Bhariya Tribe Youth Becomes Deputy Collector : भारिया जनजाति का युवक निशांत पहला डिप्टी कलेक्टर बना, MPPSC में 19वीं रैंक आई!

सिविल इंजीनियर युवक ने पटवारी रहते हुए परीक्षा दी और सफलता पायी!

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Bhariya Tribe Youth Becomes Deputy Collector : भारिया जनजाति का युवक निशांत पहला डिप्टी कलेक्टर बना, MPPSC में 19वीं रैंक आई!

Jabalpur : निशांत भारिया ने इस बार की राज्य सेवा परीक्षा में इतिहास रच दिया। वे इस जनजाति के पहले युवक हैं, जिन्हें डिप्टी कलेक्टर पद के लिए चुना गया है। पातालकोट इलाके के रहने वाले निशांत भूरिया ने पटवारी रहते हुए एमपीपीएससी की परीक्षा दी और सफलता पाई। 2022 की एमपीपीएससी परीक्षा में निशांत की रैंकिंग 19 रही। निशांत भूरिया को मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफल होने पर डिप्टी कलेक्टर का पद मिलेगा। उन्होंने जनजाति समुदाय में पूरे प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त। निशांत की उम्र मात्र 25 साल है।

सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद निशांत को पोस्ट ऑफिस में नौकरी मिली। बाद में जबलपुर के ही पाटन में ही वे पटवारी के रूप में पदस्थ हुए। पटवारी रहते हुए ही उन्होंने मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी, जिसमें सफलता मिली।

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भारिया जनजाति में डिप्टी कलेक्टर बनने वाला निशांत पहला युवक है। उनकी यह उपलब्धि सामान्य नहीं है। क्योंकि, निशांत भारिया जिस जनजाति से हैं, वह बेहद पिछड़ी जनजाति मानी जाती है। उसे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाने वाले टीचर सिद्धार्थ गौतम का दावा है कि भारिया जनजाति में पहली बार कोई डिप्टी कलेक्टर तक के पद पर पहुंचा है। इस पिछड़ी जनजाति का नाता मध्य प्रदेश के पातालकोट से है।

निशांत के पिता मुकेश भूरिया उसके जन्म के पहले मजदूरी करने पातालकोट से जबलपुर आए थे। मुकेश भूरिया साक्षर हैं और निशांत की मां बिल्कुल पढ़ी-लिखी नहीं है। निशांत की पढ़ाई जबलपुर के लज्जा शंकर झा मॉडल हाई स्कूल से हुई। यहां निशांत ने गणित विषय से 12वीं की परीक्षा 93% अंकों से पास की थी। यहीं से उन्होंने इंजीनियरिंग का एंट्रेंस निकाला और जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया।

निशांत अपनी इस सफलता का श्रेय अपने गुरु सिद्धार्थ गौतम को देते है। सिद्धार्थ गौतम जबलपुर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं। उनका कहना है कि निशांत और उनके भाई को भी हमेशा मुफ्त शिक्षा देते रहे। क्योंकि, दोनों भाइयों में गजब की काबिलियत थी और उन्हें उम्मीद थी यदि इन्हें सही शिक्षा दी जाए तो यह प्रतियोगी परीक्षाएं निकाल सकते हैं। निशांत का कहना है कि यदि मौका मिला तो वे अपनी जनजाति के लोगों का जीवन स्तर सुधारने का काम करेंगे और उन्हें शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ेंगे।

निशांत अभी भी अपनी जड़ों से जुड़े हैं और उनका शौक आदिवासी खाना बनाना है। वे महुआ से जुड़े व्यंजन और आदिवासी खाना रुचि से बनाते हैं। एमपीपीएससी के बारे में निशांत के विचार हैं कि यही कोई परीक्षार्थी लगन और समर्पित होकर एमपीपीएससी की तैयारी करता है, तो इस परीक्षा में सफलता पाना मुश्किल नहीं है।