नहीं बदलता सत्ता का चरित्र

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नहीं बदलता सत्ता का चरित्र

दुनिया में सत्ता का चरित्र न कभी बदला है और न शायद कभी बदलेगा। सत्ता पाकर किसे मद नहीं होता ? भरत जैसे बिरले ही होते हैं। मामला बिहार में पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का हो या पुलिस अभिरक्षा में पूर्व सांसद अतीक अहमद के मारे जाने का या दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के आवास की साज -सज्जा पर 45 करोड़ रूपये खर्च करने का। सबमें सत्ता की मादकता साफ़ झलकती है।

सत्ता सर्वशक्तिमान होती है । वो जो चाहे कर सकती है. कोई क़ानून,कोई अदालत उसके ऊपर नहीं होती। ये पहले भी प्रमाणित हुआ है और आज भी प्रमाणित हो रहा है । देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ,हो राजीव गांधी हों ,अटल बिहारी बाजपेयी हों ,नरेंद्र मोदी हों या फिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उर्फ़ सुशासन बाबू हो या मिस्टर क्लीन अरविंद केजरीवाल । सत्ता में पहुंचकर सबके चरित्र कमोवेश एक जैसे हो जाते हैं। सत्ता जो चाहे कर सकती है,करा सकती है। कोई उसका हाथ नहीं पकड़ सकता।

साल 1994 को गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैय्या की हत्या में पूर्व सांसद आनंद मोहन का नाम आया.था। इस मामले में 2007 में कोर्ट ने उन्हें सजाए मौत की सजा सुनाई थी. हालांकि, बाद में यह सजा आजीवन कारावास में बदल गई थी. आनंद मोहन को न तो हाईकोर्ट से राहत मिली और न ही सुप्रीम कोर्ट से. 15 सालों तक सजा काटने के बाद आनंद मोहन अब नीतीश सरकार के एक फैसले से रिहा हो गए हैं, जिसके बाद सियासत तेज हो गई है। आनंद मोहन के साथ दो दर्जन दुसरे कैदी भी रिहा किये गए। सरकार ने आनंदमोहन को रिहा करने के लिए जेल मेन्युअल में संशोधन किया। अदालत सजा दे और सरकार सजायाफ्ता को रिहा कर दे तो आप ही बताइये की कौन बड़ा हुआ ?

आनंद मोहन की रिहाई से बिहार में जेडीयू को राजनीतिक लाभ हो सकता है,होगा ही लेकिन डॉ राम मनोहर लोहिया की आत्मा रुदन करेगी। क्योंकि घोषित और सजायाफ्ता हत्यारे को रिहा करने का पाप लोहिया के शिष्य ने किया है। लोहिया का इसमें कोई दोष नहीं,दोष नीतीश बाबू का भी नहीं है । दोष सियासत का है। जो बेरहम है,नृशंस है ,निर्मोही है। बिहार में राजपूतों की राजनीति को साधने के लिए यदि आज आनंद मोहन को रिहा किया जा सकता है तो आने वाले दिनों में दूसरी जातियों के अपराधी भी इसी बिना पर रिहा किये जा सकते हैं।

बिहार में आनंद मोहन की जरूरत सत्ता को थी इसलिए उन्हें रिहा करने के लिए कानून बदल दिए गए । लेकिन उत्तर प्रदेश में पूर्व सांसद अतीक अहमद की सत्ता को जरूरत नहीं थी इसलिए उसका बेहद आसान तरीके से दिन -दहाड़े खात्मा भी करा दिया गया। अतीक भी आनंद मोहन की तरह हत्यारा और आतंक का प्रतीक था। पुलिस अभिरक्षा में था ,लेकिन सत्ता के किसी काम का नहीं था इसलिए मारा गया। वो भी यदि किसी जातीय समीकरण में यूपी की सत्ता के काम का होता तो शायद उसे भी बचाया जा सकता था।

सवाल ये है कि बेलगाम सत्ता के ऊपर अब देश में कौन है ? देश की बड़ी यानि सबसे बड़ी अदालत भी सत्ता के बर्बर शक्ति प्रदर्शन को ख़ामोशी के साथ देख रही है । उसमें इतनी तथा नहीं है कि वो अपनी तरफ से किसी भी सरकार के कान ऐंठ सके। सवाल कर सके कि आखिर क़ानून से खिलवाड़ हो कैसे रहा है ? देश की छोटी-बड़ी अदालतें भी अपनी सीमा रेखा जानतीं हैं इसलिए उसी में रहकर काम करतीं है,वरना उनके भी लत्ते लिए जा सकते है। केंद्रीय क़ानून मंत्री किरण रिजिजू तो एक आरसे से यही सब कर भी रहे हैं।

बहरहाल बात सत्ता के निरंकुश होने की है । बिहार से बाहर निकलकर दिल्ली में भी सत्ता का ये ही चरित्र है । दिल्ली के मुख्यमंत्री ने अपने एक सहयोगी मनीष सिसोदिया को जेल भिजवा दिया। अब उनके ऊपर अपने सरकारी बंगले की साज-सज्जा पर 45 करोड़ रूपये खर्च करने का आरोप ह। आरोप हर समय गलत नहीं होता । इस समय भी ये गलत नहीं दिखाई दे रहे ,लेकिन कोई करे भी तो क्या करे ? दोष अरविंद केजरीवाल का नहीं सत्ता का है। अरविंद केजरीवाल कोई कर्पूरी ठाकुर कैसे हो सकते हैं ? एक मुख्यमंत्री को झोपड़ी में थोड़े ही रहना चाहिए। उसका आवास कम से कम महल जैसा तो दिखना ही चाहिए।

सत्ता का दुरूपयोग करने वालों को न कोई रोक सकता है और न कोई सजा दे सकता है ,क्योंकि ऐसा करने वाले भी तो ऐसा ही करते हैं जैसा अरविंद केजरीवाल या नीतीशकुमार या आदित्यनाथ ने किया है।

सत्ता अब ऐसा हाथी है जिसका न कोई महावत है और जिसे रोकने के लिए कोई अंकुश ही है। निरंकुश सत्ता को केवल जनादेश से रोका जा सकता है ,लेकिन अब जनादेश भी खरीदा और बेचा जाने लगा है। ऐसे में सत्ता के निरंकुश हाथी को रोकने के नए उपायों पर विचार किया जाना चाहिए ,अन्यथा पानी सिर के ऊपर होगा। सिर के ऊपर पानी का जाना जानलेवा होता है। सत्ता को नशामुक्ति केंद्र में भी नहीं भेजा जा सकता। इसलिए भगवान ही सबका मालिक है । वो ही सद्बुद्धि दे सकता है सत्ताधीशों को। भाजपा और नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए यदि नीतीश बाबू को हत्यारों की जरूरत है तो बेहतर हो कि वे अभियान को multbii कर भाजपा में ही शामिल हो जाए । देश की आँखों में धुल न झोंकें।