चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व के विकास की शैक्षणिक रणनीति

चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व के विकास की शैक्षणिक रणनीति

शिक्षा किसी भी समाज और राष्ट्र की रीढ़ होती है जिसके आधार पर उस समाज और राष्ट्र का चहुँमुखी विकास आकार पाता है। समय के साथ होने वाले शाश्वत परिवर्तन आवश्यकता महसूस कराते हैं कि शिक्षा में भी परिवर्तन लाया जाए। इन्हीं परिवर्तनों के चलते 1986 की शिक्षा नीति में सुधार करने के लिए हमारे देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लाई गई। इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने को लक्षित किया गया है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की संरचना के रूप में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आधारभूत सिद्धांत में एक दृष्टि छिपी है जो इसे पूर्व की सभी शिक्षा नीतियों से विशिष्ट बनाती है।

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शिक्षा का शाब्दिक अर्थ होता है सीखने एवं सिखाने की क्रिया परंतु अगर इसके व्यापक अर्थ को देखें तो शिक्षा किसी भी समाज में निरंतर चलने वाली सामाजिक प्रक्रिया है जो उद्देश्यपूर्ण होता है और इसके माध्यम से मनुष्य की आंतरिक शक्तियों का विकास तथा व्यवहार को परिष्कृत किया जाता है। शिक्षा द्वारा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि कर मनुष्य को योग्य नागरिक बनाया जाता है। गांधीजी का मत था कि बालक और मनुष्य के शरीर, मन तथा आत्मा के सर्वांगीण एवं सर्वोत्कृष्ट विकास ही शिक्षा है। इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है।

चरित्र का मनुष्य जीवन में बड़ा महत्व है। सद्चरित्रता से मनुष्य को अनेक लाभ मिलते हैं, क्योंकि सच्चरित्रता किसी खास गुण का बोधक शब्द नहीं है, बल्कि यह सत्य, उदारता, विनम्रता, सुशीलता, सहानुभूति आदि अनेक गुणों को अपनी परिधि में समेटे हुए है। जिस मनुष्य में ये गुण होते हैं वह मनुष्य सद्चरित्र कहलाता है और सद्चरित्रता ही मनुष्य को जीवन जीने की कला सिखाती है। चरित्र हमारे व्यवहार और कार्यों में स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है। ये चरित्र ही है जो निस्वार्थ भाव, ईमानदारी, धारणा, साहस, वफादारी और आदर जैसे गुणों के मिले-जुले रूप में व्यक्ति में दिखता है। चरित्रवान व्यक्ति में आत्मबल के साथ-साथ उच्च कोटि का धैर्य एवं विवेक निश्चित रूप से होता ही है।

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हमारे जीवन में चरित्र के महत्व को संदर्भित करते हुए भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ शंकरदयाल शर्मा ने कहा था कि किसी शिक्षित चरित्रहीन व्यक्ति की अपेक्षा एक अशिक्षित चरित्रवान व्यक्ति समाज के लिए अधिक उपयोगी होता है। तात्पर्य यह है कि जीवन के समस्त गुणों, ऐश्वर्या, समृद्धियों और वैभवों की आधारशिला सदाचार है, सच्चरित्रता है. वैदिक मंत्रों में हमारे ऋषियों ने इसलिए भगवान से प्रार्थना की है कि ‘असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय!’ क्योंकि, विद्या से मनुष्य की बुद्धि के गवाक्ष खुलते हैं और उन गवाक्षों से ज्ञान के प्रकाश की किरणें अन्दर प्रवेश करती हैं। पश्चिम से प्रभावित जीवनशैली, तकनीकी के दायरे में सिमटती हुई दुनिया, वास्तविक जीवन के बजाय काल्पनिक जीवन और इंटरनेट मीडिया का बढ़ता वर्चस्व, शारीरिक और श्रमपरक खेलकूद की जगह गैजेट गेम्स में उलझते जीवन, बढ़ते एकाकीपन ने देश के युवाओं को एक खतरनाक गिरफ्त में लेना शुरू किया है। इसका दुष्परिणाम है ऐसे असंतुलित व्यक्तित्व का निर्माण, जो स्वयं उनके लिए ही नहीं, बल्कि परिवार, समाज और देश के लिए भी अनुत्पादक और खतरनाक साबित हो रहा है।

शिक्षा के धरातल पर इन्हीं से निपटने के लिए एक सुचिंतित, सुविचारित और दूरगामी प्रयास है मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम। देश भर के विशेषज्ञों की सहायता से तैयार इन पाठ्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास और चरित्र निर्माण करना है। व्यक्ति के आचरण, व्यवहार, शिक्षा, योग्यता, शालीनता, पहनावा, उदारता, त्याग, क्षमा, बौद्धिक जैसे तत्वों को अपनाकर जो अपनी छवि को अन्य से अलग प्रस्तुत करता है इसे ही व्यक्तित्व विकास कहा जाता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यदि आप किसी को भी प्रभावित करना चाहते है तो आपको बेहतर प्रदर्शन करना होगा इसके लिए आपको किसी को भी आकर्षित करने की कला आनी चाहिए। यह तभी संभव है जब आपके अन्दर श्रेष्ठ गुणों का समावेश हो। यह श्रेष्ठ गुण हैं संतुलित एवं सुन्दर शरीर, उत्तम विचार और आत्मविश्वास, सद्विचारों और सत्कर्मों की एकरूपता ही चरित्र है। ‘चरित्र’ शब्द मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रकट करता है। ‘अपने को पहचानो’ शब्द का वही अर्थ है जो अपने चरित्र को पहचानने का है। हमारा चरित्र ही हमारे आध्यात्मिक विकास का आईना होता है, जो हमें आध्यात्म से जोड़कर आंतरिक ज्ञान से अवगत कराता है। चरित्र एवं व्यक्तित्व एक दूसरे के पूरक हैं. व्यक्ति का संपूर्ण स्वभाव अथवा चरित्र ही व्यक्तित्व कहलाता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का एक प्रमुख लक्ष्य विद्यार्थियों का चरित्र निर्माण है, ताकि विद्यार्थियों के जीवन के सभी पक्षों और क्षमताओं का संतुलित विकास हो सके। भारतीय चिंतन परंपरा में चरित्र निर्माण और समग्र व्यक्तित्व विकास शिक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य माना जाता है। वर्तमान युग में चरित्र निर्माण और समग्र व्यक्तित्व विकास की जरूरत और बढ़ जाती है। इस नीति का उद्देश्य ऐसे नागरिकों का निर्माण करना है जो विचारों से, कार्य व्यवहार से एवं बौद्धिकता से भारतीय बनें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा के अलग-अलग स्तरों पर सभी विषयों में भारतीय ज्ञान परंपरा, कला, संस्कृति एवं मूल्यों का समावेश करने की बात कही गयी है।

डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, मध्य प्रदेश और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के परिप्रेक्ष्य में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व का समग्र विकास’ विषय पर 07 से अक्टूबर 2022 तक राष्ट्रीय कार्यशाला एवं शोध-संगोष्ठी का आयोजन इस विश्वविद्यालय किया गया। शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले देश के प्रख्यात शिक्षाविदों ने इस कार्यशाला में भाग लिया। संगोष्ठी में व्यक्तित्व की संकल्पना, व्यक्तिगत का समग्र विकास, चरित्र निर्माण, वैदिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा जैसे विषयों पर मंथन किया गया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के द्वारा व्यक्ति के चरित्र अर्थात व्यक्तित्व का समग्र विकास किस प्रकार किया जाए, इस महत्वपूर्ण पक्ष पर विमर्श कर उन्हें राष्ट्रीय संगोष्ठी के माध्यम से प्रकाश में लाया गया, जिसमें मध्यप्रदेश, बिहार, दिल्ली, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड सहित कई राज्यों के प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस विषय पर पांच दिन तक चलने वाला किसी विश्वविद्यालय का यह पहला और अनूठा आयोजन रहा। चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास पर केंद्रित यह कार्यशाला विश्वविद्यालयों में क्रियान्वयन की शैक्षणिक रणनीति एक सार्थक पहल है।

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प्रो नीलिमा गुप्ता

(कुलपति, डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर)