Atiq’s Crime Horoscope : अतीक के 44 साल के माफिया राज का अंत 20 सेकंड में!

BSP के MLA राजू पाल की हत्या के बाद हालात बदले और एक अपराध कथा का अंत हुआ!

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Atiq’s Crime Horoscope : अतीक के 44 साल के माफिया राज का अंत 20 सेकंड में!

Prayagraj : माफियाओं का अंत ऐसे ही होता है जैसा शनिवार रात अतीक अहमद का हुआ। अभी तक जितने भी माफिया डॉन हुए उनका अंत या तो पुलिस की गोली से हुआ, आपसी प्रतिद्वंदिता में। उनके अंत का तीसरा कारण होता है कि किसी पीड़ित ने बदले की आग में जलते हुए उसे मार दिया। अतीक और अशरफ की हत्या में तीसरा कारण सामने आया पर अभी हत्यारों की पीड़ा का खुलासा नहीं हुआ।

अतीक अहमद की क्राइम कुंडली ऐसी है जिसने उसे उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का माफिया डॉन बना दिया। लेकिन, 44 साल के अपराध की पूरी कहानी महज 20 सेकंड में खत्म हो गई। अतीक अहमद की आपराधिक कहानी का आगाज करीब 44 साल पहले 1979 में हुआ। उस वक्त इलाहाबाद के चाकिया मोहल्ले में तांगे वाले फिरोज अहमद का परिवार रहता था। फिरोज का बेटा अतीक हाईस्कूल में फेल हो गया। पढ़ाई-लिखाई से उसका मन उचाट गया था। ऐसे में उसे अमीर बनने का चस्का लग गया। उसने इसका रास्ता निकाला और गलत धंधे में पड़ गया। वह रंगदारी वसूलने लगा और मारपीट करने लगा।

17 साल की उम्र में अतीक अहमद पर हत्या का आरोप लग गया था। उस समय पुराने शहर में चांद बाबा का दबदबा था। पुलिस और नेता दोनों चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाहते थे। अतीक अहमद को पुलिस और नेताओं का साथ मिला। लेकिन, बाद में यही अतीक अहमद, चांद बाबा से ज्यादा खतरनाक अपराधी बन गया।

1995 के जून में अतीक अहमद का नाम लखनऊ गेस्ट हाउस कांड में भी सामने आया। वो इस कांड के मुख्य आरोपियों में से एक था, जिन्होंने मायावती पर हमला किया था। मायावती ने गेस्ट हाउस कांड के कई आरोपियों को माफ कर दिया, लेकिन अतीक अहमद को नहीं बख्शा।

मायावती के आते ही लगाम कसी
मायावती के सत्ता में आने के बाद अतीक अहमद की उल्टी गिनती शुरू हुई। मायावती के राज में अतीक अहमद पर कानूनी शिकंजा कसने के साथ उसकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने से लेकर कई बड़ी कार्रवाई हुई। मायावती सरकार के दौरान अतीक जेल की सलाखों के पीछे ही रहा। बसपा के दौर में अतीक का दफ्तर गिरवाने के साथ उसकी संपत्तियां जब्त करवा कर उसे जेल भेजा गया। मायावती के शासन में उसकी राजनीतिक पकड़ पूरी तरह से खत्म हो गई।

2004 में सांसद बना अतीक
यूपी की फूलपुर लोकसभा सीट से बाहुबली नेता अतीक अहमद ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की। इससे पहले अतीक अहमद इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से विधायक थे। लेकिन, उनके सांसद बन जाने के बाद वो सीट खाली हो गई। कुछ दिनों बाद उपचुनाव का ऐलान हुआ. इस सीट पर हुए सपा ने सांसद अतीक अहमद के छोटे भाई अशरफ को अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन, बहुजन समाज पार्टी ने अशरफ के सामने राजू पाल को अपना प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतार दिया। जब उपचुनाव हुआ तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। बसपा के राजू पाल ने अतीक अहमद के भाई अशरफ को हरा दिया।

राजू पाल हत्याकांड
उपचुनाव में अशरफ की हार से अतीक अहमद सहन नहीं कर सका। राजू पाल की जीत की खुशी ज्यादा दिन कायम नहीं रह सकी। पहली बार विधायक बने राजू पाल की 25 जनवरी 2005 को दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड में देवी पाल और संदीप यादव नाम के दो लोगों की भी मौत हुई। जबकि, दो अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस हत्याकांड ने यूपी की सियासत में भूचाल ला दिया।

Atiq's Crime Horoscope : अतीक के 44 साल के माफिया राज का अंत 20 सेकंड में!

इस हत्याकांड में तत्कालीन सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ का नाम सामने आया था। राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने शिकायत दर्ज कराई थी। दिन दहाड़े विधायक राजू पाल की हत्या से पूरा इलाका सन्न था। बसपा ने सपा सांसद अतीक अहमद के खिलाफ धावा बोल दिया। उसी दौरान दिवंगत विधायक राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने थाना धूमनगंज में हत्या का मामला दर्ज कराया। उस रिपोर्ट में सासंद अतीक अहमद, उनके भाई अशरफ, खालिद अजीम को नामजद किया गया था। मामला दर्ज हो जाने के बाद पुलिस ने मामले की छानबीन शुरु कर दी।

हत्याकांड का मुख्य गवाह उमेश पाल
इस मामले में उमेश पाल एक अहम चश्मदीद गवाह था। जब केस की छानबीन आगे बढ़ी तो उमेश पाल को धमकियां मिलने लगी। उसने अपनी जान खतरा बताते हुए पुलिस और कोर्ट से सुरक्षा की गुहार लगाई। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर उमेश पाल को यूपी पुलिस की तरफ से सुरक्षा के लिए दो गनर दिए गए थे।

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विधायक राजू पाल हत्याकांज की जांच पड़ताल और छानबीन में जुटी पुलिस ने रात दिन एक कर दिया था। पुलिस ने इस हत्याकांड की विवेचना करने के बाद तत्कालीन सपा सांसद अतीक अहमद और उनके भाई समेत 11 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।

जांच से राजू पाल का परिवार नाखुश
सीबी-सीआईडी की जांच से राजू पाल का परिवार खुश नही था। निराश होकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मामले को सुनने के बाद देश की सबसे बड़ी अदालत ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का फरमान सुनाया था। 20 अगस्त 2019 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने राजू पाल हत्याकांड में नए सिरे से मामला दर्ज किया और छाबनीन शुरू कर दी। करीब तीन साल विवेचना करने के बाद सीबीआई ने सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।

छह आरोपियों के खिलाफ आरोप तय
1 अक्टूबर 2022 को दिवंगत विधायक राजू पाल हत्याकांड की सुनवाई करते हुए सीबीआई कोर्ट की स्पेशल जज कविता मिश्रा ने छह आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। इस हत्याकांड में पूर्व सांसद अतीक अहमद के भाई पूर्व विधायक अशरफ सहित अन्य लोग शामिल थे। सभी आरोपियों के खिलाफ हत्या, हत्या की साजिश और हत्या के प्रयास में आरोप तय किए गए। हालांकि, कोर्ट के सामने आरोपियों ने आरोपों से इनकार करते हुए ट्रायल की मांग की थी। मामले की सुनवाई के लिए कोर्ट में आरोपी अशरफ और फरहान को जेल से लाकर पेश किया गया। जबकि जमानत पर चल रहे रंजीत पाल, आबिद, इसरार अहमद और जुनैद खुद आकर कोर्ट में पेश हुए थे।

उमेश पाल की हत्या के बाद हालात बदले
प्रयागराज के राजू पाल हत्याकांड का अहम चश्मदीद गवाह उमेश पाल था। उसकी गवाही पर ही बाहुबली अतीक अहमद समेत सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी। उमेश पाल को पहले भी धमकियां मिली थी। यही वजह है कि उसे यूपी पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर दो सुरक्षाकर्मी यानी गनर उपलब्ध कराए थे। इसी साल 24 फरवरी को प्रयागराज के धूमनगंज इलाके में उमेश पाल पर पूरी तैयारी के साथ जानलेवा हमला किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। इसके बाद योगी सरकार ने अतीक की फाइल खोली जो शनिवार रात उसकी हत्या के बाद हमेशा के लिए बंद हो गई।