
भोपाल में 6 प्रोजेक्ट्स की वजह से मेट्रो रेल की लागत बढ़ी, अब फंड की जुगाड़
भोपाल। राजधानी में चल रहे फ्लाईओवर और सड़क निर्माण के कई प्रोजेक्ट्स की धीमी चाल के साथ ही प्लानिंग और को-ऑर्डिनेशन की कमी की वजह से इनकी लागत 2,675 करोड़ रुपए तक बढ़ चुकी है। यदि ये प्रोजेक्ट समय पर पूरे हो जाते और इतनी रकम बचती तो इससे एक तरफ मंडीदीप और दूसरी तरफ सीहोर तक मेट्रो के लिए बजट की कमी नहीं होती। अब कापोरेशन फंड की जुगाड़ में लगा है ताकि इसकी रन शुरू होने से पहले इसका खर्चा कैसे निकाला जाएगा इसकी प्लानिंग की जा सके।
मेट्रो में ही लग गये नौ साल
2009 में भोपाल मेट्रो की घोषणा की गयी थी लेकिन इसकी डीपीआर को मार्च 2016 में अंतिम रूप दिया गया। इसमें ही 9 साल लग गए। 2018 में पहला वर्क आॅर्डर हुआ। मेट्रो आ चुकी है, लेकिन स्टेशन अब बनकर तैयार हुए हैं लेकिन वह भी पूरे नहीं हो पाये हैं।
मेट्रो रेल कॉपोर्रेशन लिमिटेड ने भोपाल मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु 373 निजी स्वामियों की पहचान की है। पिछली परियोजनाओं जैसे बीआरटीएस और स्मार्ट सिटी डेवलेपमेंट से अलग, जिनमें कोई मौद्रिक मुआवजा नहीं दिया गया था, इस परियोजना में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन कर रहा है, क्योंकि इसे यूरोपीय निवेश बैंक से 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के कर्ज की जरुरत है।
सामने है मुआवजे की उलझन
भोपाल मेट्रो परियोजना के दौरान, सभी प्रभावितों के लिए मुआवजा संपत्ति के आकार के आधार पर 2020 तक की जमीनी फोटोग्राफी और सैटेलाइट इमेजरी के माध्यम से निर्धारित किया जाएगा। इस बात से वह लोग हैरान हैं, जिन्होंने हाल ही में अपनी संपत्तियों का विस्तार किया है, इस उम्मीद में कि उन्हें अधिक मुआवजा मिलेगा। पर यह कैसे मिलेगा यह क्लियर नहीं है।
क्या है लेटलतीफ की वजह
इन प्रोजेक्ट्स की लेटलतीफी की वजह बिना पूरी तैयारी के डीपीआर बनाना, दूसरी एजेंसियों में तालमेल की कमी और सरकारी इंजीनियरों की सलाह पर निर्भरता भी है। 2,675 करोड़ रुपए जनता की जेब से वसूली गई राशि है। इसका ठीक उपयोग किया जाए तो मंडीदीप और सीहोर तक मेट्रो बढ़ाने जैसे प्रोजेक्ट के लिए बजट की कमी नहीं होती। यदि राज्य सरकार के पास 2,675 करोड़ रुपए हैं तो वह 13,375 करोड़ रुपए का मेट्रो प्रोजेक्ट लागू कर सकती है।





