आगमन और विदाई के बीच बातें हों प्रेम और विश्वास भरी…
बहुत ही सुखद अनुभूति है, जिसे दर्शन से जोड़कर भी देखा जा सकता है या फिर ऐसी दुनिया की कल्पना की जा सकती है, जिसमें प्रेम और विश्वास की गंगा जीवन को सुखद अहसास से सराबोर रखे। शुक्रवार को राजधानी भोपाल में 7वें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शामिल हुई। उनके आगमन और विदाई के बीच अल्प समय ही था, जिसमें उन्होंने धर्म-धम्म सम्मेलन का उद्घाटन किया। उनके आगमन और विदाई के बीच राजधानी के कुशाभाऊ ठाकरे कंवेंशन सेंटर में बात हुई जीवन को प्रेम और विश्वासमय करने की। राष्ट्रपति ने स्वयं ही कहा कि धर्म-धम्म की हमारी परंपरा में “सर्वे भवंतु सुखिन:” की प्रार्थना हमारे जीवन का हिस्सा रही है। यही पूर्व के मानववाद का सार-तत्व है और आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत भी है। अगर यही मूल भाव सबके जीवन में चरितार्थ हो जाए तो शायद रामराज्य की कल्पना ही साकार हो जाए। और तब पूरी दुनिया धर्म-धम्म की रोशनी से सराबोर हो जाए और मानो दुखों का नामोनिशान ही न रहे।हो सकता है आज यह कल्पना हो लेकिन यह भरोसा किया जा सकता है कि कभी न कभी यह सोच साकार भी होगी।
धर्म और धम्म सम्मेलन की प्रेम, करुणा और विश्वास की मर्म भरी चर्चा पर गौर करें तो राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने कहा कि धर्म-धम्म की अवधारणा भारतीय चेतना का मूल स्वर रही है। हमारी परंपरा में कहा गया है कि जो सबको धारण करता है, वह धर्म है। धर्म की आधार-शिला पर ही पूरी मानवता टिकी हुई है। राग और द्वेष से मुक्त होकर मैत्री, करूणा और अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज का विकास करना, पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई उस पर धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। यह प्रभाव लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रहरियों पर भी हो और लोकतंत्र के मंदिरों में प्रेम और विश्वास से भरे माहौल में सर्वे भवन्तु सुखिन: की चर्चा हो, ताकि लोकतंत्र के प्रहरियों के प्रति आम मतदाता प्रेम और विश्वास से भर जाए।
धर्म और धम्म सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में राज्यपाल मंगू भाई पटेल ने भी बहुत ही प्रभावी अपील करते हुए कहा कि हमारे भारतीय दर्शन की मान्यता इस विश्वास में निहित है कि विश्व सबके लिए है। युद्ध की कोई आवश्यकता ही नहीं है। मानवता के कल्याण के लिए शांति, प्रेम और एक-दूसरे के प्रति विश्वास आवश्यक है। हमारे देश की सदियों पुरानी परंपरा विश्व शांति और मानव जाति के कल्याण में विश्वास रखती है और उसे बढ़ावा देती है। समृद्ध समाज, राष्ट्र एवं विश्व निर्माण के लिए भारतीय सांस्कृतिक और सभ्यतागत अंतर्संबंधों की सदियों से चली आ रही चिंतन परम्परा पर बदलते समय और परिप्रेक्ष्य में नई दृष्टि से विचार समय की ज़रूरत है। शायद आज भी बात जब रूस-यूक्रेन की हो, भारत-पाक की हो या इजरायल-फिलिस्तीन की हो, तो प्रेम और विश्वास तार-तार हो जाता है। सभ्यतागत अंतर्संबंधों की सदियों से चली आ रही चिंतन परम्परा साकार रूप ले, तब शायद यह दुनिया रूस-यूक्रेन के रास्ते विश्व युद्ध की तरफ बढ़ने की जगह प्रेम और विश्वास से भरी नजर आने लगे। और तब सर्वे भवन्तु सुखिन: का मंत्र सार्थक हो सके।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने याद दिलाया कि गौतम बुद्ध ने युद्ध नहीं शांति, घृणा नहीं प्रेम, संघर्ष नहीं समन्वय, शत्रुता नहीं मित्रता को जीवन में आवश्यक माना है। यही वह मार्ग है जो भौतिकता की अग्नि में दग्ध मानवता को शाश्वत शांति के पथ का दिग्दर्शन करायेगा। पर सबसे बड़ी बात यही है कि राजनीति में शिखर पर अपनी भूमिका निभा रहे राजनेता ही अगर ऐसे भावों से ओतप्रोत हो जाएं तो पारस्परिक प्रेम और सद्भाव की गंगा पूरी दुनिया में बहने लगे। तब भ्रष्टाचार, अत्याचार, बलात्कार, अपराध और द्वेष भाव जड़ मूल से ही खत्म हो जाए। और तब दु:खों का दुनिया से समूल नाश हो जाए। अहंकार नष्ट हो जाए और विनम्रता, उदारता, सहजता और सरलता का राज हो जाए। तब शायद यह दुनिया प्रेम और विश्वास से भरी नजर आने लगे।
उम्मीद यही कि राष्ट्रपति मुर्मू के भोपाल आगमन और विदाई के बीच धर्म-धम्म सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में कुशाभाऊ ठाकरे कंवेंशन सेंटर प्रेम और विश्वास से भरा नजर आया। ऐसे ही हर इंसान का जीवन इस दुनिया में आगमन और इस दुनिया से विदाई के बीच प्रेम और विश्वास से भरा रहे, तब शायद इस धरती पर नकारात्मकता पूरी तरह से खत्म हो जाए और पूरा जग सकारात्मकता से भर जाए। तब शायद समस्या नाम की चीज न रहे और जहां नजर जाए वहां सुख ही सुख फलता फूलता नजर आए…। तब ही गौतम बुद्ध मुस्करा पाएंगे और धर्म-धम्म का राज होगा।