यूक्रेन से आए मेडिकल छात्रों को भारतीय कॉलेजों में मिल सकता है दाखिला?

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यूक्रेन से निकाले गए भारतीय मेडिकल छात्रों को भारत के कॉलेजों में पढ़ने की मौका मिल सकता है. इन छात्रों को समायोजित करने के लिए केंद्र राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के साथ चर्चा कर रहा है, ताकि छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख सकें.दरअसल सरकार चाहती है कि यूक्रेन से लौटे इन छात्रों की पढ़ाई पर असर न हो। इसके लिए केंद्र सरकार फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिएट रेगुलेशन (एफएमजीएल) एक्ट में बदलाव पर विचार कर रही है।

पूर्वी यूरोपीय देश में युद्ध छिड़ने के बाद वहां पढ़ाई कर रहे छात्रों, जिनमें अधिकतर मेडिकल छात्र शामिल हैं, की सुरक्षा के लिए उन्हें भारत लाया जा रहा है और इस बीच उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई है. इसे देखते हुए केंद्र ऐसे छात्रों को भारतीय कॉलेजों में समायोजित करने पर विचार कर रहा है.स्थ्य मंत्रालय की ओर से नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) को एक चिट्‌ठी लिखी जा रही है, जिसमें कहा जाएगा कि एफएमजीएल रेगुलेशन एक्ट-2021 में बदलाव किया जाए ताकि बाहर से आने वाले स्टूडेंट्स को दाखिला मिल सके। अभी तक फॉरेन मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई करने वाले छात्रों को कोर्स की पूरी अवधि के अलावा ट्रेनिंग और इंटर्नशिप भारत सेे बाहर ही करनी होती है। यूक्रेन में 6 साल में एमबीबीएस होता है। फिर 2 साल इंटर्नशिप होती है। ऐसे में पढ़ाई बाधित हुई तो हजारों बच्चों का भविष्य संकट में पड़ जाएगा.इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने भी इन मेडिकल छात्रों के भविष्य पर मंडरा रही अनिश्चितता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा

“यूक्रेन से निकाले गए सभी मेडिकल छात्र भारतीय नागरिक हैं और इन्होंने भारत में नियामक प्राधिकरणों से पात्रता प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद वहां प्रवेश हासिल किया है. विभिन्न चरणों में एकमुश्त उपाय के रूप में इन्हें देश के मौजूदा मेडिकल संस्थानों में समायोजित किया जाएगा. इसके लिए मेडिकल छात्र के संबंधित गृह राज्य का ध्यान रखा जाए और उन्हें स्थानीय मेडिकल कॉलेजों में ही समायोजित किया जाए. लेकिन यह एक बार की जो तात्कालिक सुविधा दी जाए, उसे मेडिकल कॉलेज में बढ़ी हुई सीटों की क्षमता के तौर पर न मान लिया जाए. इसे सिर्फ भारतीय मेडिकल संस्थानों में उनके बाकी बचे एमबीबीएस कोर्स को पूरा कराने की प्रक्रिया के तौर पर रखा जाए.”

आईएमए ने अपनी सिफारिश में आगे कहा, “परिणामस्वरूप, पास आउट होने पर वे उतने ही अच्छे होंगे, जितने कि भारतीय चिकित्सा स्नातक, न कि विदेशी चिकित्सा स्नातक. यह न केवल उन सभी को उनके अनिश्चित भाग्य और भविष्य से बचाने के लिए एक महान काम होगा, बल्कि एक बड़े मानवीय उद्देश्य को पूरा करने में भी एक लंबा रास्ता तय करेगा.”