चेहरे बदलने से नहीं बदलेगी सूरत, जरूरी है स्वास्थ्य सेवाओं की सर्जरी की …

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कौशल किशोर चतुर्वेदी की रिपोर्ट 
कमला नेहरू अस्पताल में हुई दुखद घटना के बाद शासन ने कार्यवाही भी शुरू कर दी है। गांधी मेडिकल कॉलेज के डीन जीतेन्द्र शुक्ल, हमीदिया अस्पताल के अधीक्षक डॉ लोकेन्द्र दवे , कमला नेहरू अस्पताल के संचालक केके दुबे को उनके पद से हटा दिया गया और सीपीए विद्युत विंग के उपयंत्री अवधेश भदौरिया को निलंबित किया गया है।
एक दिन पहले ही डॉक्टरों के प्रयास की सराहना हो रही थी और सम्मानित करने तक की आवाजें सुनाई दे रही थीं। और एक दिन बाद ही डॉक्टरों पर कहर ठीक उसी तरह से बरपा, जिस तरह से सोमवार को नवजातों पर बरपा था। अब इन डॉक्टरों की भी क्या गलती थी, दोष तो व्यवस्थाओं का था जो प्रदेश के गठन के 65 साल बाद भी नहीं सुधर पाईं। अब यह डॉक्टर तो ठीक उसी व्यवस्था के तहत काम कर रहे थे, जिस व्यवस्था में पूरा तंत्र चल रहा है। समस्या यहां नहीं है, जिसमें समाधान तलाशकर पीड़ितों के जख्म पर मरहम लगाने की कोशिश की जा रही है।
पर समस्या तो सिस्टम है जिसमें क्रांतिकारी बदलाव करने की जरूरत है, जिसके बारे में सोचा जाए तो शायद स्थायी समाधान निकल सके। तब गरीबों की मजबूरी न रहे सरकारी अस्पताल की शरण लेना और अमीर भी निजी अस्पतालों से तौबा कर सरकारी अस्पताल को प्राथमिकता दे सकें। क्योंकि यह सभी को मालूम है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टर सिद्धहस्त भी हैं, पर मरीजों की अधिकता, संसाधनों की कमी के साथ अंदरूनी राजनीतिक गहमागहमी के चलते त्रस्त भी हैं। हमीदिया में समस्याओं का अंबार है और सभी सरकारी अस्पतालों का भी यही हाल है।
ऐसा अक्सर सुनने में आता ही रहता है कि करोड़ों कीमत के अत्याधुनिक उपकरण खरीद लिए गए हैं, लेकिन उनका उपयोग नहीं हो पा रहा है। पैकिंग में बंद रहने को मजबूर हैं। कोई उपकरण इंस्टॉल हो गया है तो उसके मेंटेनेंस की कोई व्यवस्था नहीं है। कभी फंड की कमी दर्द देती है तो कभी व्यवस्था बेदर्द बनने को मजबूर करती है। कभी जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल चलती रहती है, तो कभी नर्सिंग स्टाफ काम न करने की धमकी देता है।
जो दोषी हैं उन्हें बख्शा नहीं जाएगा, निश्चित तौर से सरकार की यह सोच सही हो सकती है और सरकार की कार्यवाही भी सबक सिखाने के लिए जरूरी भी है। पर वास्तव में असली गुनहगार सालों से चली आ रही वह व्यवस्था ही है, जो पूरे सिस्टम को दीमक की तरह चट कर रही है।
और चौथी पारी में जिस तरह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी मंशा जता चुके हैं, अब वह सभी काम पूरा करने हैं जो तीन पारियों में नहीं हो सके…अब वह समय आ गया है। चेहरे बदलने से स्वास्थ्य सेवाओं की सूरत कतई नहीं बदल सकती, स्वास्थ्य सेवाओं की समग्र रूप से सर्जरी की जरूरत है ताकि नवजातों को भी जीवन की सुरक्षा के साथ स्वास्थ्य की गारंटी दी जा सके और हर गरीब और इच्छुक अमीर भी बेहतर इलाज के लिए सरकारी अस्पताल की तरफ दौड़ लगा सके।
 मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने  निर्देश दिया है कि फायर सेफ्टी ऑडिट और इलेक्ट्रिक सेफ्टी ऑडिट (सरकारी और प्राइवेट) दोनों अस्पतालों में सुनिश्चितता के साथ लागू हो। निर्देशों की समीक्षा अब कलेक्टर स्तर पर अगले 10 दिनों तक होगी। हर जिले के कलेक्टर उनके जिले में स्थित सरकारी मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल, प्राइवेट हॉस्पिटल आदि के सेफ्टी नॉर्म्स के बारे में अथॉरिटी के साथ उन्होंने ऑडिट कराया या नहीं कराया, रिपोर्ट है या नहीं, इसकी भी स्थिति का जायजा लेंगे।
उसके साथ- साथ ये सुनिश्चित भी करेंगे कि हर बिल्डिंग में हर तरीके का सेफ्टी नॉर्म्स पूरी तरीके से लागू किया जाए। डॉक्टर पूर्णत: उपचार पर ध्यान दें इसलिए अस्पताल प्रबंधन और उपचार की व्यवस्था पृथक होगी।अस्पतालों के प्रबंधन और रखरखाव के लिए पृथक कैडर बनेगा। विशेषज्ञों के साथ सेफ्टी प्रावधानों पर पुनर्विचार होगा। अस्पतालों में ऑक्सीजन संचालन पर स्टाफ को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा।
चिकित्सा शिक्षा विभाग का स्वयं का सिविल विंग होगा। भविष्य में इस प्रकार की घटना नहीं हो, इसके लिए संपूर्ण प्रदेश में अभियान चलाया जाएगा। अस्पतालों के सिविल वर्क, विद्युत व्यवस्था, उपकरणों के रखरखाव आदि के प्रबंधन में एजेंसियों का दोहराव न हो, यह सुनिश्चित किया जाएगा।
निश्चित तौर से शिवराज के इन कदमों को स्वास्थ्य सेवाओं में आमूलचूल बदलाव की दिशा में सार्थकता व सकारात्मकता के साथ देखा जा सकता है, बशर्ते कि यह उस सोच की तरह साबित न हों जैसे श्मसान में रहते तक वहां मौजूद व्यक्तियों की रहती है और वापस लौटने पर जलकर खाक हो जाती है। शिवराज का यह प्रयास सार्थक हो और स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए मध्यप्रदेश से ऐसी व्यवस्था जन्म ले सके, जिसे पूरा देश रोल मॉडल मानकर लागू करने को तत्पर हो।
जब-जब मन बेचैन होता है, तो दुष्यंत कुमार जेहन में खुद-ब-खुद दौड़े चले आते हैं। उनकी गजलों की पंक्तियां मन में गुनगुनाने लगती हैं। चिंता भी सामने रखती हैं और समाधान भी सुझाती हैं।
फिलहाल गजल पढ़कर दुष्यंत कुमार को मन से याद करते हैं, जिनकी हर पंक्ति हकीकत को बयां करती हुई बुनियाद हिलाने की, पर्वत जैसी पीर के पिघलने की और सूरत बदलने की बात करती है। और सबसे जरूरी यह कि इस बदलाव की आग सीने में जलने की है, जो हर सीने में जले तो हो सकता है कि सूरत भी बदल जाए और हिमालय से गंगा भी निकल जाए। आइए बिताते हैं कुछ पल दुष्यंत जी के संग।
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।