Atrocities Against Women: Kolkata Doctor Rape and Murder Case : देश की लेखिकाओं के “सवाल स्त्री अस्मिता के”

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Atrocities Against Women
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 तीसरी किस्त

Atrocities Against Women: Kolkata Doctor Rape and Murder Case : देश की लेखिकाओं के “सवाल स्त्री अस्मिता के”

महिलाओं पर अत्याचार :उठो द्रौपदी अब तो शस्त्र सम्हालो,,,जागरूकता का चेतना के दीप जलाकर

                           आवश्यकता है नवचेतना की

प्रभा जैन

महिलाओं के साथ होने वाले संघर्ष लंबे काल से लेकर आजतक भी देखे जारहे हैं।द्रौपदी,सीता आदि से लेकर नारियां कहीं न कहीं प्रताड़ित की गई है समाज जनों द्वारा।भले ही बिटिया शिक्षित हो गई,स्वावलंबी बन गई,बेटे सी बेटियों को नाम देने लग गए किन्तु अत्याचार कभी भी कम नहीं हुए और कुछ अजीब तरीके से बढते ही गए। भले ही बेटियां झांसी की रानी हो गई,पढ़ लीखकर नवाब बन गई,चेतना मयी हो गई फिर भी कुछ परिवारों में दहेज प्रताड़ना, बेटी के जन्म पर य्या कन्या भ्रूण हत्या साधारण सी बात है।लक्ष्मी देवी रूप बोलेते हैं किंतु किसे कदर है उसकी,बस चाबी का खिलौना समझ कर इंसान अपने हिसाब से चलाना चाहता है।और न चले तो तोड़ मरोड़ कर नया
हम अपने आप को पढ़े लिखे दबंगी भी मानते हैं…फिर भी बेटियां प्रताड़ित होने से अछूती नहीं!
कारण है:संस्कार विहीन समाज के दर्शन।
हिंसा,झूठ,चोरी,कुशील,परिग्रह पापों का वातावरण आज की पीढ़ी की सोच को मैला कर रहे हैं।जहां बच्चे बड़े हो रहे हैं वहां एलेक्ट्रोनॉक मीडिया,रील,वीडियो,मोबाइल,tv सीरियल्स मनोरंजन के साधनों में अनाप शनाप डायलाग,चित्र,नशा,हिंसक चित्रों के माध्यम से बुद्धि भृष्ट होने में देर नही लगती।कैसे भी हो धनवान बन जाएं और जिंदगी का मजा लें किसी भी तरह से।मर्डर,दुष्कर्म बदला ये तो स्वयं के स्वार्थ के लिए चुटकियों में कर जाते हैं।
भारतीय संस्कार घरों में ,समाजमे बड़ों छोटों का सम्मान होता था प्यार के रिश्ते होते थे।बस अब तो सब आनंद की दृष्टि सिर्फ धन और शारीरिक आनंद की तरफ ही रहती है।क्या हो गया है इन संस्कारों को?भय ही नहीं नरक में जाने की क्या सजा होती है ।बस दुनिया और अपने जीवन को नर्क बना रहे हैं।
सचमुच बहुत आवश्यकता है नवचेतना की।बेटा बेटी बहू  में किसी भी प्रकार का अंतर न मानकर बेटों की तरह परवरिश करना होगी। लड़का हो या लड़की ,शिक्षा संस्कार के साथ दबंगी बनने के गुर सीखाने होंगे जो दूषित मानसिकता वाले व्यक्तियों के साथ लड़ सके।स्वयं की एवम देश के सम्मान के प्रति कुर्बानी में पीछे न रहे।आज देश सेवा का प्रण तो लेते हैं किंतु थोडी सी लालच के पीछे कर्तव्यों के प्रति अन्याय करते हैं।और सिर्फ स्वयं के भले कि सोचते हैं।अन्याय के प्रति आवाज उठना चाहिये न कि दबाना।कमसे कम ऐसे ही देशसेवकों को चुनना होगा,,जो सुसंस्कारित हो।देश और अपने धर्म,कर्म के प्रति वफादार हो,ओर जो न हो उन्हें जिम्मेदारी से दूर ही रखना चाहिए।सजा देने का कड़ा प्रावधान रखना और उसे अमल भी करना।
फिर भी सबसे पहले बेटियों हमें ही बिना किसी डर के ,जागरूक नवचेतना मय रहना होगा।अकस्मात सेवाओ के नम्बर की जानकारी रखना जरूरी होगा। जिससे तुरंत जागरूक होकर हेल्पलाइन से जुड़कर स्वयं की सुरक्षा कर सकें।जागरूक नारी उन्नत राष्ट्र,नारी नवचेतन से परिवर्तन लाना ही होगा स्वयं की सुरक्षा के लिए।शारीरिक मानसिक रूप से स्वयं को मजबूत बनाना ही होगा।
सरकार को भी स्वयं के देश राज्य की शांति सुख चैन के लिए निस्वार्थ सेवकों को ही चुनना होगा।जिससे पारदर्शिता से हर क्षेत्र में काम हो।उसके लिए सबसे पहले नशाविरोधी कानून,ब्लेक मनी व्यापार,पूरे देश मे हर विभाग हर ऑफिसर पारदर्शिता रखे और हर नियम का सख्ती से पालन हो।तभी देश मे सुख शांति का निर्माण हो सकता है।
उठो द्रौपदी अब तो शस्त्र सम्हालो,,,जागरूकता का
चेतना के दीप जलाकर,
शिक्षित संस्कारित उन्नत
राष्ट्र बनाएं,
जागरूकता से स्वयं चेतनापूर्ण सबला बन जाएं,
मानव धर्म,संस्कार,संस्कृतिसे पूरे भारतीय समाज को ऊंचा उठाएं।उठो द्रौपदी शस्त्र सम्हालें,अन्याय के समक्ष आवाज उठाएं।

 प्रभा जैन

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समाजसेवी,लेखिका

सदस्य{पंडित दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति,भोपाल }

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2.देश में बढ़ती पैशाचिक प्रवृत्ति: पीड़ित लड़की अगर आज किसी और परिवार की है तो कल आपके परिवार की भी हो सकती है

शीला मिश्रा

भारतीय संस्कृति की अवधारणा में नैतिक मूल्यों पर विशेष रुप से जोर दिया गया है । आपसी सद्भाव ,स्नेह, विश्वास, परोपकार ,निष्ठा जैसे भाव नैतिक मूल्यों को कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे प्रत्येक त्योहार के मूल में भी मूल रुप से भाईचारा ,प्रेम व निष्ठा ही समाहित है लेकिन आज नैतिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाई जा रहीं हैं। धन के पीछे भागते लोगों ने सारे मानवीय संबंधों को ताक पर रख दिया है।यहाँ तक कि भाई ही भाई का दुश्मन हो गया है। मानवीय संवेदना से रिक्त मन केवल स्व पर केन्द्रित हो गया है। ऐसे में सामाजिक संरचना पूरी तरह से चरमरा गई है। इसीलिए जहाँ समरसता का रस सूख गया है वहीं भौतिक संपन्नता के प्रति आकर्षण प्रमुखता से दृष्टिगोचर हो रहा है। इस भौतिकतावादी जीवन शैली में विश्वास की नींव हिल गई है और नारी के प्रति आदर व सम्मान का भाव लुप्त होता जा रहा है। इतिहास साक्षी है कि हमारे देश में स्त्री की अस्मिता की रक्षा करने के लिए लोग अपने प्राणों की बाजी तक लगा देते थे लेकिन अब आये दिन स्त्री की अस्मिता पर हमले हो रहें हैं,सरे आम उसकी इज्जत लूटी जा रही है । नैतिक मूल्यों के क्षरण व बढ़ती मानवीय असंवेदनहीनता पर चिंतन अत्यंत आवश्यक है।
आज महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में अपनी दक्षता व कुशलता का परिचय देकर सफलता की नई इबारत तो लिख रहीं हैं लेकिन अपने आस- पास घूम रहे पुरुषों में से राक्षसी प्रवृत्ति के पुरुषों को पहचानने में असफल हैं परिणाम स्वरूप आये दिन नारी की अस्मिता लूटी जा रही है ।2012 दिसम्बर को दिल्ली में और 8 अगस्त को कोलकाता में जिस हैवानियत के साथ इन दो छात्राओं के साथ बलात्कार हुआ है,वह झिंझोड़कर रख देता है। जिस देश की जीवन पद्धति में करुणा का स्थान सर्वोपरि रहा हो ,वहाँ ऐसी दरिंदगी मन को दहला जाती है।
आज हम सबने एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद नहीं की तो हैवानों के हौसले बुलंद होंगे और इस तरह की घटनाएं दोहराई जाएंगी। जब यूक्रेन- रशिया का युद्ध आरंभ हुआ तब शत्रु देश के सैनिकों द्वारा नारी की अस्मिता लूटी गई ,अभी कुछ दिन पहले बांग्लादेश में जब तख्तापलट हुआ तब भी अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं की सरे आम इज्जत लूटी गई । नारी अबला नहीं है ,वह अपनी दक्षता व कुशलता के बल पर आज प्रत्येक क्षेत्र में शिखर पर है लेकिन शारीरिक संरचना के रुप में कमजोर तो है ,इसी का फायदा उठाते हुए चाहे दो समूह में लड़ाई हो ,दो समुदाय में लड़ाई हो या दो देश में , बर्बरतापूर्वक हमला नारी के शरीर पर ही किया जाता है। ऐसी घटनाओं को देखकर या सुनकर प्रत्येक संवेदनशील मन अवश्य व्यथित होता होगा। कोलकाता में जो घटना घटी है , उसमें भी एक बात,जो सामने निकलकर आ रही है वह यह कि पीड़िता किसी घोटाले को उजागर करना चाहती थी , इसलिए उसकी हत्या की योजना बनाई गई लेकिन उसके पहले उसका शारीरिक शोषण किया गया और दुख तो इस बात का है कि एक सरकारी संस्थान में यह बर्बरतापूर्ण कांड हुआ है।आखिर उन पिशाचों में इतनी हिम्मत कहां से आई …?उनके मन में संस्था प्रमुख का डर क्यों नहीं था ..? पुलिस ने इस बर्बर कांड पर सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की …?
इन तीन सवालों के जवाब में ही इसके राज छिपे हैं। जिसके हाथ में प्रदेश की बागडोर है अगर वही असंवेदनशील होते हुए अपराधियों के साथ है तो प्रदेश की जनता तो कदापि सुरक्षित नहीं है।
कोलकाता की घटना ने पूरे देशवासियों को हिला के रख दिया है आखिर कैसे मान लें कि जिन्होंने यह नृशंस कार्य किया है वे इंसान हैं….,कहा जा रहा है कि इंसान के रूप में वह जानवर है लेकिन ऐसी बर्बरता तो जानवर भी नहीं करता …, वास्तव में ये दुर्दांत असुर हैं । हर युग में सुर व असुर होते आये हैं किन्तु ये असुर ऐसे हैं , जिन्हें एक सभ्य समाज में रहने का हक ही नहीं है । इन्होंने नारी के मान का ,उसकी अस्मिता का ही मर्दन नहीं किया है अपितु उसके शरीर के साथ, अंग-प्रत्यंग के साथ जो घृणित कृत्य किया है, उसके लिए उन्हें मृत्यु की सजा दी जानी चाहिए वो भी सरे आम, ताकि जिस किसी के मन में असुर प्रवृत्ति जन्म ले रही हो, उसकी रुह ऐसी मौत को देखकर काँपे और हर वह शख्स ,जो नारी पर कुदृष्टि रखता है,वह इस दंड को देखकर अपनी पैशाचिक प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखने को विवश हो तभी ऐसे कुकृत्य पर अंकुश लगाया जा सकता है।
अब समय आ गया है कि हम अपनी व्यवस्था पर भी पुनरावलोकन करें। पहले प्राथमिक शिक्षा में नैतिक मूल्यों पर विशेष जोर दिया जाता था।उसके अंतर्गत कहानियों के माध्यम से मानवीय गुण बच्चे के मन में रोपित कर दिये जाते थे। परिवारों में भी कहानियों के माध्यम से नैतिकता की शिक्षा दी जाती थी। आज इस पर चिंतन करने का समय है क्योंकि छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल व आईपैड थमाकर माता -पिता अपने दायित्व से विमुख हो रहें हैं और बच्चे मोबाइल व टी वी पर क्या देख रहें हैं , इससे अनजान रहते हैं।पिछले कुछ वर्षों से यह देखने में आ रहा है कि टी वी में आने वाले कार्यक्रमों में तथा फिल्मों में नारी को उपभोग की वस्तु की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है ,इस ओर सरकार का ध्यान आकर्षित कराना आवश्यक है। इसके लिए मानवीय मूल्यों के लिए स्थापित संस्थाओं को आगे आना चाहिए तथा एक आंदोलन के रूप में अपनी बात को उठाकर सरकार को इस बात के लिए विवश करना चाहिए कि ऐसे धारावाहिक, फिल्म व एड पर वह अंकुश लगाये, जिसमें नारी के शरीर को ग़लत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। यह नहीं भूलना चाहिए कि पीड़ित लड़की अगर आज किसी और परिवार की है तो कल आपके परिवार की भी हो सकती है।
अंत में एक बात और…..,जिस पीड़िता के पीछे कोई संस्थान है , उसके लिए आवाज उठाने वाले उस संस्थान के लोग हैं लेकिन जो निम्नवर्ग या मध्यमवर्ग की लड़की है,जो कहीं कार्यरत नहीं है , उसके साथ हुए दुषकर्म केवल दो दिन अखबार की सुर्खी बनकर न्याय की आशा में दम तोड़ देते हैं। क्या महिलाओं का कर्तव्य नहीं है कि ऐसे जघन्य कृत्य पर अपना विरोध दर्ज करायें। मुखर होकर अपनी आवाज इतनी बुलंद करें कि न्याय व प्रशासन की निद्रा व तंद्रा भंग हो। हमारे देश में अनेकों सामाजिक संस्थाएं हैं लेकिन ऐसे मामले में उनकी चुप्पी अचंभित करती है। समाज की यही सुप्तावस्था कहीं समाज को जंगल राज में तब्दील न कर दे।

शीला मिश्रा

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एक जानी- मानी साहित्यकार हैं, सदस्य{पंडित  दीनानाथ व्यास स्मृति प्रतिष्ठा समिति,भोपाल }

उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिष्ठित ” दुष्यंत कुमार पुरस्कार ” से सम्मानित किया गया है

पता:-बी-4,सेक्टर-2, रॉयल रेसीडेंसी,
शाहपुरा थाने के पास, बावड़ियां कलां,
भोपाल,462039

द्वितीय किस्त- Kolkata Doctor Rape and Murder Case : देश की 100 वूमन एचीवर्स के “सवाल स्त्री अस्मिता के” 

Kolkata Doctor Rape and Murder Case : देश की 100 वूमन एचीवर्स के “सवाल स्त्री अस्मिता के” 

Kolkata Doctor Rape and Murder Case: देश की 100 वूमन एचीवर्स द्वारा “सवाल स्त्री अस्मिता के” विषय पर परिसंवाद आयोजित