आदिवासी क्षेत्रों की जीत में भरोसा और प्रीति निहारती भाजपा…

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आदिवासी क्षेत्रों की जीत में भरोसा और प्रीति निहारती भाजपा…

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023 ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। राजनैतिक दल हर कदम को अगले निर्णायक साल से जोड़कर देख रहे हैं। ऐसे में भाजपा नगरीय निकाय चुनावों में जीत को आदिवासी क्षेत्रों में फतह के नजरिए से निहार रही है। इसे कुछ इस तरह भी देखा जा सकता है कि जिन आदिवासी क्षेत्रों में पिछड़ने की वजह से भाजपा को 2018 में 15 महीने सरकार से बाहर रहना पड़ा था, अब उन आदिवासी क्षेत्रों के नगरीय निकायों में जीत से भाजपा गदगद है। कहा जाए तो विधानसभा चुनाव 2018 में विंध्य में भाजपा की एकतरफा जीत पर यदि कुठाराघात किया था तो आदिवासी क्षेत्रों में मिली हार ने। तो नगरीय निकाय चुनावों में मिली जीत को भाजपा कुछ ऐसा संकेत मानकर चल रही है की 2023 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी क्षेत्रों में पार्टी विंध्य की तरह एकतरफा जीत का इतिहास दोहराएगी।
याद रखा जाएगा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का यह फैसला ...
नगरीय निकाय चुनाव में मिली सफलता को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ऐतिहासिक मान रहे हैं। उनका नजरिया यही है कि 46 नगर निकाय के चुनाव हुए थे, जिसमें 17 नगर पालिका और 29 नगर परिषद के चुनाव थे। पूरे चुनाव जनजाति क्षेत्रों के अंदर थे। गर्व के साथ वह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को शुभकामनाएं एवं बधाई दे रहे हैं कि पार्टी कार्यकर्ताओं की मेहनत, नेतृत्व के प्रति जनता को विश्वास और गरीब कल्याण योजना का व्यापक समर्थन जनजाति क्षेत्र में मिला है। इसके चलते ही 46 में से 31 नगरीय निकाय में भाजपा ने जीत का इतिहास बनाया है। खुशी इस बात की भी है कि छिंदवाड़ा में छह में से चार नगरीय निकाय पार्टी ने जीतकर कमलनाथ का दंभ तोड़ने का काम किया है। स्थानीय विधानसभा सौंसर में 15 में से 14 पार्षद भाजपा के जीते हैं।जनजातीय क्षेत्र झाबुआ,अनूपपुर में ज्यादातर नगरीय निकाय में भाजपा की जीत को पार्टी विपक्षी दलों के भ्रम के टूटने का प्रमाण मान रही है। भाजपा इसे संगठन की मेहनत और प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री के नेतृत्व, योजनाओं और कामों पर आदिवासियों के भरोसे के रूप में भी देख रही है।
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मूल बात जो नेतृत्व सीधे तौर पर बोल नहीं रहा है, वह यह कि ‘जयस’ नाम का जो भय बनाने की कोशिश आदिवासी क्षेत्रों में की जा रही थी…नगरीय निकाय के इन परिणामों ने उस पर करारा तमाचा मारा है। 2023 में आदिवासी क्षेत्र के नगरीय निकाय में जीत को भाजपा इस नजरिए से देख रही है कि जयस अकेले तो कोसों दूर नजर आएगी और कांग्रेस का साथ देकर भी भाजपा के प्रति आदिवासियों के भरोसे पर डाका नहीं डाल पाएगी। आदिवासी मतदाताओं को पंद्रह महीने कांग्रेस बनाम साढ़े सत्रह साल की भाजपा सरकार का फर्क समझ में आ गया है। 46 नगरीय निकाय चुनाव परिणाम के जरिए भाजपा यही बात समझ भी रही है और कांग्रेस व अन्य दलों को समझाने में भी जुटी है। फिलहाल आदिवासी क्षेत्रों की जीत में अपने प्रति आदिवासी मतदाताओं का भरोसा और प्रीति पुख्ता मान रही भाजपा में खुशी का कमल पूरी तरह से खिला नजर आ रहा है…।