
भू गौरी लेप कार्यशाला सम्पन्न: गौबर पेंट से सजी संवरी वृद्धाश्रम की दीवारें
गौवंश हमारी अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है। दूध, से ज्यादा गौबर, गौमूत्र उपयोगी व मूल्यवान है। भू गौरी लेप प्राचीन व आधुनिक सामग्री का मिश्रण है। यह बाहरी व आंतरिक दोनों दीवारों पर उपयोगी है। वृद्धाश्रम के वृद्धजनों के नवाचार बहुत अच्छे है। गौबर पेंट निर्माण को सीखकर व और उपयोगी कार्य कर सकते है। ये विचार गौबर पेंट प्रशिक्षक राघव शरद देवस्थले ने व्यक्त किए। श्री राघव ने वृद्धाश्रम गौशाला का अवलोकन किया व निर्मित हवनकंडे को और उपयोगी बनाने के तरीके सुझाए।
कार्यशाला की प्रस्तावना रखते हुए भोज शोध संस्थान के निदेशक डॉ दीपेंद्र शर्मा ने बताया कि हमारे वृद्धजन लाचार, असहाय नहीं सक्रिय व नवाचारी है। अपने अनुभव से अपना जीवन बेहतर बना रहे है। ऊर्जा बचत, संचालन सहयोग, प्राकृतिक खेती, गौबर दीपक व हवन कंडे निर्माण उनकी सक्रियता का प्रतीक है। कार्यशाला में वृद्धजनों के साथ संस्कार भारती के अतुल कालभवर, आर्टिष्ट अनूप श्रीवास्तव, करन भाई, चित्रकला विभाग से डॉ साधना चौहान, बायोरे से प्रतिभा सोनी, दुर्गा गोस्वामी ने विशेषरूप से सहभागिता की। अतिथि स्वागत वृध्द वत्सला बाचपेयी ने आश्रम के फूल पत्तियों से निर्मित पुष्पगुच्छ से किया। वृद्ध महेश जी ने स्वयं दीवार पेंट की। यह जानकारी मीडिया प्रभारी रॉकी मक्कड़ ने दी।
चित्र में कार्यशाला में निर्मित पेंट से पूती दीवार






