Bhopal CPA: PWD और वन विभाग हुआ ओवरलोड, इसलिये फिर बन रहा है CPA

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Bhopal CPA: PWD और वन विभाग हुआ ओवरलोड, इसलिये फिर बन रहा है CPA

भोपाल। राजधानी में जिन सड़कों के खराब रखरखाव को लेकर राजधानी परियोजना को बंद किया गया था अब वही उसके लिये चाबी बन कर सामने आयी हैं। हालत यह है कि सीपीए का काम भले ही पीडब्ल्यूडी और वन विभाग को बांटा गया था लेकिन इनके ओवरलोड होने के कारण एक बार फिर इसको चालू करने की तैयारी चल रही है।
CPA के पास केवल सड़कें ही नहीं बल्कि और भी कई काम थे जो दूसरे विभागों के लिये आगे चल कर लोड बनने लगे। इन सबको देख कर ही अब इस विंग को दोबारा चालू करने की तैयारी चल रही है।

क्या स्थिति है

-एक नवंबर 1956 को भोपाल में राजधानी के अनुरूप सुविधाएं विकसित करने के लिए 1960 में सीपीए का गठन किया गया था।
-एक समय में पुराने शहर का मेंटनेंस नगर निगम और नए शहर का मेंटनेंस सीपीए करता था।
– उसके बाद CPA पूरे शहर में सरकारी भवन, पार्क और मास्टर प्लान रोड का निर्माण और रखरखाव करने लगा था।
– 2021 में शहर की सड़कों के खस्ताहाल होने पर नाराजगी जाहिर करते हुए तत्कालीन सीएम शिवराज ने सीपीए को बंद करने का निर्णय लिया था और उसके काम को बांट दिया था।
– पर जिन विभागों को यह काम बांटा गया था वह भी इसको सही तरीके से नहीं कर पाये।

क्या जरूरी है CPA

– राजधानी परियोजना में फाइलें लंबी नहीं चलती हैं। यहां पर फैसले आसानी से होते हैं। क्योंकि यहां प्रशासक ही अंतिम निर्णय लेते हैं। इसलिए विकास के काम तेजी से होते हैं। राजधानी के किसी भी विकास कार्य में अगर फंड बढ़ाना हो तो सीपीए में मंजूरी प्रक्रिया आसान है। यहां पर सीपीए में टेंडर प्रक्रिया भी आसान है। इसमें ईई और एसई के स्तर पर ज्यादातर टेंडर मंजूर हो जाते हैं। काम बढ़ने पर यहां वर्क ऑर्डर में संशोधन के लिए उच्चस्तरीय मंजूरी जरूरी नहीं होने से लोकल लेवल पर काम तेजी से पूरा कर लिया जाता है।

काम तो बंटे पर पूरे नहीं हो पाया

सरकार की मंजूरी के बाद सीपीए को बंद करने के निर्णय पर मुहर भी लग गई थी। सीपीए के बंद होने के बाद सीपीए की 92.5 किमी सड़कें और भवनों के साथ मयूर पार्क, शौर्य स्मारक, प्रकाश तरण पुष्कर सहित 24 पार्क पीडब्ल्यूडी को सौंप दिए गए थे। इसके लिए पीडब्ल्यूडी में एक सीपीए डिविजन बनाया गया था। लेकिन उसे बाद भी उनकी हालत सुधर नहीं सकी। एकांत पार्क जैसे नगर वन का रखरखाव वन विभाग को सौंपा गया था लेकिन वह भी मानकों पर खरा नहीं उतर सका।