बदलता भारत 7: मुगल—अंग्रेजों के नाम सड़कें,स्मारक:हमारे सपूत कूड़ेदान में

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न तो इसमें दो मत हैं, न ही इसे स्वीकार करने से भाजपा को बचना चाहिये कि केंद्र में 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनने के बाद से भारत में हिंदुत्व को पुनर्प्रतिष्ठापित होने का अवसर मिला है। राष्ट्रवाद की तरंगें उठ रही हैं। सनातनी परंपराओं,वैदिक संस्कृति,भारतीय मान्यताओं,गौरवशाली अतीत को याद कर रोमांचित होने,गौरवान्वित महसूस होने का भाव जागा है। साथ ही स्वतंत्रता के बाद से लगातार 2014 तक एक वर्ग विशेष के हित पोषण,तुष्टिकरण को सिंचित करने और बहुसंख्यक वर्ग की उपेक्षा,इतिहास का मनमाना लेखन, चंद लोगों का महिमामंडन,देश की संवैधानिक संस्थाओं में पसंदीदा वर्ग,व्यक्ति की नियुक्तियों का जो सिलसिला चला आ रहा था, उस पर पूरी तरह से रोक लग गई। स्वतंत्रता संग्राम में कुछ ही लोगों का योगदान प्रचारित करना,प्राचीन परंपराओं,स्मारकों की उपेक्षा,समृद्धि,साहस,भौतिक संपन्नता,पुरातात्विक संपदा की प्रचुरता,भारतीय वीरों की शौर्य गाथाओं को विस्मृत कर मुगलों को महान और अंग्रेजों को भारत के विकास का वाहक बताने का साजिशाना अभियान ऐसे मुद्दे रहे, जो देश को बेचारा,दीन-हीन,गरीब,पिछड़ा घोषित करते थे, उन तमाम पहलुओं का सच सामने लाना प्रारंभ किया गया। इसने इतने चेहरे,इतनी संस्थायें,इतनी साजिशें उजागर कर दी कि देश का हर आम-खास हतप्रभ है,आक्रोशित है। आम भारतीय के मन में ठूंस-ठूंस कर बिठा दी गई कुंठायें सच का प्रकाश पाकर दूर छिटक गई हैं। यह अंगड़ाई भी है और लंबी होती सच की परछाई भी । देश ने पहली बार अपने को ऊर्जा से भरपूर,हौसले से लबालब,कल्पनाओं से परिपूर्ण और बेहतर भविष्य के प्रति आश्वस्त महसूस किया है।

सोशल मीडिया के इस दौर में अच्छा और बुरा,सही और पूरी तरह गलत दोनों ही परोसा जा रहा है। यह आपके बुद्धि कौशल पर निर्भर करता है कि किसे मानें, किसे खारिज करें। अनगिनत वीडियो और संदेश प्रवाहित हो रहे हैं, जो हमें बताते हैं कि स्वतंत्र भा्रत में इतिहास और परंपराओं तक पर इरादतन परदा डाला गया और वह बताया,लिपिबद्ध किया गया , जो लगभग झूठ,अर्ध सत्य और काफी कुछ सफेद झूठ भी है। हमें इतिहास में मुगलों और अंग्रेजों के पराक्रम और भारत के विकास में उनके योगदान को बताया गया। स्थापत्य से लेकर तो तकनीक तक मेहरबानी और दूरदर्शिता बताई गई। लाल किले,कुतुब मीनार,ताज महल से आगे ले ही नहीं जाया गया। जबकि कुंभलगढ़,चित्त्तौड़,सिंहगढ़,जयगढ़ सरीखे अनगिनत अभेद्य,विशाल और अपराजेय किलों को हाशिये पर रखा गया। दक्षिण भारत के दर्जनों मंदिरों की उनके निर्माण काल के समय के संदर्भ में उनके स्थापत्य और कारीगरी विस्मृत कर देने वाली होकर भी उपेक्षित रखी गई । जब परिवहन के उन्नत, मशीनीकृत साधन नहीं थे, बुलडोजर,जेसीबी मशीनें नहीं थी, तब सैकड़ों मील दूर से टनों वजनी पत्थर किसी जगह लाना और सौ-सौ फीट ऊंचाई तक ले जाकर उसे स्थापित करना,आज तक न समझ में आने वाली बात है। ऐसी तमाम इमारतें,स्मारकों का कहीं जिक्र तक नहीं किया गया, जो अब सामने आ रहा है।

हैरत है कि जिन मुगलों को स्थापत्य कला का माहिर और प्रेमी प्रचारित किया जाता रहा, उनके मूल देशों में बालू रेत के अलावा कुछ था ही नहीं । फिर वे तो लुटेरे थे,कंगाल थे, क्रूर थे, मूर्ति विरोधी थे तो वे स्थापत्य कला के पुजारी कैसे हो सकते थे? याने शिल्प हमारा और ठप्पा उनका। ऐसी विस्मृत कर दी गईं और जान बूझकर छुपा कर रखी गई जानकारियां अब सैलाब की तरह बहकर आ रही है तो देशवासियों को महसूस हो रहा है कि कैसे हमारी सनातन परंपरा,संस्कृति,स्थापत्य कला,कौशल,उपलब्धियां किस स्तर की रही होंगी। ऐसा ही घिनौना बरताव हमारे वीर पुरुषों के साथ भी किया गया। चंद लोगों के बलिदान को हिमालय सी ऊंचाई पर दर्शाया जाता रहा और नींव के पत्थरों पर धूल डाली जाती रही। यह मोदी सरकार का अतुलनीय योगदान माना जायेगा कि उसने हाल ही में 14 अगस्त से दूरदर्शन पर 75 कड़ियों का धारावाहिक प्रारंभ किया है, जिसमें अनाम स्वतंत्रता सेनानियों के पराक्रम की गाथायें प्रस्तुत की जा रही हैं। इससे पहले आकाशवाणी पर मुख्य समाचारों के बाद ऐसे वीर सपूतों की कहानियों का प्रसारण शुरू हो चुका था, जिन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि कैसे मुगल काल से लेकर तो अंग्रेजों के शासन काल तक कैसे-कैसे जुल्म हम पर ढाये गये और कैसे उन महापुरुषों ने बलिदान दिया, जिसका कहीं मामूली उल्लेख तक नहीं है। शर्म आनी चाहिये उन भारतीय कहलाने वाले इतिहासकारों, राजनेताओं को जिन्होंने भाट-चारण परंपरा का अनुसरण करते हुए मौजूदा सत्ता्धीशों का स्तुति गान किया और वास्तविक सेनानियों की यश गाथा कूड़ेदान में फेंक दी।

मै यह मानता हूं कि सोशल मीडिया पर प्रसारित सारी जानकारी सही नहीं होती,किंतु हमें यह याद रखना चाहिये कि स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक तीन-चार शिक्षा मंत्री एक वर्ग विशेष के ही बनाये जाते रहे,जिन्होंने भारतीय जीवन मूल्यों को तरजीह नहीं दी और आक्रमणकारियों को महान ठहराने का पाप किया, जो जहर की तरह देश की पीढ़ियों की रगों में प्रवाहित हो गया। इनका साथ दिया वामपंथी इतिहासकारों ने, जो भारत की संस्कृति को मिटाने के लिये खास तौर से दीक्षित-प्रशिक्षित किये गये थे। उन्हें वामपंथी देशों से शिक्षा,शोध जैसे कामों की आड़ में वजीफे,आर्थिक सहायता दी जाती थी। विदेश यात्रायें प्रायोजित की जाती थीं। उन मुल्कों के शिक्षण संस्थानों में भर्ती कर स्कालरशिप दी जाती थी। यह सब कुछ इतने नियोजित तरीके से हुआ कि दो-तीन पीढ़ियों को लाल रंग में सियार की तरह रंगकर शेर बनाने का भ्रम पैदा कर दिया गया।

अब जबकि इस लाल सलाम गैंग का भांडा फोड़ हो गया तो इन्हें अभिव्यक्ति की आजादी याद आने लगी, विचारों की स्वतंत्रता पर हमला नजर आने लगा। इनका आरोप है, जो खीज की शक्ल में है और कहा जा रहा है कि देश का भगवाकरण किया जा रहा है। अब इन बुद्धिविलासियों से ये कौन पूछे कि भारत में शिक्षा,इतिहास,परंपराओं,संस्कृति का यदि भगवाकरण नहीं किया जायेगा तो क्या इस्लामीकरण या ईसाइकरण या वामपंथीकरण किया जाना उचित होगा? सनातन संस्कृति का सबसे प्रबल और प्रामाणिक प्रतीक भगवा ही है,इसमें कोई संदेह किसी को है तो उसकी समझ को चुनौती तो दी नहीं जा सकती, क्योकि वह फिर उतना ही नासमझ होगा।

मुगलों और अंग्रजों ने एक बेहद निकृष्ट काम समान रूप से किया। उसनें भारत को लोगों को गुलाम तो बनाया ही,उन पर बेतरह जुल्म तो ढाये ही, साथ ही इस बात का खास ध्यान रखा कि सदियों तक इस देश के मानस पटल पर गुलामी के प्रतीक चिन्ह बने हुए रहें, इसके तौर पर उसने भारत की सनानत संस्कृति,परंपराओं को खंडित,दूषित भी किया, जिससे अब भी उबरना तो आसान नहीं, किंतु जबरदस्त कोशिशे जरूर प्रारंभ हुई है। उसी की तकलीफ मुगल-अंग्रेजों के वंशजों को हो रही है। जरा ठंडे दिमाग से सोचिये कि भारत के अलावा कोई देश ऐसा है, जहां अपने आक्रमणकारियों के नाम पर सड़कें,गली,मोहल्ले,नगर,शहर हैं? उनके स्मारक हैं। इतिहास में उनकी शौर्य गाथायें हैं। उनके द्वारा विध्वंस किये गये धर्म स्थान हैं और यदि आज की पीढ़ी,देश की निर्वाचित सरकार उन नासूरों का सफाया करती है तो भितरघातियो के कलेजे पर कोबरा मचलने लगता है।

अब समय आ गया है, जब हम ऐसे सारे प्रतीक मिटा दें। उन लक्षणों का स्थायी उपचार करें जो नासूर को बने रहने में मदद करता है। आततायियों मुगलों,अंग्रेजों की वो निशानियां खत्म कर दें, जो हमारे स्वाभिमान,संस्कृति और सनातनी पहचान व अस्मिता को कचोटती है। संस्कृति,इतिहास,परंपराओं को समूल नष्ट करने का जो अभियान स्वतंत्रता के बाद से ही चलाया जा रहा था, उसे सख्ती से रोकें। इस अभियान को यदि कोई जात-पांत की नजर से देखता है तो यह उसकी नजर का खोट ही कहा जायेगा। स्वाभिमानी भारतीय तो इससे प्रसन्न ही होगा।

(क्रमशः )