इस धरती पर जितनी भी महान हस्तियां हुईं हैं, उनमें से ज्यादातर अपने जीवन काल में खारिज की गई,उपेक्षित रहीं, प्रताड़ित की गई। समाज में सबको समान रूप से अपेक्षित प्रतिष्ठा नहीं मिल सकी। यह संभवत मानव स्वाभाव ही है। भारत के संदर्भ में ऐसा कुछ ज्यादा ही है। खासकर वे लोग जो समय से आगे का सोच रखते हैं, उनके रास्ते में पत्थर,कांटे बिछाने वाले थकते ही नहीं । कुछ ऐसा महान विचारक रजनीश को लेकर भी रहा है, जिनके विचार इस समय समूचे विश्व में प्रभाव छोड़ रहे हैं। जबकि उनके रहते वे विवादों में ही घिरे रहे। यहां तक कि खुलेपन का हिमायती पश्चिमी समुदाय भी उनसे खार खाये रहा। ऐसा ही कुछ अब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हो रहा है। जितनी बड़ी तादाद उनके कट्टर समर्थकों की है, उतनी ही उनके विरोधियों की भी है। हालांकि समर्थन और विरोध का असर न रजनीश पर हुआ, न आंइस्टीन, गैलिलियो, कालिदास पर हुआ, न ही मोदी पर हो रहा है। ऐसे लोग अपने मार्ग से नहीं डिगते, विचारों पर दृढ़ रहते हैं और लक्ष्य पूर्ति से पहले रुकने-थकने का नाम ही नहीं लेते।
नरेंद्र मोदी का नाम राजनीति में एक युग की तरह याद किया जायेगा। ठीक वैसे ही जैसे नेहरू युग को याद किया जाता है। किसी भी युग में सब मीठा-मीठा ही हो, बेहतर ही हो, जरूरी नहीं। यह तो आकलन करने वालों पर निर्भर करता है। नेहरू युग को आधुनिक भारत की नींव रखने के तौर पर याद किया जाता है तो अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, संप्रदायवाद, शासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार के उदय, कश्मीर के मामले में गलत फैसले,चीन,पाकिस्तान के साथ युद्ध, प्रतिभा पलायन, कमजोर आर्थिक नीतियां, विफल विदेश नीति जैसी नकारात्मक बातों के लिये भी नेहरू याद किये जाते रहेंगे।उनका दौर इसलिये याद रखा जायेगा कि वे आजादी के बाद के पहले प्रधानमंत्री रहे।
मोदी युग देश के बहुसंख्यक समुदाय का आत्म सम्मान महसूस करने, स्वदेशी की भावना के बलवती होने,सनातन परंपरा के पुनर्जीवित होने, भ्रष्टाचार पर लगाम कसने, देश में आधारभूत संरचना के मजबूत होने, आत्म निर्भरता बढ़ने, रक्षा क्षेत्र में आत्म विश्वास और संसाधन बढ़ने तथा दुनिया में भारत के प्रति सम्मान बढ़ने, राजनीतिक हैसियत ऊंची उठने,एक कद्दावर नेतृत्व के मौजूद रहने और आत्म सम्मान से आत्म रक्षा तक के लिये कुछ भी कर गुजरने का माद्दा औऱ् हौसला रखने वाले, तकनीक, विज्ञान, आध्यात्म, योग में नित नये परचम फहराने वाले और आतंकवाद के खात्मे की ओर तेजी से बढ़ने वाले देश के तौर पर देखा जायेगा।इसके अलावा वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री हुए,जिनके कार्यकाल में सेना ने म्यांमार और पाकिस्तान के अंदर जाकर आतंकवादियों के अड्डों पर हमले कर उन्हें सबक सिखाया और उनके संरक्षकों को चेताया कि यह आज का हिंदुस्तान है। दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि मोदी देश के गैर कांग्रेसी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जो लगातार दूसरी बार पद पर रहे। वे स्वतंत्रता के इतिहास में सबसे ज्यादा समय तक पद पर रहने वाले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री भी हुए। बहरहाल।
मैं यह नहीं कहता कि मोदी राज में देश में सब कुछ हरा-भरा हो गया, राम राज आ गया या जन जन खुशहाल,समृद्ध और संतुष्ट हो गया। यह तो मनुष्य के जीवन में अब तो संभव ही नहीं । फिर भी हम स्वतंत्र भारत की बात करें तो मुझे यह कहने और मानने में बिल्कुल संकोच नहीं कि यह हमारा बेहतर काल है। यह वो दौर है, जब अतीत के नेतृत्वकर्ताओं की भूलों से सबक लेकर नीतियों का निर्धारण किया जा रहा है, सपनों को हकीकत में बदला जा रहा है। पश्चिम की भौंडी नकल करने की बजाय मौलिक सोच को बढ़ावा दिया जा रहा है। 1947 के बाद पहली बार सेना सबसे अधिक सक्षम बना दी गई है। दुनिया भर की तरह तेज गत से स्टार्ट अप के क्षेत्र में भारत भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। गैर पारंपरिक ऊर्जा के क्षेत्र में लगातार छलांग लगाई जा रही है। अत्याधुनिक हथियार बनाये जा रहे हैं। सेना के लिये ज्यादातर सामान भारत में ही बनाया जा रहा है। अतंरिक्ष विज्ञान में प्रयोगों को बढ़ावा दिया जा रहा है। सबसे अहम तो यह कि चिकित्सा विज्ञान की सबसे पेचीदा प्रक्रिया टीके का विकास,उत्पादन और वितरण में दुनिया को मीलों पीछे छोड़ दिया गया है। कोविड के टीकों का निर्माण,निर्यात और टीकाकरण में जो उपलब्धियां भारत ने हासिल की, वे दुनिया के पांच सबसे शक्तिशाली और विकसित माने जाने वाले देश भी नहीं कर पाये। भारत ने डेढ़ साल के अल्प समय में 200 करोड़ से अधिक टीकों का उत्पादन कर विज्ञान और तकनीक के दादाओं के मुंह सील दिये।
मोदी युग को अविस्मरणीय बनाने वाली कुछ बातें तो ऐसी हैं कि भारत तो ठीक दुनिया में कोई सोच नहीं सकता था कि वैसा कुछ हो सकेगा। जी हां, कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति, 35 ए खत्म करना। जिस मसले पर खून की नदियां बह जाने का अंदेशा हो, धौंस दी जाती रही हो। जिसमें सांप-छछूंदर सी स्थिति हो,उसे समुचित संवैधानिक प्रक्रिया अपना कर अंजाम तक पंहुचा दिया गया हो, यह भारत के संदर्भ में तो 20वीं और 21वीं शताब्दी की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण घटना है। इसी तरह से राम मंदिर का निर्माण भी असंभव सा लगने वाला मसला रहा है। सन 1700 के आसपास से विवादित चल रहे मसले का सर्व सम्मत हल निकलने की तो कोई बात ही नहीं थी, बल्कि यह अंदेशा था कि जब भी किसी एक पक्ष के हक में फैसला आयेगा तो दूसरा पक्ष हर संभव उग्र प्रतिक्रिया कर सकता है । इन तमाम आशंकाओं को हिंद महासागर की अतल गहराइयों में डालते हुए देश की सर्वोच्च अदालत के जरिये देश की अस्मिता से जुड़े मसले का फैसला जब देश के बहुसंख्यक वर्ग के पक्ष में आया,जो दूसरी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। तीसरा मसला मुस्लिम महिलाओं के उत्पीड़न से जुड़ा है तीन तलाक का। इसे कानूनन अपराध की श्रेणी में लाना टेढ़ी खीर था। खासकर तब जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार इसी तरह से एक मसले में तलाक को गैर कानूनी देकर भरण पोषण भत्ता दिलाये जाने वाले अदालत के फैसले को पलटने वाला कानून लेकर आ गई और मुस्लिमों का तुष्टिकरण किया गया था। वहीं मोदी सरकार ने तीन तलाक को अवैध करार देकर देश में समान नागरिक कानून बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। इस मसले के खिलाफ आवाजें तो उठीं, किंतु वे असर न छोड़ सकी।
ऐसे ही 8 नवंबर 2016 को वो ऐतिहासिक दिन, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए नोटबंदी घोषित की, जिसके तहत एक हजार व पांच सौ रुपये का नोट 31 दिसंबर 2016 के बाद बंद करने का फैसला लिया गया। इसने एक झटके में समानांतर अर्थ व्यवस्था चलाने वालों,कालाबाजारियों और पाकिस्तानी हुक्मरानों के मंसूबों पर पानी फेर दिया, जो नकली भारतीय मुद्रा छापकर आतंकवादियों को भजते थे। खासकर कश्मीर में यह नकली मुद्रा जोर शोर से चलाई जाकर आतंकवादियों का भरण-पोषण किया जाता था और आम लोगों के बीच भी इसका वितरण किया जाता था। इस कदम ने इन तमाम लोगों की आर्थिक कमर तोड़कर रख दी। इसके दूरगामी परिणाम हुए और सबसे बड़ा फायदा तो यह भी हुआ कि देश ने नये दौर की अर्थ व्यवस्था को अपना लिया। नोटबंदी के बाद कैशलेस इकॉनॉमी की तरफ देश आगे बढ़ गया। डिजिटल करेंसी का चलन बढ़ा,क्रेडिट,डेबिट कार्ड से भुगतान,मनी ट्रांसफर,ई बैंकिंग,पेटीएम जैसे अनगिनत प्लेटफॉर्म से बिना नकद के भुगतान के आयाम खुल गये। यहां तक कि सब्जी के ठेले वाला,दूध वाला,चाट-पकौड़ी,गोल-गप्पे बेचने वाले,चाय ठेले वाला जैसे तमाम छोटे-छोटे कारोबारियों से लेकर तो किसान तक ने कैशलेस तकनीक को अपना लिया।यह संभव हुआ,देश में करीब 50 करोड़ लोगों द्वारा र्स्माट फोन के इस्तेमाल करने से।गरीबों के जनधन खाते खोलने,उन्हें आधार से जोड़ने और सेल फोन से इसके जुड़े होने ने इस नई अर्थ व्यवस्था को पनपने मे सहायता की। याने देश में कालेधन का जोर कम हुआ, नकद लेनदेन में कमी आई और अंतत: इसका प्रभाव अर्थ व्यवस्था को पारदर्शी और मजबूत बनाने में काम आया।
(क्रमश:)