निकाय चुनाव विश्लेषण: 16 में 7 गई, बाकी बची 9, इस आंकड़े की आहट को सुनिए!

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‘मीडियावाला’ के संपादक हेमंत पाल का विश्लेषण

मध्य प्रदेश की सभी 16 नगर निगमों के चुनाव नतीजे अब सामने आ गए। सभी पार्टियों के दावों और वादों को मतदाताओं ने कितनी गंभीरता से लिया, ये इन नतीजों से स्पष्ट हो गया।

2015 में हुए नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने सभी 16 नगर निगमों के महापौर पद जीतकर कांग्रेस समेत सभी पार्टियों को मुकाबले से बाहर कर दिया था। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं हुआ! 16 में भाजपा 7 निगमों में महापौर चुनाव हार गई।

5 निगमों में कांग्रेस के महापौर चुनाव जीतने में कामयाब रहे! सबसे बड़ा उलटफेर सिंगरौली में हुआ जहां आम आदमी पार्टी (आप) की उम्मीदवार ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को हराकर ख़म ठोंका!

प्रदेश में ‘आप’ के 41 पार्षद भी जीते हैं। कटनी नगर निगम के महापौर पद पर भाजपा की बागी उम्मीदवार की जीत भी किसी चमत्कार से कम नहीं कही जा सकती! प्रदेश की 40 नगर पालिकाओं में से भाजपा 20 पर जीती, कांग्रेस ने 12 नगर पालिकाओं पर कब्ज़ा जमाया, जबकि 8 पर निर्दलियों ने जीतकर सारे समीकरण बिगाड़ दिए।

सरसरी नजर से देखा जाए, तो इस नगर निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हुआ! कांग्रेस को इस चुनाव में मिली जीत से ऑक्सीजन मिली और ‘आप’ ने मध्यप्रदेश की राजनीति में अपने आने का इशारा कर दिया। ‘आप’ ने सिंगरौली में महापौर की सीट जीतकर एक तरह से प्रदेश में अपने राजनीतिक प्रवेश का डंका बजा दिया।

महापौर के अलावा ‘आप’ के कई पार्षद भी प्रदेश में जीते हैं। चौंकाने बात यह भी रही कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ‘ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन’ (एआईएमआईएम) को मुस्लिम वर्ग में मिला समर्थन।

बुरहानपुर में कांग्रेस की महापौर उम्मीदवार शहनाज इस्माइल आलम की मात्र 388 वोट से हार का सबसे बड़ा कारण ही ओवैसी की पार्टी का उम्मीदवार रहा, जिसने 10,332 वोट लेकर कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ दिए।

बुरहानपुर और जबलपुर में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के कुछ पार्षद भी चुनाव जीते! इसे मुस्लिमों के कांग्रेस से भंग के रूप में समझा जा सकता है। खरगोन में भी ओवैसी की पार्टी के 3 पार्षद जीते हैं।

ओवैसी की पार्टी ने जिस तरह से कांग्रेस के चुनावी समीकरण बिगाड़े हैं, वो भी गौर करने वाली बात है। अभी तक मध्यप्रदेश में किसी तीसरी पार्टी का उदय नहीं हुआ था। बीएसपी और एसपी ने कोशिश जरूर की, पर उनके ज्यादातर नेता बिकाऊ रहे। पर, लगता है ‘आप’ ने संकेत दे दिया वे लंबी रेस के लिए तैयार हैं। इस चुनाव में ओवैसी कांग्रेस के वोट कटवा जरूर बन गए।

नगर निकाय के चुनाव के सामने आए नतीजे भाजपा को जश्न मनाने का मौका नहीं देते! इन नतीजों से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का साफ़ इशारा मिलता है।

निकाय चुनाव के इन नतीजों ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को एक तरह से सचेत कर दिया कि मतदाता के मानस को समझें और किसी मुगालते में न रहें।

खासकर भाजपा के लिए तो यह कान में बजने वाली घंटी है क्योंकि, उसने 7 नगर निगम का महापौर पद खोया है!

कांग्रेस के पास खोने को कुछ था नहीं, तो उसने 5 महापौरों को जितवाकर अपनी ताकत दिखा दी! रीवा, जबलपुर, ग्वालियर, मुरैना और छिंदवाड़ा की जीत कांग्रेस के उत्साह को दोगुना करने के लिए काफी है।

छिंदवाड़ा को छोड़कर ये सभी भाजपा दिग्गजों के गढ़ समझे जाते हैं। कांग्रेस के उज्जैन महापौर की हार सिर्फ साढ़े सात सौ वोट और बुरहानपुर में 388 वोट से हुई है। ये भी भाजपा के लिए चिंतन का विषय है!

सत्ताधारी भाजपा के कई मजबूत किले ध्वस्त हुए। निकाय चुनाव के नतीजे देखकर भले ही लगे कि भाजपा की जीत का आंकड़ा बड़ा है, पर पिछले चुनाव की तुलना में पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ। वो दो अंकों में से एक पर सिमट गई। कई भाजपा दिग्गज अपना गढ़ भी नहीं बचा सके।

प्रदेश में साल भर बाद विधानसभा चुनाव होना है, ऐसे में ये चुनाव नतीजे भाजपा की चिंता बढ़ाने वाले ही कहे जाएंगे। जबकि, कांग्रेस के लिए यह उत्साहित करने वाले हैं।

प्रदेश की 16 नगर निगमों में से भाजपा ने इंदौर, भोपाल, बुरहानपुर, उज्जैन, सतना, खंडवा, सागर, देवास और रतलाम में जीत दर्ज की तो कांग्रेस ने ग्वालियर, जबलपुर, छिंदवाड़ा, रीवा और मुरैना में महापौर पद पर कब्जा जमाया। सिंगरौली में ‘आप’ और कटनी में निर्दलीय की जीत भी इतिहास में दर्ज होने लायक है।

इस आहट की गूंज को सुनिए

इसे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की स्पष्ट आहात माना जा रहा है। आज आए पूरे नतीजे कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए संकेत हैं कि वे इसके गर्भ में छुपे मतदाताओं के इशारों को समझें! दोनों ही पार्टियों को इन नतीजों के मुताबिक अपना घर सुधारना होगा।

ग्वालियर, जबलपुर, सिंगरौली, रीवा, छिंदवाड़ा, कटनी और मुरैना जैसे शहरों में भाजपा की हार ने पार्टी को सोचने के लिए मजबूर किया है।

यह भी स्पष्ट है कि भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी देखने को मिली, जिसका कांग्रेस को फायदा मिला। ग्वालियर जैसे भाजपा के गढ़ में कांग्रेस ने उसे शिकस्त दी क्योंकि, वहां उसके कार्यकर्ता एकजुट होकर लड़ें। कांग्रेस एक बार फिर से शहरी इलाकों में अपना आधार वापस पाने में सफल रही!

भाजपा के गढ़ में सेंध

ग्वालियर में जहां 57 साल बाद कांग्रेस को जीत मिली, वहीं जबलपुर में 23 साल बाद कांग्रेस का महापौर चुना गया। छिंदवाड़ा में 18 साल बाद कांग्रेस का महापौर होगा।

ग्वालियर, जबलपुर, मुरैना और रीवा भाजपा के मजबूत गढ़ माने जाते रहे हैं। यहां पार्टी को मिली शिकस्त ने कई सवाल जरूर खड़े कर दिए।

ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेंद्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, बीडी शर्मा, प्रभात झा और जयभान पवैया के पार्टी के संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा भी इसी इलाके से आते हैं। शिवराज सरकार में पांच मंत्री भी ग्वालियर-चंबल से हैं।

उधर, जबलपुर से भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह सांसद हैं, तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की ससुराल जबलपुर में है। इसलिए यहां भाजपा की हार उसे चिंतित करने वाली तो है।

चिंता कांग्रेस के लिए भी

नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस के 5 महापौर चुनाव जीते। कांग्रेस के लिए ये चुनाव नतीजे पिछले चुनाव के मुकाबले अच्छे रहे! किंतु, दिग्विजय सिंह और अरुण यादव जैसे बड़े नेता अपना किला नहीं बचा सके!

दिग्विजय सिंह के लोकसभा क्षेत्र भोपाल में पार्टी को हार मिली! जबकि, उनके अपने प्रभाव वाले राजगढ़ और ब्यावरा नगर पालिका में भी कांग्रेस हार गई।

जीत की संभावना वाले खंडवा और बुरहानपुर में कांग्रेस हारी। इंदौर में जीतू पटवारी के प्रभाव वाले राऊ विधानसभा में पार्टी को गहरा गड्ढा मिला।