Boroline Cream : 91 साल पहले स्वदेशी आंदोलन से शुरू हुआ था ‘बोरोलीन’ का सफ़र!

15 अगस्त 1947 को उत्पादन कंपनी ने एक लाख पैक मुफ्त बांटे थे!

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Boroline Cream : 91 साल पहले स्वदेशी आंदोलन से शुरू हुआ था ‘बोरोलीन’ का सफ़र!

– बसंत पाल की रिपोर्ट

      Indore : देश आज अपनी आज़ादी की 78वीं वर्षगांठ मना रहा है। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना भी एक तरह से आंदोलन की पहचान थी। इसी से प्रभावित होकर कलकत्ता के एक कारोबारी गौर मोहन दत्ता ने इस स्वदेशी क्रीम ‘बोरोलीन’ का उत्पादन किया था। आज 91 साल से यह एंटीसेप्टिक क्रीम भारतीय घरों में उपयोग की जा रही है। कभी जवाहरलाल नेहरू इसका इस्तेमाल करते थे, आज अभिनेता राजकुमार राव भी बोरोलिन इस्तेमाल करते हैं।

आजादी के आंदोलन के दौर में विदेशी महंगी क्रीम के सामने गौर मोहन दत्ता ने बोरिक एसिड, जिंक ऑक्साइड और लेनोलिन के संतुलित मिश्रण से बोरोलीन क्रीम बनाई। तब इसे कलकत्ता के बरू बाज़ार स्थित अपनी दुकान से इसे बेचा जाता था। गौर मोहन की पत्नी कमला इसे टीन की छोटी डब्बी में पैक करने का काम करती थी। देश के अनेक कारोबारियों ने स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित होकर अनेक उपभोक्ता वस्तुएं बनाई। इन कंपनियों ने भी अपने स्वदेशी उत्पाद बनाए, जिन्हें सस्ते में बेचा जाता था।

बोरोलिन का नाम कैसे रखा
जीवन में बहुत सी चीजें ऐसी होती है, जिन्हें लेकर हम तर्क ढूढ़ते रहते हैं। ऐसे ही बोरोलिन के बारे में भी लोग कई बार सोचते हैं कि इसके नाम के पीछे क्या तर्क होगा! दरअसल, इस शब्द का पहला हिस्सा बोरो, बोरिक पावडर से लिया गया है जो एक एंटीसेप्टिक प्रॉपर्टीज है। दूसरा, हिस्सा है ओलिन, ये ओलिन शब्द दरअसल लैटिन शब्द ओलियन का वेरिएंट है जिसका मतलब होता है तेल। इसलिए इस क्रीम का नाम बोरोलिन रखा गया।

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स्वदेशी अपनाओ का नारा
स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी के स्वदेशी अपनाओ के नारे को आगे बढ़ाते हुए स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए ऐसी स्वदेशी वस्तुओं को बेचना भी आसान था। इसी तरह का एक उत्पाद है ‘बोरोलीन एंटीसेप्टिक क्रीम’ जिसने भारतीयों के दिलों में अपनी जगह बनाई जो आज भी लोकप्रिय है। इस क्रीम को बाजार में लांच हुए लगभग 91 साल हो गए हैं।

25 अगस्त 1947 को देश की आजादी के अवसर पर बोरोलीन के निर्माता गौर मोहन दत्ता ने एक लाख बोरोलीन क्रीम के पैक मुफ़्त बांटे थे। तब से लेकर आज तक बोरोलीन का फार्मूला, पैकिंग, खुशबू और क्रीम के ट्यूब का गहरा हरा रंग वही है। आज भी कई घरों में इसका उपयोग बच्चों से लेकर बूढ़े तक कर रहे है।

बंगाल के हृदय में जन्मी बोरोलीन सिर्फ़ एक एंटीसेप्टिक क्रीम ही नहीं थी। यह भारतीय आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी थी। दूरदर्शी गौरमोहन दत्ता द्वारा निर्मित यह साधारण एंटीसेप्टिक क्रीम स्वदेशी आंदोलन की एक ऐसी किरण बन गई, जो ब्रिटिश शासन के विरुद्ध खड़ी थी। आज, बोरोलीन लोकप्रिय घरेलू नाम है, जो हमें हमारी विरासत और स्वदेशी पहचान की याद दिलाता है कि कैसे इस साधारण क्रीम ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अपनी लड़ाई में भारत को एकजुट किया।

आज करोड़ों रुपए के सालाना कारोबार वाली बोरोलीन के निर्माता अपने सामाजिक  दायित्वों को अभी भी उसी निष्ठा से निभा रहे हैं। वे गरीब बच्चों की हार्ट सर्जरी में योगदान देते हैं। बोरोलीन क्रीम आज भी विदेशी कंपनियों से उसी तरह मुकाबला कर रही है, जैसे स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में करते हुए अपने साधारण फॉर्मूले के साथ अपने खरीददारों में लोकप्रिय थी।    इस ग्रीन ट्यूब वाली बोरोलिन क्रीम पर हाथी का ‘लोगो’ छपा होता है। दरअसल इसमें हाथी को शामिल इसलिए किया गया, क्योंकि हाथी हर भारतीय के लिए विशाल भारतीय संस्कृति के महत्व का परिचायक है। साथ ही यह स्थिरता को भी दर्शाता है। बोरोलिन आज भी हाथी वाले क्रीम के तौर पर भी पहचाना जाता है।

खबरों के मुताबिक देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी इस क्रीम का इस्तेमाल किया था। वहीं, आज के जाने-माने अभिनेता राजकुमार राव भी इसका इस्तेमाल करने वालों में शामिल हैं। राइमा सेन, साक्षी तंवर और विधा बालन जैसी अभिनेत्रियां इसकी ब्रांड एंबेसडर रह चुकी हैं।