मकर संक्रांति उत्तरायण पुण्यकाल का उत्सव: आधुनिक विज्ञान से जोड़ते हुए किये जा रहे हैं विभिन्न कार्यक्रम 

ग्राम डोंगला में विद्यार्थियों के द्वारा भ्रमण कर ली खगोलीय जानकारी

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मकर संक्रांति उत्तरायण पुण्यकाल का उत्सव: आधुनिक विज्ञान से जोड़ते हुए किये जा रहे हैं विभिन्न कार्यक्रम 

 

उज्जैन । मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव द्वारा दिये गये निर्देशों के तहत 15 जनवरी तक मकर संक्रांति उत्तरायण पुण्यकाल का उत्सव को आधुनिक विज्ञान से जोड़ते हुए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। यह कार्यक्रम उज्जैन, भोपाल, ग्वालियर में हो रहे हैं। कार्य योजना अनुसार उक्त कार्यक्रमों का आयोजन मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के माध्यम से किये जा रहे हैं। कार्यक्रम में शिक्षा विभाग को नोडल अधिकारी नामांकित किया है। उज्जैन की महिदपुर तहसील के ग्राम डोंगला में स्थित वराहमिहिर खगोलीय वेधशाला एवं पद्मश्री श्रीधर वाकणकर वेधशाला में लगभग 155 विद्यार्थियों ने भ्रमण कर सूर्य की विभिन्न वार्षिक खगोलीय स्थितियां, मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व, उत्तरायण और दक्षिणायन का महत्व के बारे में जानकारी प्राप्त की।

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सूर्य की वार्षिक खगोलीय स्थिति एवं मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

इस वर्ष 15 जनवरी को मकर संक्रांति है। मकर संक्रांति के दिन ग्रहों के राजा सूर्यदेव धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करने को ही मकर संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौरमास है। सामान्यत: भारतीय पंचांग की सभी तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती है, लेकिन मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। ग्रहों के राजा सूर्यदेव सभी बारह राशियों में अलग-अलग समय पर भ्रमण करते हैं। इस घटनाक्रम को संक्रांतियां कहा जाता है, लेकिन कर्क व मकर राशि में इनका प्रवेश अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन दोनों राशियों में सूर्यदेव का प्रवेश छह माह के अंतराल पर होता है।

उत्तरायण और दक्षिणायन का महत्व 

उत्तरी गोलार्द्ध में 22 दिसम्बर को सूर्य का घटनाक्रम सामान्यत: सूर्य की दो स्थितियां बताई जाती है। उत्तरायण और दक्षिणायन दोनों की अवधि में छह माह का अंतराल होता है। एक वर्ष के दौरान यह क्षण आता है, जब आकाश में सूर्य का पथ उत्तरीय गोलार्द्ध में सबसे दूर दक्षिण में रहता है (21 या 22 दिसम्बर), जिसको उत्तरायण कहा जाता है और उत्तरायण पर ही सूर्य आकाश में सबसे छोटे रास्ते पर यात्रा करता है। इसलिये यह दिन सबसे छोटा दिन होता है और रात लम्बी रहती है। वैज्ञानिक रूप से 22 दिसम्बर की दोपहर को सूर्यदेव ट्रापिक ऑफ केप्रिकोर्न पर होते हैं। इसी दिन उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे लम्बी रात होती है।

 

सूर्य के उत्तर दिशा में गमन करने का क्रम करीब छह महीने तक यानी 21 जून तक चलता है। 21 जून को जब सूर्य का पथ उत्तरीय गोलार्द्ध में सबसे दूर उत्तर में होता है, जिसको दक्षिणायन कहा जाता है। 21 जून को सबसे बड़ा दिन होता है। वर्ष में एक बार 21 जून को दोपहर में सूर्य ठीक कर्क रेखा के ऊपर होता है, जिसके कारण इस स्थिति में कुछ क्षणों के लिये छाया गायब हो जाती है। इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम के कारण ही कर्क रेखा पर मप्र विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद भोपाल द्वारा उज्जैन जिले की महिदपुर तहसील के ग्राम डोंगला में वराहमिहिर खगोलीय वेधशाला का निर्माण किया गया है।

 

इस आशय की वैज्ञानिक जानकारी शासकीय उमावि खेड़ाखजूरिया एवं शासकीय उमावि घोंसला के लगभग 155 विद्यार्थियों तथा शासकीय मावि महिदपुर के लगभग 170 विद्यार्थियों ने प्राप्त की, जिसे मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के श्री इन्द्रेश सिसौदिया एवं श्रीधर वाकणकर वेधशाला के प्रकल्प प्रभारी श्री घनश्याम रत्नानी ने दी।