चंद्रशेखर आजाद जयंती विशेष: बलिदान पर गर्व है, पर क्या सचमुच समझ पाए हैं हम आजादी की कीमत..?

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चंद्रशेखर आजाद जयंती विशेष: बलिदान पर गर्व है, पर क्या सचमुच समझ पाए हैं हम आजादी की कीमत..?

 

– राजेश जयंत

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आज 23 जुलाई, अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है, वो नायक जिन्होंने अपना नाम, अपनी पहचान और अपनी ज़िंदगी सब कुछ देश को स्वतंत्र कराने के लिए समर्पित कर दी। “मैं आजाद था, आजाद हूं और आजाद ही रहूंगा” यह सिर्फ उनका वचन नहीं, उनके पूरे जीवन की तपिश थी। मगर आज जब हम उनके बलिदान और उनकी “आजादी” से मिली स्वतंत्रता का जश्न मनाते हैं… क्या हमें सच में कभी सोचा कि हम उनके सपनों के उस भारत को जी भी पा रहे हैं या सिर्फ नारे और औपचारिकताएं निभा रहे हैं..?

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चंद्रशेखर आजाद ने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई की, बल्कि उस मानसिक गुलामी, डर, जड़ता और बेजोड़ी बेड़ियों से भी मुकाबला किया जिसने सालों तक हिंदुस्तान को थामे रखा। काकोरी, सांडर्स, और असेंबली बम कांड की अगुवाई करके, उन्होंने पूरे हिंदुस्तान के युवाओं में आग जला दी।

उनकी वीरता ने सिखाया- “मरना मंजूर है, लेकिन आजादी के मायनों और उसूलों से समझौता मंजूर नहीं”

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अल्फ्रेड पार्क में जब पुलिस ने घेरा, तो जिंदा पकड़े जाने की बजाय खुद को गोली मारना, आज तक दुनिया के लिए अभूतपूर्व उदाहरण है।

 

आज हम “आजाद भारत” में खुले आसमान के नीचे सांस ले रहे हैं। पासपोर्ट पर भारत स्वतंत्र है, पर आईना पकड़कर खुद से पूछना चाहिए:

– क्या आज हमारा विवेक, हमारा विचार, और हमारे फैसले सच में आजाद हैं?

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– क्या हमारी नई पीढ़ी अपनी आजादी को सिर्फ इंस्टाग्राम रील, नेटफ्लिक्स, दिखावटी विद्याध्ययन और “जयंती” फॉरवर्ड करने तक सीमित कर चुकी है?

– क्या जातिवाद, भ्रष्टाचार, हिंसा, धार्मिक कट्टरता, लालच, दिखावा और निकम्मापन- असल में देश और समाज को मानसिक गुलाम नहीं बना रहे?

– क्या आज के युवा को अधिकार तो याद हैं, मगर जिम्मेदारियां निभाने और देश के लिए कुछ करने की प्यास कम हो गई है?

 

*आजादी चंद्रशेखर आजाद के लिए*-

– एक अलख थी, जो विचारों को जमींदोज कर कुछ नया रचने की आग थी।

– समाज के अन्याय, झूठ, अन्याय, मुसीबत के खिलाफ सिर उठाकर बोलने का हौसला थी।

– सिस्टम से सवाल पूछने और खुद मिसाल बनने की राह थी।

 

आज आजादी बचाने के लिए हमें प्राणों का उत्सर्ग नहीं चाहिए, मगर सही मायनों में “आज़ाद” बनने के लिए यह संकल्प जरूर चाहिए—

– हर नागरिक संविधान, संसद और लोकतंत्र का सम्मान करे।

– महिलाओं, गरीबों, दलितों, बच्चों के हक़ की रक्षा करना अपने धर्म जितना बड़ा मानें।

– भ्रष्टाचार/झूठ/धार्मिक उन्माद/हिंसा और सामाजिक बुराइयों को पहचानकर उनके खिलाफ बोलने का हौसला दिखाएं।

– सेवा, शिक्षा, विज्ञान, नवाचार, परिश्रम और सत्यनिष्ठा को अपना अस्त्र बनाएं।

– जिम्मेदार, साहसी, यथार्थवादी और सोच में “आजाद” नागरिक बनें- यही असली श्रद्धांजलि होगी।

 

*निष्कर्ष:*

चंद्रशेखर आजाद ने जो आजादी हमें दी, उसकी असली पहचान हमारे रोज़मर्रा के फैसलों, सोच और जिम्मेदारी में झलकनी चाहिए। देश को आजाद करने के लिए उन्होंने प्राण दिए, हमें उस आजादी को अपना कर्म, विवेक और साहस बनाकर हर दिन बचाना और आगे बढ़ाना है।

आइये, आज की इस जयंती पर संकल्प लें कि न हम डरेंगे, न अन्याय को सहेंगे-हम सच, जिम्मेदारी , और ईमानदारी से जीकर दिखाएंगे कि “आजाद के भारत” में हम सच में आजाद हैं, और उन्हीं के सपनों वाला देश रचेंगे। यही हमारे लिए, और आने वाली पीढ़ी के लिए, असली आजादी और असली श्रद्धांजलि होगी। 🇮🇳