परमहंस स्वामी बुद्धदेवजी का 117 वां जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया!

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परमहंस स्वामी बुद्धदेवजी का 117 वां जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया!

 

Ratlam : स्वामी बुद्धदेवजी भक्त मंडल धार्मिक ट्रस्ट के तत्वाधान में शहर के टाटा नगर स्थित श्री बुद्धेश्वर आश्रम में परमहंस स्वामी बुद्धदेवजी का 117वां जन्मोत्सव भक्तजनों ने बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया!

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इस अवसर पर बुद्धदेव जी की प्रतिमा पुष्पों से आकर्षक रूप में सजाई गई थी। प्रारंभ में स्वामीजी की प्रतिमा के समक्ष वरिष्ठ समाजसेवी इंद्रनारायण झालानी, जयेश झालानी, महेंद्रसिंह सिसोदिया, राकेश मोदी, योगेश घरिया, अशोक फलोदिया, दशरथ बाफना, चंदनमल पिरोदिया, जयेश झालानी, मुकुट झालानी, नीलेश झालानी, राकेश पोरवाल, अनिल झालानी, मोहनलाल भट्ट आदि ने पादुका पूजन कर अर्चना की !

इस अवसर पर प्रसिद्ध गायक अनिरुद्ध मुरारी ने गुरु मेरी पूजा गुरु गोविंद सहित सुमधुर भजनों से समूचे वातावरण को भक्तिमय कर दिया! शहर की सामाजिक-आध्यात्मिक संस्था प्रभु प्रेमी संघ, समन्वय परिवार, श्री कालिका माता सेवा सत्संग मंडल, श्री सनातन धर्म महासभा, श्री मेहंदीकुई बालाजी न्यास, श्री बद्रीनारायण सेवा मंडल, श्री गोपालजी का बड़ा मंदिर, श्री साईं सेवा समिति, श्री हरिहर सेवा समिति, पोरवाल समाज आदि द्वारा पूज्य स्वामीजी की प्रतिमा को पुष्पांजलि अर्पित की गई!

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इस अवसर पर प्रसिद्ध साहित्यकार, सेवानिवृत्त पुलिस प्रासिक्यूटर कैलाश व्यास ने स्वामीजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे आध्यात्मिक जगत के ज्योति स्तंभ थे। बाल्यकाल से ही उनकी रुचि धर्म ग्रंथों के पठन पाठन में रही, उन्होंने निरंतर साधनारत रहते हुए 27 वर्ष की उम्र में ही गृहत्याग कर दिया था और हिमालय की और चल पड़े थे! निरंतर भ्रमण करते हुए वे भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन पहुंचे थे। जहां सदगुरु शांतानन्दजी ने उन्हें दीक्षा प्रदान की थी। रतलाम का यह परम सौभाग्य रहा कि दीक्षा उपरान्त वे सीधे रतलाम पधारें और फिर सुंठी (जिला मन्दसौर) में 1 वर्ष का कठोर अनुष्ठान किया और पुनः रतलाम पधारें, जहां कबीट के पेड़ के नीचे और फिर बरबड में कठिन साधना की।

वर्ष 2008 में अधिकमास के दौरान स्वामीजी के पावन सानिध्य में आयोजित विशाल भंडारा जिसमें हजारो श्रद्धालुओं तथा भक्तजनों ने प्रतिदिन भोजन प्रसादी ग्रहण की। उल्लेखनीय बात यह रहीं कि किसी भी दिन न तो प्रसादी कम हुई न ही प्रसादी व्यर्थ हुई, तदुपरान्त स्वामीजी की ऐतिहासिक शोभायात्रा आज भी समूचे शहर के लोगों के दिलो-दिमाग में अंकित हैं। कार्यक्रम के अंत में आरती कर प्रसादी वितरित की गई।