पुस्तक समीक्षा गुरुदत्त: एक अधूरी दास्तान

यहां है गुरुदत्त से जुड़ी हर जिज्ञासा का जवाब!

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पुस्तक समीक्षा गुरुदत्त: एक अधूरी दास्तान

जब भी कभी वर्ल्ड सिनेमा का जिक्र होगा, गुरुदत्त के बिना बात पूरी नहीं होगी! फ्रांस में जिस समय ‘न्यू वेव मूवमेंट’ ने गति भी नहीं पकड़ी थी, उस वक्त गुरुदत्त इस तरह का बहुत सारा काम कर चुके थे। ‘न्यू वेव मूवमेंट’ ने उस समय की तमाम फिल्मों को जांचा-परखा। लेकिन, उन्होंने उस समय काल की हिंदी फिल्मों को नहीं देखा! जबकि, गुरुदत्त की फिल्मों का प्रदर्शन उस समय जर्मनी, फ्रांस और जापान में भी हुआ था। कहा जा सकता है कि उस समय गुरुदत्त वर्ल्ड सिनेमा के लीडर थे। 1950-60 के दशक में गुरुदत्त ने कागज़ के फूल, प्यासा, साहब बीवी और गुलाम और चौदहवीं का चांद जैसी फिल्में बनाई। इसमें उन्होंने कंटेंट के लेवल पर फिल्मों के क्लासिक पोयटिक एप्रोच को बरकरार रखते हुए रियलिज्म का इस्तेमाल किया, जो फ्रांस के ‘न्यू वेव मूवमेंट’ की खासियत थी। ‘वर्ल्ड सिनेमा’ के परिदृश्य में गुरुदत्त और उनकी फिल्मों को समझने के लिए फ्रांस के ‘न्यू वेव मूवमेंट’ के थ्योरिटिकल फॉर्मूलों का सहारा लिया जा सकता है। हालांकि, गुरुदत्त अपने आपमें एक फिल्म मूवमेंट थे। इसलिए उन्हें किसी और फिल्म मूवमेंट के ग्रामर पर नहीं कसा जा सकता।

गुरुदत्त जीवन और कर्म पर विस्तार से किताब (गुरुदत्त: एक अधूरी दास्तान) लिखने वाले यासिर उस्मान ने लिखा कि उनका जीवन उनकी फिल्मों की तरह दो भागों में बंटा था। ये भाग थे ‘एक सपने का बनना’ और ‘फिर उसका टूटकर बिखरना!’ गुरुदत्त के बारे में कहा जाता है, कि वे सबसे ज्यादा अपने आप से ही नाराज रहते थे। उनकी इस नाराजगी के कई प्रमाण भी सामने आए। ‘कागज के फूल’ की असफलता के बाद गुरुदत्त ने कहा भी था ‘देखो न मुझे डायरेक्टर बनना था, डायरेक्टर बन गया! एक्टर बनना था एक्टर बन गया! अच्छी पिक्चर बनाना थी, बनाई भी! पैसा है सब कुछ है, पर कुछ भी नहीं रहा।’

यासिर उस्मान ने अपनी किताब में ‘प्यासा’ के समय का जिक्र करते हुए लिखा कि वे ‘प्यासा’ में दिलीप कुमार को लेने वाले थे। उनकी इस बारे में बात भी हो चुकी थी। लेकिन, किसी बात पर मतभेद आ गए और उन्होंने फिल्म में काम नहीं किया। बाद में गुरुदत्त को खुद ही इस फिल्म में काम करना पड़ा। दरअसल, ये कई बार हुआ। मिस्टर एंड मिसेज़ 55, साहेब बीवी और गुलाम और ‘आर पार’ में भी वे जिसे लेना चाहते थे, उन्होंने किसी न किसी कारण इंकार किया और रास्ता बदल लिया। ‘मिस्टर एंड मिसेज़ 55’ में सुनील दत्त को लेने वाले थे, पर ऐसा नहीं हो सका। ‘साहेब बीवी और गुलाम’ के लिए शशि कपूर और विश्वजीत से बात की, लेकिन यहां भी बात टूट गई। अंत में उन्होंने ही भूमिका निभाई।

‘साहेब बीवी और गुलाम’ फिल्म के दौरान गीता दत्त से उनके संबंध खराब हो गए थे। इसका कारण थी वहीदा रहमान। निजी जिंदगी की परेशानियों के कारण ही गुरुदत्त ने ‘साहेब बीवी और गुलाम’ का निर्देशन अपने दोस्त अबरार अल्वी से करने को कहा था। इस फिल्म को साहित्यकार बिमल मित्रा ने लिखा था। दत्त ने इस फिल्म में भी हमेशा की तरह वहीदा रहमान को लेने पर जोर दिया जो उनके और गीता दत्त के रिश्तों में खटास का एक बड़ा कारण थीं। गीता दत्त ने ‘साहिब बीबी और गुलाम’ को गुरुदत्त और अभिनेत्री वहीदा रहमान की वास्तविक जीवन की कहानी के रूप में माना।

यासिर उस्मानी ने गुरुदत्त के जीवन पर अपनी किताब ‘गुरुदत्त: एक अधूरी दास्तान’ में ऐसी बहुत सारी अनकही कहानियों का खुलासा किया है। 1962 में आई फिल्म ‘साहेब बीबी और गुलाम’ को अपने समय काल से बहुत आगे माना जाता है। इस फिल्म में व्यभिचार के मुद्दे, विवाह और पितृसत्ता को चुनौती दी गई थी। किताब के लेखक यासिर उस्मान ने कई विश्वसनीय स्रोतों का उल्लेख करते हुए कई ऐसी सच्चाइयों को उजागर किया जो अभी तक सामने नहीं आई थी।

मूलतः ये किताब अंग्रेजी में लिखी गई है। लेकिन, इसका हिंदी अनुवाद जो महेंद्र नारायण सिंह यादव ने किया, वो उच्च कोटि का है। पढ़ने में कहीं पता नहीं चलता कि ये किताब हिंदी में नहीं लिखी गई! किताब को पंद्रह खंडों के बांटा गया और इसमें कुल 63 अध्याय हैं। शायद ये पहली ऐसी किताब है, जो गुरुदत्त की प्रतिभा, उनकी सोच, समय से आगे फ़िल्में बनाने की उनकी कल्पना और उनकी अधूरी प्रेम कहानियों का विस्तृत लेखा-जोखा है। पढ़ने के बाद गुरुदत्त को कोई जिज्ञासा बाकी नहीं रह जाती।