो रहा है। राठौर परिवार का यहां हमेशा दबदबा रहा है। कांग्रेस ने बृजेंद्र के पुत्र नितेंद्र सिंह राठौर को मैदान में उतारा है। भाजपा इस सीट को पहले से अपने पक्ष में नहीं मान रही थी, इसलिए शिशुपाल को आयातित करके लाई। लेकिन इससे क्षेत्र का ब्राह्मण मतदाता नाराज बताया जाता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा यहां नामांकन दाखिल कराने गए तो अलग किस्म की बगावत देखने को मिली।
भाजपा का कोई बागी तो मैदान में नहीं है लेकिन पार्टी का तीन में से एक भी ब्राह्मण दावेदार न बैठक में आया और न ही नामांकन दाखिल कराने। बता दें, एक ब्राह्मण सुनील नायक ही थे जो यहां से खुद जीते और उनकी पत्नी अनीता नायक भी। सागर की एक घटना से पहले से ब्राह्मण भाजपा से नाराज है। करेला और नीम चढ़ा की तर्ज पर ये भाजपा की मुसीबत और बढ़ा सकते हैं।
भाजपा के लिए ‘मजबूरी का नाम परिवारवाद’….
– आम बोलचाल में एक कहावत प्रचलित है ‘मजबूरी का नाम महात्मा गांधी’। उप चुनाव में भाजपा के संदर्भ में इसे कहा जा सकता है ‘मजबूरी का नाम परिवारववाद’। भाजपा इसे पृथ्वीपुर विधानसभा सीट के उप चुनाव में भुनाने की कोशिश कर रही है।
यहां कांग्रेस ने अपने दिवंगत विधायक पूर्व मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर के बेटे नितेंद्र सिंह राठौर को प्रत्याशी बनाया है जबकि भाजपा की ओर से सपा से लाए गए शिशुपाल यादव किला लड़ा रहे हैं। दरअसल, प्रदेश भाजपा नेतृत्व खंडवा लोकसभा सीट के उप चुनाव में पार्टी के दिवंगत सांसद नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्ष सिंह चौहान एवं रैगांव विधानसभा सीट से दिवंगत विधायक वरिष्ठ नेता जुगुल किशोर बागरी के बेटे को टिकट देने के पक्ष में था, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव की सिफारिश पर मुहर लगाई।
दोनों सीटों में प्रदेश नेतृत्व की नहीं चली। लिहाजा, प्रदेश नेतृत्व ने चतुराई का परिचय दिया और पृथ्वीपुर विधानसभा में परिवारवाद को मुद्दा बना लिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा सभाओं में मतदाताओं से कहते हैं कि देखिए हमने परिवारवाद को तवज्जो नहीं दी। आप भी प्रथ्वीपुर में वंशवाद के खिलाफ वोट देकर भाजपा को जिताईए। है न परिवारवाद मजबूरी में बन गया मुद्दा।
न इधर कम असंतोष, उन उधर ऑल इज वेल….
– आमतौर पर जैसा हर चुनाव में होता है, लोकसभा की एक एवं विधानसभा की तीन सीटों के उप चुनाव में भी वही हालात हैं। टिकट वितरण की वजह से न भाजपा में असंतोष कम है और न कांग्रेस में कम नाराजगी।
खंडवा में कांग्रेस के अरुण यादव मजबूरी में पार्टी प्रत्याशी राज नारायण सिंह का काम कर रहे हैं तो भाजपा के हर्ष यादव कोप भवन में हैं। जोबट में कांग्रेस की दिवंगत कलावती भूरिया के भतीजे ने बगावत का झंडा उठा लिया है तो रैगांव में भाजपा के दिवंगत जुगुल किशोर बागरी के बेटे-बहू नाराज हैं।
प्रथ्वीपुर में भाजपा में बाहरी प्रत्याशी लाने से नाराजगी है तो कांग्रेस का एक वर्ग वंशवाद पर मुहर लगने को लेकर असंतुष्ट है। अर्थात उप चुनाव में दोनों तरफ असंतोष की आग भड़क रही है। भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं वीडी शर्मा असंतुष्टों को मना रहे हैं, कांग्रेस में हमेशा की तरह दिग्विजय सिंह के पास यह जवाबदारी है।
कौन कितना डैमेज कंट्रोल कर पाता है, यह उप चुनाव के नतीजे बताएंगे। फिलहाल मुकाबला बराबरी का दिखता है। भाजपा में जहां प्रत्याशी के साथ सरकार और संगठन है तो कांग्रेस में हमेशा की तरह प्रत्याशी को ही सबकुछ करना है। चुनाव रोचक हैं और सबकी नजर नतीजों पर।