Burnt Notes Found in Justice’s House : जस्टिस यशवंत वर्मा की वे गलतियां, जिन्होंने संदेह को पुख्ता किया!

समिति ने 10 दिन तक पड़ताल की, 55 गवाहों से पूछताछ की और सरकारी आवास का दौरा भी किया!

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Burnt Notes Found in Justice’s House : जस्टिस यशवंत वर्मा की वे गलतियां, जिन्होंने संदेह को पुख्ता किया!

New Delhi : दिल्ली के जस्टिस के यहां अधजली नकदी मिलने के मामले की जांच करने वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय कमेटी फिर चर्चा में है। इस कमेटी ने दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के यहां मिले अधजले नोटों के बारे में जांच की। उन्होंने पहली बार कुछ रहस्यों से पर्दा उठाया। यही वो रहस्य है, जिनमें जस्टिस वर्मा फंसे हैं। पहली बार उन 10 चश्मदीदों के नाम भी सामने आए हैं, जिन्होंने अपनी आंखों से भारी मात्रा में अधजले नोट देखे थे। इस जांच रिपोर्ट में कमेटी ने जस्टिस वर्मा के आचरण को संदिग्ध करार दिया। जस्टिस वर्मा के खिलाफ कमेटी ने कार्रवाई की सिफारिश की है।

जांच समिति ने जस्टिस वर्मा की उन बड़ी गलतियों को भी उजागर किया, जो न सिर्फ उनके आचरण और व्यवहार पर संदेह पैदा करता है बल्कि उन्हें नकदी कांड में संदेह के घेरे में ला खड़ा करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जस्टिस वर्मा ने अपने आवास पर नकदी मिलने के मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज न कराना और चुपचाप इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपना तबादला स्वीकार कर लेना उन बातों में शामिल है, जिसे जांच कमेटी ने सहज और स्वभाविक नहीं माना। सुप्रीम कोर्ट की इस तीन सदस्यीय जांच कमेटी ने इन निष्कर्षों को आधार पर जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की थी।

व्हाट्सएप चैट पर ही बात क्यों

जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जांच के क्रम में जस्टिस वर्मा के कई कर्मचारियों ने पूछताछ में बताया कि 14-15 मार्च की रात जस्टिस वर्मा ने केवल व्हाट्सएप के जरिए ही उनसे बात की थी। रिपोर्ट में कहा गया कि इस व्हाट्सएप चैट का विवरण प्राप्त नहीं किया जा सका, क्योंकि यह एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म है।

जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया कि जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी दिल्ली लौटने के बाद एक बार भी उस स्टोर रूम में नहीं गए, जहां आग लगी थी। जस्टिस वर्मा ने यह कहकर इसे सही ठहराने की कोशिश की, कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों की भलाई की चिंता थी। हालांकि, जांच समिति को जस्टिस वर्मा का यह जबाव अजीब लगा। क्योंकि, ऐसी परिस्थितियों में कोई भी व्यक्ति नुकसान का आकलन करने के लिए कम से कम एक बार घटनास्थल पर जरूर जाएगा।

जस्टिस का साजिश का दावा बेमतलब

तीन सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि जस्टिस वर्मा ने अपने खिलाफ साजिश का आरोप लगाने के बावजूद पुलिस में कभी इस बारे में शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई। रिपोर्ट में कहा गया कि अगर वाकई कोई साजिश थी, तो जस्टिस को शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी। उन्हें हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस या भारत के चीफ जस्टिस के संज्ञान में उस साजिश को लाना चाहिए था।

ट्रांसफर को चुपचाप स्वीकार करना

जांच कमेटी ने यह भी पाया कि जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपना ट्रांसफर उसी दिन चुपचाप स्वीकार कर लिया, जिस दिन यह प्रस्तावित था। इसके लिए उन्होंने किसी से कोई सवाल-जवाब भी नहीं किया। यह ट्रांसफर प्रस्तावित होने के कुछ घंटों के भीतर किया गया। जबकि, उनके पास अपना फैसला बताने के लिए अगली सुबह तक का समय था। रिपोर्ट में कहा गया कि उन्होंने ट्रांसफर के पीछे के कारणों का पता लगाने की कोशिश भी नहीं की। रिपोर्ट में कहा गया कि स्टोर रूम का सीसीटीवी कैमरा भी काम नहीं कर रहा था, जो संदेह पैदा करता है।