मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव का बुधवार को आखिरी दिन था। अब परिणाम आएंगे और विश्लेषण का दौर शुरू हो जाएगा। पर असल में चुनाव परिणाम सिर्फ विष्णु के बूथ मैनेजमेंट और कमलनाथ के प्रभाव के बीच रस्साकस्सी को ही परिभाषित करने वाले हैं। जिसमें भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भूमिका प्रभावी रहेगी। यह जिज्ञासा बनी रहेगी कि सरकार से मतदाता को बहुत कुछ मिलना बाकी है या फिर संगठन के स्तर पर काफी कुछ करना बाकी है।
पर यह चुनाव कहीं से कहीं तक 2023 की पृष्ठभूमि बनकर फलदायी साबित होने वाले नहीं हैं। 2023 चुनावों की भूमिका तो 2023 में ही बनेगी और परिणाम भी 2023 ही तय करेगा। अगर बूथ सिस्टम में कोई कमी यह चुनाव बयां करेंगे तो भाजपा और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा के पास पूरे एक साल का समय है, जिसमें वह बूथ सिस्टम और पन्ना प्रभारी की व्यवस्था को दुरुस्त कर सकते हैं। यह चुनाव एक तरह से सेफ्टी वाल्व बनकर भाजपा को अपनी कमियों को दुरुस्त करने का पूरा अवसर देने वाले हैं। वहीं सरकार को भी इन चुनाव परिणामों से सबक लेने का पूरा समय मिलेगा।
चाहे 16 नगर निगम में से चुनाव परिणाम 8-8 के टाई पर खत्म हों या फिर 11-5 या फिर 16-0 ही सही, लेकिन न तो इससे सरकार की सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा, न ही भाजपा संगठन बैकफुट पर नजर आएगा। उपलब्धियों के लिए कांग्रेस भले ही कुछ भी ढिंढोरा पीट सकती है, लेकिन यह जगजाहिर है कि पार्टी की जगह यह नाथ की व्यक्तिगत उपलब्धि ही मानी जाएगी। चाहे कांग्रेस की तरफ से अच्छे प्रत्याशियों के चयन की बात हो या फिर समर्थ प्रत्याशियों को टिकट देने का मामला हो, इससे लोकतंत्र की भावना के अनुरूप मतदाताओं को मतदान के पहले सोचने का अभ्यास जरूर करना पड़ा। पर मतदाता यह भी समझते हैं कि जिस पार्टी की सरकार है, उसके प्रत्याशी को जिताकर उनके महानगर या शहर का भला अधिक किया जा सकता है। सो अगर परिणाम भाजपा के पक्ष में आते हैं, तब भी कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं हैं। उसे तो पाना ही पाना है।
एक सप्ताह में सारी स्थितियां साफ हो जाएंगीं। इसके बाद तीन ही चेहरों पर सारे विश्लेषण केंद्रित होंगे। वह चेहरे हैं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के। शायद मध्यप्रदेश की राजनीति में यही तीन चेहरे हैं जो सरकार और संगठन में प्रभावी हैं। एक्जिट पोल चाहे कुछ भी कहें और चुनाव परिणाम कुछ भी आएं, लेकिन 2023 के चुनाव परिणाम पर यह चुनाव कुछ भी असर डालेंगे, यह मानना रेत पर महल खड़ा करने जैसा ही होगा।
क्योंकि देश और प्रदेश का मतदाता यह भलीभांति जानता है कि उसे राज्य के चुनाव में किसका चयन करना है और लोकसभा चुनाव में किसको बागडोर सौंपनी है। 2018 में भी राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन 2019 में मतदाताओं ने सिंधिया को हराकर भाजपा से केपी यादव को चुना था। और राज्य में एक ही सांसद कांग्रेस से था, वह भी तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ का बेटा नकुलनाथ। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि परिपक्व लोकतंत्र का मतदाता जागरूक है और वह जानता है कि किस समय क्या फैसला लेना है?
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ऐसे में यह नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के परिणाम सिवाय प्रि बोर्ड परीक्षा से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। बोर्ड परीक्षा के परिणाम इससे मेल खाएं, यह गारंटी कतई नहीं दी जा सकती। पर परिणाम यह जरूर बताएंगे कि बोर्ड परीक्षा में अव्वल आने के लिए कितनी ज्यादा मेहनत की दरकार है। यह चुनाव परिणाम 20 जुलाई को बस हौले-हौले यह जरूर कहेंगे कि बूथ पर कितनी और अभ्यास की जरूरत है या फिर नाथ को 2023 में अनाथ होने से बचने के लिए कितना रास्ता और तय करने के लिए पसीना बहाना होगा।