

Bangalore Stampede: क्या राज्य सरकारें इस घटना से भविष्य के लिए कोई सीख लेंगी!
– एन के त्रिपाठी
कल बंगलौर के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर ग्यारह नौजवान युवक, युवती एवं बच्चों की हृदय विदारक मृत्यु से पूरा देश आहत हुआ है। क्रिकेट जैसे सर्वाधिक लोकप्रिय खेल में बैंगलोर की टीम का 18 वर्ष बाद पहली बार चैंपियन बनने से युवा प्रशंसकों में हर्षोल्लास के साथ अपनी टीम की एक झलक लेने की तीव्र लालसा थी। परंतु इन असामयिक दुखद मृत्यु के कारण पूरा वातावरण बदल गया।
यक्ष प्रश्न यह है कि क्या क़ानून व्यवस्था की ज़िम्मेदारी उठाने वाली राज्य सरकारें इस घटना से भविष्य के लिए कोई सीख लेंगी। इसका उत्तर है कदापि नहीं। भारत में मेलों, मंदिरों एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भगदड़ होना एक सामान्य सी बात है। हर दुर्घटना के बाद अगली दुर्घटना की आशंका छायी रहती है। वैसे भी भारत में चाहे सड़क दुर्घटना हो, प्राकृतिक विपदा हो अथवा भगदड़, मानव जीवन का महत्व नगण्य है।
भारतीय राजनेता,चाहे वे किसी भी पार्टी के हों, वे अपने को स्वयमेव एकत्र भीड़ में अपना चेहरा दिखाने का मोह छोड़ नहीं पाते हैं। चाहे किसान आंदोलन हो, महाकुंभ हो या खेल का मैदान, वहाँ एकत्र भीड़ इन नेताओं को आकर्षित करती है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री अचानक क्रिकेट के प्रेम से ओत प्रोत हो गए। टीम के हवाई अड्डे पर उतरते ही उपमुख्यमंत्री स्वागत के लिए उपस्थित थे। विधानसभा और क्रिकेट स्टेडियम में अविलम्ब कार्यक्रम आयोजित कर दिए गए। बीती रात को प्रशंसक जीत के जश्न में सड़कों पर घूम रहे थे और पुलिस भी सड़कों पर थी।उसी थकी हुई पुलिस को इन दोनों कार्यक्रमों और रूट की ज़िम्मेदारी दे दी गई। आश्चर्य है कि मुख्यमंत्री कह रहे है कि उन्हें इतनी अधिक भीड़ की अपेक्षा नहीं थी।कुछ कह रहें है कि भीड़ की संख्या की इंटेलिजेंस उपलब्ध नहीं थी। सामान्य बुद्धि का नागरिक भी यह बता सकता है कि ऐसे ऐतिहासिक विजय के अवसर पर लाखों की भीड़ उमड़ पड़ेगी। नेताओं को कोई धैर्य नहीं था और वे टीम के उतरते ही कार्यक्रम रखना चाहते थे। पूर्व के अन्य उदाहरणों की तरह बंगलौर टीम को एयरपोर्ट से खुली जीप में बैठाकर शहर के विभिन्न मार्गों पर होते हुए लाखों लोगों को उनका दर्शन कराया जा सकता था। इससे अपने आप कार्यक्रमों में भीड़ कम हो जाती। अगले दिन संयमित एवं समुचित प्रबंध के साथ गरिमामय तरीक़े से कार्यक्रम सम्पन्न कराए जा सकते थे।
बैंगलोर पुलिस भी अपनी ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकती है। भगदड़ होने से पूर्व भीड़ का हुजूम दिखाना प्रारंभ हो गया था। परंतु पुलिस ने कोई नीति बदलने की कार्रवाई नहीं की। दोनों कार्यक्रम स्थल आस पास स्थित हैं। इन स्थलों तक आने वाली मैट्रो को काफ़ी दूर पर ही रोका जा सकता था। सड़कों पर दूर से ही ट्रैफ़िक को परिवर्तित मार्गों पर भेजा जा सकता था। विधानसभा से स्टेडियम तक टीम को खुली बस पर ला कर खिलाड़ियों का दर्शन करवा कर बड़ी संख्या में जनता को विसर्जित किया जा सकता था। पुलिस द्वारा नेताओं पर स्टेडियम का कार्यक्रम अगले दिन करवाने के लिए दबाव डाला जा सकता था। दुर्भाग्यवश ऐसे पुलिस के नेतृत्व का अभाव है। मुख्यमंत्री द्वारा मजिस्ट्रेट जाँच और मुआवज़े की रस्म अदायगी कर दी गई है। किस पार्टी का कौन सा राजनैतिक नेता क्या कहेगा, यह हम सब पहले से ही जानते हैं। कल से हम दूसरी घटनाओं में व्यस्त हो जाएंगे। इस घटना से कोई भी किसी भी प्रकार का सबक़ नहीं लेगा।