बिचारपुर कह रहा, एक रईस हो तो सब मुमकिन है…

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बिचारपुर कह रहा, एक रईस हो तो सब मुमकिन है…

कौशल किशोर चतुर्वेदी की खास रिपोर्ट

युवाओं को सही दिशा और मूलभूत संसाधन मिल जाएं, तो वह तारे तोड़कर जमीन पर ला सकते हैं। रईस अहमद जैसे इंसान सूरज बनकर अंधेरे में डूबे गरीब और पिछड़े बिचारपुर और आसपास के क्षेत्र को फुटबॉल क्रांति से रोशन कर सकते हैं। बिचारपुर गांव में, गांव की अधिकांश आबादी अनुसूचित जनजाति (एसटी) से है। बिचारपुर गांव में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 74.78% है जबकि अनुसूचित जाति (एससी) की आबादी कुल आबादी का 3.56% है। अधिकांश आबादी मजदूरी कर जीविकोपार्जन करती है। यह गांव जो कभी शराब और नशे की गिरफ्त में था, वहां आज सिर्फ फुटबॉल का नशा सिर चढ़कर बोल रहा है। बिचारपुर से फैली फुटबॉल की सुगंध ने अब पूरे क्षेत्र को महका दिया है। और अब इस महक से पूरा देश सराबोर हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मन की बात में करीब साढ़े तीन मिनट बिचारपुर का जिक्र करते हैं। यह कोई साधारण बात नहीं है। उद्गार व्यक्त करते हैं कि मध्यप्रदेश के शहडोल में एक गाँव बिचारपुर है, जिसे मिनी ब्राजील कहा जाता है। मिनी ब्राजील इसलिए,क्योंकि यह गाँव आज फुटबॉल के उभरते सितारों का गढ़ बन गया है। इसमें रईस अहमद का भी जिक्र करते हैं, जो वास्तव में युवाओं में हुनर गढ़ने का स्रोत बनकर आदर्श बन गए। और इसी बदौलत आज बिचारपुर इस मुकाम पर पहुंचकर कह रहा है कि जुनून, जज्बा और एक रईस हो तो सब मुमकिन है।
पीएम मोदी ने रविवार को मन की बात में मध्य प्रदेश के बिचारपुर गांव के ‘मिनी ब्राजील’ बनने की यात्रा के बारे में बात करते हुए कहा कि, ये यात्रा दो-ढाई दशक पहले शुरू हुई थी। उस दौरान, बिचारपुर गांव अवैध शराब के लिए बदनाम था, नशे की गिरफ्त में था। इस माहौल का सबसे बड़ा नुकसान यहां के युवाओं को हो रहा था। एक पूर्व नेशनल प्लेयर और कोच रईस अहमद ने इन युवाओं की प्रतिभा को पहचाना। रईस जी के पास संसाधन ज्यादा नहीं थे, लेकिन उन्होंने, पूरी लगन से, युवाओं को, फुटबॉल सिखाना शुरू किया। कुछ साल के भीतर ही यहां फुटबॉल इतनी पॉपुलर हो गयी, कि बिचारपुर गांव की पहचान ही फुटबॉल से होने लगी। अब यहां फुटबॉल क्रांति नाम से एक प्रोग्राम भी चल रहा है। इस प्रोग्राम के तहत युवाओं को इस खेल से जोड़ा जाता है और उन्हें ट्रेनिंग दी जाती है। ये प्रोग्राम इतना सफल हुआ है कि बिचारपुर से नेशनल और स्टेट लेवल के 40 से ज्यादा खिलाड़ी निकले हैं। ये फुटबॉल क्रांति अब धीरे-धीरे पूरे क्षेत्र में फैल रही है। शहडोल और उसके आसपास के काफ़ी बड़े इलाके में 1200 से ज्यादा फुटबॉल क्लब बन चुके हैं। यहां से बड़ी संख्या में ऐसे खिलाड़ी निकल रहे है, जो नेशनल लेवल पर खेल रहे हैं। फुटबॉल के कई बड़े पूर्व खिलाड़ी और कोच आज यहां युवाओं को ट्रेनिंग दे रहे हैं। आप सोचिए एक आदिवासी इलाका जो अवैध शराब के लिए जाना जाता था, नशे के लिए बदनाम था, वो अब देश की फुटबॉल नर्सरी बन गया है। इसीलिए तो कहते हैं – जहां चाह, वहां राह। हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। जरूरत है तो उन्हें तलाशने की और तराशने की। इसके बाद यही युवा देश का नाम रोशन भी करते हैं और देश के विकास को दिशा भी देते हैं।
आदिवासी बाहुल्य शहडोल के जिला मुख्यालय से सटा हुआ आदिवासी बाहुल्य गांव बिचारपुर है। अब इस गांव में हर दूसरे घर में आपको फुटबॉल के नेशनल खिलाड़ी मिल जाएंगे। यह एक मध्यम आकार का गाँव है। 2011 में बिचारपुर गाँव की जनसंख्या 900 थी। कुल जनसंख्या में से 560 लोग कार्य गतिविधियों में लगे हुए थे। 98.75% श्रमिक 6 महीने से अधिक रोजगार या कमाई में संलग्न थे, जबकि 1.25% लोग 6 महीने से कम समय के लिए आजीविका प्रदान करने वाली सीमांत गतिविधि में शामिल थे। मुख्य कार्य में लगे 560 श्रमिकों में से 17 कृषक मालिक या सह-मालिक थे जबकि 513 कृषि श्रमिक थे। ऐसे में गांव के निवासियों की दयनीय हालत को समझा जा सकता है। पर रईस अहमद ने युवाओं को तरासकर गांव की पहचान को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा दिया है।
 पीएम ने इसी बिचारपुर को मिनी ब्राजील बताया है। अब बिचारपुर सहित पूरे शहडोल जिले में फुटबॉल का ऐसा क्रेज है कि 15 हजार से ज्यादा बच्चे फुटबॉल खेल रहे हैं। इन फुटबॉल खिलाडिय़ों की लोगों और प्रशासन ने भी सुध ली। फुटबॉल खिलाडिय़ों को गुजारा करने के लिए उद्योगों में नौकरी दी गई और प्रेक्टिस के लिए भी सुविधाएं मुहैया कराई गईं। फुटबॉल खिलाड़ियों को खेल एवं युवा कल्याण विभाग, स्कूल शिक्षा विभाग, अमरकंटक ताप विद्युत गृह चचाई, भारतीय रेलवे, कार्पोरेट एवं जन सहयोग से फुटबॉल, कैप, टी-शर्ट, स्पोर्ट शूज, ट्रेक शूट उपलब्ध कराई गईं। असर देखने को मिला कि अब यहां 12 सौ से ज्यादा फुटबॉल क्लब बन गए हैं। शहडोल जिले में 200 से ज्यादा फुटबॉल प्रतियोगिताएं हुई हैं। अब इसी बिचारपुर गांव में फुटबॉल अकादमी भी बनाई गई है। शासन ने उसी गांव की महिला खिलाड़ी को कोच नियुक्त किया है। शहडोल संभाग के इन फुटबॉल खिलाड़ियों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में हुए अपने दौरे में मुलाकात भी की थी।
तो उम्मीद यही है कि “खेल क्रांति का यह बिचारपुर मॉडल” मध्यप्रदेश और देश के गांव-गांव को इस राह पर चलने को प्रेरित करे। देश और मध्यप्रदेश के हर गांव के युवा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाकर आदर्श उदाहरण पेश करें। रईस जैसे प्रेरक व्यक्तित्व हर गांव को नसीब हों। हर गांव इसी तरह उद्गार व्यक्त करे, जिस तरह बिचारपुर कह रहा है कि एक रईस हो तो सब मुमकिन है…।