Bindeshwar Pathak Died : सुलभ शौचालय को ब्रांड बनाने वाले बिंदेश्वर पाठक का निधन! 

प्रधानमंत्री ने भी उनके निधन पर दुःख व्यक्त करते हुए ट्वीट किया!

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Bindeshwar Pathak Died : सुलभ शौचालय को ब्रांड बनाने वाले बिंदेश्वर पाठक का निधन! 

New Delhi : सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक का निधन हो गया। देश के हर शहर में जो सुलभ शौचालय दिखाई दे रहे हैं, वे बिंदेश्वर पाठक के कारण ही संभव हो सका। उन्होंने सुलभ शौचालय के आईडिए को अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड बनाया। सुलभ शौचालय की शुरूआत उनकी ही देन है। उन्होंने मैला ढोने और खुले में शौच की समस्या पर काफी काम किया।

दुनिया को शौचालय का महत्व समझाने वाले और करोड़ों लोगों की जिंदगी आसान बनाने वाले बिंदेश्वरी पहक का जन्म बिहार के वैशाली जिले के एक छोटे से गांव में 2 अप्रैल 1943 को हुआ था। उनकी शिक्षा बिहार और उत्तर प्रदेश में हुई। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में उन्होंने ग्रेजुएशन की। इसके बाद पटना यूनिवर्सिटी से मास्टर और पीएचडी की।

साल 1968-69 में बिहार गांधी जन्म शताब्दी समारोह समिति के साथ उन्होंने काम किया था। यहीं समिति ने उनसे कहा कि वे सस्ती शौचालय तकनीक विकसित करने पर काम करें। उस समय एक उच्च जाति के पोस्ट ग्रेजुएट लड़के लिए शौचालय के क्षेत्र में काम करना आसान नहीं था। लेकिन, वे कभी अपने इरादे से पीछे नहीं हटे। उन्होंने मैला ढोने और खुले में शौच की समस्या पर काम किया।

काफी नाराज हो गए थे ससुर

देश को खुले शौच की समस्या से मुक्त करने की दिशा में वे काम कर रहे थे। इससे उनके पिता काफी नाराज हो गए। अन्य जानने वाले लोग भी उनके इस काम से खुश नहीं थे। पाठक के ससुर को शौचालय वाले इस काम से काफी गुस्सा हुए। उन्होंने पाठक से यह तक कह दिया था कि उन्हें कभी अपना चेहरा मत दिखाना। वे कहते थे कि उनकी बेटी का जीवन खराब कर दिया गया है। इन सब बातों के जवाब में पाठक एक ही बात कहते थे कि वे गांधीजी के सपने को पूरा कर रहे हैं।

डिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय बनाया 

साल 1970 में बिंदेश्वर पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की। यह एक सामाजिक संगठन था। सुलभ इंटरनेशनल में उन्होंने दो गड्ढों वाला फ्लश टॉयलेट डेवलप किया। उन्होंने डिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय का आविष्कार किया। इसे कम खर्च में घर के आसपास मिलने वाले सामान से ही बनाया जा सकता था। फिर उन्होंने देशभर में सुलभ शौचालय बनाना शुरू कर दिया। पाठक को अपने काम के लिए भारत सरकार से पद्म भूषण सम्मान मिला था।

इस समस्या को घर से समझा 

बिंदेश्वर पाठक ऐसे घर में पले-बढ़े, जहां 9 कमरे थे, लेकिन शौचालय एक भी नहीं था। घर की महिलाएं शौच के लिए जल्दी सुबह उठकर बाहर जाती थीं। दिन में बाहर शौच करना मुश्किल होता था। इससे उन्हें कई समस्याएं और बीमारियां भी हो जाया करती थीं। इन बातों ने पाठक को बेचैन कर दिया। वे इस समस्या का हल निकालना चाहते थे। उन्होंने स्वच्छता के क्षेत्र में कुछ नया करने की ठानी और देश में एक बड़ा बदलाव लाने वाले बने व्यक्ति बने।