सुदूर गांव से समूचे विश्व तक भारत की जयकार मोदी के लक्ष्य  

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सुदूर गांव से समूचे विश्व तक भारत की जयकार मोदी के लक्ष्य  

सत्ता, संपन्नता, शिखर-सफलता  से अधिक महत्वपूर्ण है- संघर्ष की क्षमता और जीवन मूल्यों की दृढ़ता। इसलिए नरेन्द्र भाई मोदी के प्रधानमंत्री पद और उनकी संगठन  की  सफलताओं  से अधिक महत्ता उनकी संघर्ष यात्रा और हर पड़ाव पर विजय की चर्चा करना मुझे श्रेयस्कर लगता है। सत्ता और संबंधों को बनाने से अधिक महत्व उनकी निरंतरता का है | हर मोड़ पर उन्हें नई चुनौती का सामना करना पड़ा है | गृह प्रदेश गुजरात से लेकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में उनके समर्थक हैं और आलोचक विरोधी भी | अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका , यूरोप , अफ्रीका , रुस , चीन के आपसी विरोध भी हैं , लेकिन भारत के लिए सबके सहयोग और संबंधों के रास्ते प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने निकाल लिए | पाकिस्तान सरकार , सेना तथा आई एस आई अवश्य आतंकवादी हमलों से विचलित करते हैं , लेकिन दुनिया के अधिकांश देश पाकिस्तान को न केवल दोषी ठहरा रहे , वरन जम्मू कश्मीर  सहित भारत के विभिन्न राज्यों में बड़े पैमाने पर विकास के लिए पूंजी लगाने आ रहे हैं | चंद्रयान , सूर्य  अनुसंधान के आदित्य अभियान और जी -20 देशों के शिखर सम्मलेन की सफलता पर विश्व समुदाय भारत और नरेंद्र मोदी की सराहना करते जा रहे हैं |

 

 राजधानी में संभवतः ऐसे बहुत कम पत्रकार इस समय होंगे, जो 1972 से 1976 के दौरान गुजरात में संवाददाता के रूप में रहकर आए हों। इसलिए मैं वहीं से बात शुरू करना चाहता हूँ। हिन्दुस्तान समाचार (न्यूज एजेंसी) के संवाददाता के रूप में मुझे 1973-76 के दौरान कांग्रेस के एक अधिवेशन, फिर चिमन भाई पटेल के विरुद्ध हुए गुजरात छात्र आंदोलन और 1975 में इमरजेंसी रहते हुए लगभग 8 महीने अहमदाबाद में पूर्णकालिक रहकर काम करने का अवसर मिला था। इमरजेंसी के दौरान नरेन्द्र मोदी भूमिगत रूप से संघ-जनसंघ तथा विरोधी नेताओं के बीच संपर्क तथा सरकार के दमन संबंधी समाचार-विचार की सामग्री गोपनीय रूप से पहुंचाने का साहसिक काम कर रहे थे।प्रारंभिक दौर में वहाँ इमरजेंसी का दबाव अधिक नहीं दिख रहा था। उन्हीं दिनों ‘साधना’ के संपादक विष्णु पंडयाजी से भी उनके दफ्तर में जाकर राजनीति तथा साहित्य पर चर्चा के अवसर मिले। बाद में संपादक-साहित्यकार विष्णु पंडया के अलावा नरेन्द्र मोदी ने इमरजेंसी पर गुजराती में पुस्तक भी लिखी। इसलिए यह कहने का अधिकारी हूँ कि सुरक्षित जेल (और बड़े नेताओं के लिए कुछ हद तक न्यून्तम सुविधा साथी भी) की अपेक्षा गुपचुप वेशभूषा बदलकर इमरजेंसी और सरकार के विरुद्ध संघर्ष की गतिविधयाँ चलाने में नरेन्द्र मोदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गिरफ्तारी से पहले सोशलिस्ट जार्ज फर्नांडीस भी भेस बदलकर गुजरात पहुंच थे और नरेन्द्र भाई से सहायता ली थी। मूलतः कांग्रेसी लेकिन इमरजेंसी विरोधी रवीन्द्र वर्मा जैसे अन्य दलों के नेता भी उनके संपर्क से काम कर रहे थे। संघर्ष के इस दौर ने संभवतः नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति की कटीली-पथरीली सीढ़ियों पर आगे बढ़ना सिखा दिया। लक्ष्य भले ही सत्ता नहीं रहा हो, लेकिन कठिन से कठिन स्थितियों में समाज और राष्ट्र के लिए निरंतर कार्य करने का संकल्प उनके जीवन में देखने को मिलता है।

PM Narendra Modi

  इस संकल्प का सबसे बड़ा प्रमाण  भाजपा को पूर्ण बहुमत  के साथ दूसरी बार सत्ता में आने के कुछ ही महीनों में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने बाकायदा संसद की स्वीकृति के साथ -कश्मीर के लिए बनी अस्थायी व्यवस्था की धारा 370 की दीवार  ध्वस्त कर लोकतांत्रिक इतिहास का नया अध्याय लिख  दिया। सामान्यतः लोगों को गलतफहमी है कि मोदी जी को यह विचार तात्कालिक राजनीतिक-आर्थिक स्थितियों के कारण आया। हम जैसे पत्रकारों को याद है है कि 1995-96 से भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के रूप में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल के साथ जम्मू-कश्मीर में संगठन को सक्रिय करने के लिए पूरे सामथ्र्य के साथ जुट गए थे। हम लोगों से चर्चा के दौरान भी जम्मू-कश्मीर अधिक केन्द्रित होता था, क्योंकि भाजपा को वहां राजनीतिक जमीन तैयार करनी थी। संघ में रहते हुए भी वह जम्मू-कश्मीर की यात्राएं करते रहे थे। लेकिन नब्बे के दशक में आतंकवाद चरम पर था। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल किंलटन की भारत-यात्रा के दौरान कश्मीर के छत्तीसिंगपुरा में आतंकवादियों ने 36 सिखों की नृशंस हत्या कर दी। प्रदेश प्रभारी के नाते  नरेन्द्र मोदी तत्काल कश्मीर रवाना हो गए। बिना किसी सुरक्षाकर्मी या पुलिस सहायता के नरेन्द्र मोदी सड़क मार्ग से प्रभावित क्षेत्र में पहुंच गए। तब फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। जब पता लगा तो उन्होंने फोन कर जानना चाहा कि ‘आप वहाँ कैसे पहुंच गए। आतंकवादियों द्वारा यहां वहां रास्तों में भी बारूद बिछाए जाने की सूचना है। आपके खतरा मोल लेने से मैं स्वयं मुश्किल में पड़ जाऊँगा।’ यही नहीं उन्होंने पार्टी प्रमुख लालकृष्ण आडवाणी जी से शिकायत की कि, ‘ आपका यह सहयोगी बिना बताए किसी भी समय सुरक्षा के बिना घूम रहा है। यह गलत है।’ आडवाणी जी ने भी फोन किया। तब भी नरेन्द्र भाई ने विनम्रता से उत्तर दिया  कि मृतकों के अंतिम संस्कार के बाद ही वापस आऊँगा। असल में सबको उनका जवाब होता था कि ‘अपना कर्तव्य पालन करने के लिए मुझे जीवन-मृत्यु की परवाह नहीं होती’। जम्मू-कश्मीर के दुर्गम इलाकों-गाँवों में निर्भीक यात्राओं के कारण वह जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को समझते हुए उसे भारत के सुखी-संपन्न प्रदेशों की तरह विकसित करने का संकल्प संजोए हुए थे। वैसे भी हिमालय की वादियां युवा काल से उनके दिल दिमाग पर छाई रही हैं। लेह-लद्दाख में जहां लोग ऑक्सीजन की कमी से विचलित हो जाते हैं, नरेन्द्र मोदी को कोई समस्या नहीं होती। उन दिनों लद्दाख के अलावा वह तिब्बत, मानसरोवर और कैलाश पर्वत की यात्रा भी 2001 से पहले कर आए थे। तभी उन्होंने यह सपना भी देखा कि कभी लेह के रास्ते हजारों भारतीय कैलाश मानसरोवर जा सकेंगे। यह रास्ता सबसे सुगम होगा।  पिछले कुछ महीनों में दिख रहे बदलाव से विश्वास होने लगा है कि कि लद्दाख और कश्मीर आने वाले वर्षों में स्विजरलैंड से अधिक सुगम, आकर्षक और सुविधा संपन्न हो जाएगा। अमेरिका , यूरोप ही नहीं चीन के साथ भी सम्बन्ध सुधारने के प्रयास सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर लद्दाख को सुखी संपन्न बनाना रहा है | सारे तनाव के बावजूद जी -20 देशों के संगठन की अध्यक्षता मिलने से चीन और पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने की सुविधा हो गई है |  लद्दाख को केंद्र शासित बनाने की मांग को पूरी करने के साथ जम्मू कश्मीर को भी फिलहाल केंद्र शासित रखा और नागरिकों को भी सम्पूर्ण  भारत में लागू सुविधाओं – कानूनों का प्रावधान कर दिया | तभी तो पाकिस्तान के साथ चीन भड़का | लेकिन सेना को पूरी छूट देकर मोदी सरकार ने सुनिश्चित किया कि भारत की एक इंच जमीन पर भी चीन के दानवी पैर न पड़ सकें |

  हिमालय की तरह नर्मदा उनके दिल से जुडी  हुई है। असली खुशी  यह रही कि विवादों से हटकर पचास वर्षों से लटका नर्मदा सरकार सरोवर बांध का निर्माण पूरा होने के बाद लाखों किसानों को खेती तथा गाँवों को पीने का पानी भी पहुंच रहा है।  मोदी भारत के ही नहीं विश्व के चुनिन्दा नेताओं में अग्रणी समझे जाने लगे हैं, लेकिन मुझे लगता है कि उन्हें अंतरिक्ष, मंगल, चंद्र यानों की सफलताओं से अधिक गाँवों को पानी, बिजली, बेटियों को शिक्षा, गरीब परिवारों  के लिए मकान, शौचालय और घरेलु गैस उपलब्ध कराने के अभियानों से अधिक संतोष मिलता है। इसलिये मैं इस धारणा से सहमत नहीं हूं कि गुजरात में हुए औद्योगिक विकास और संपन्नता को ध्यान में रखकर पहले उन्होंने उद्योगपतियों को महत्व दिया और ‘सूट-बूट की सरकार’ के आरोप लगने पर अजेंडा बदलकर गांवों की ओर ध्यान दिया। आखिरकार, उनका बचपन और 50 वर्ष तक की आयु तो अधिकांश गरीब बस्तियों, गाँवों-जंगलों में घूमते हुए बीती है। फिर गरीबों की चिंता क्या किसी राजनीतिक दल और विचारधारा तक सीमित रहती है?

 हाल ही में  अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने वैश्विक चिंताओं को दूर करने और सभी विकासात्मक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर 100 फीसदी सहमति हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए लीड स्टोरी के शीर्षक में लिखा,’ भारत ने जी-20 शिखर सम्मेलन में विभाजित विश्व शक्तियों के बीच समझौता कराया, पीएम मोदी की बड़ी कूटनीतिक जीत।’ यह वही अख़बार है जो भारत और मोदी विरोधी खबरों के लिए जाना जाता रहा है |अमेरिका ने भारत की अध्यक्षता में  जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन को पूरी तरह सफल बताया है। अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा कियह एक बड़ी सफलता है। जी-20 एक बड़ा संगठन है। रूस और चीन इसके सदस्य हैं।  हम इस तथ्य पर विश्वास करते हैं कि संगठन एक बयान जारी करने में सक्षम रहा, जो क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने का आह्वान करता है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण बयान है क्योंकि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के मूल में यही है।’ मजेदार बात यह है कि चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भी सम्मलेन और घोषणा पत्र के लिए भारत की प्रशंसा की | दुबई स्थित मीडिया संगठन गल्फ न्यूज ने इस पहलू पर जोर दिया कि कैसे 18वें जी-20 शिखर सम्मेलन ने सद्भाव और विविधता में दुनिया को आकार दिया। अखबार ने लिखा,’ 18वां जी-20 शिखर सम्मेलन ने विविधता और सद्भाव की दुनिया को आकार दिया। ब्रिटिश दैनिक द टेलीग्राफ ने नई विश्व व्यवस्था का मुख्य आकर्षण बनने के लिए भारत के कदम के बारे में बात की। अखबार ने शीर्षक में लिखा, क्यों भारत नई विश्व व्यवस्था का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। भारत की अध्यक्षता में   जी-20 शिखर सम्मेलन में जलवायु संकट जैसी आम चुनौतियों से निपटने पर सार्थक चर्चा की गई। कतर के अल जजीरा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जी-20 शिखर सम्मेलन सफलतापूर्वक समाप्त हो गया है और रूस ने संतुलित घोषणा की सराहना की है।

इससे कुछ सप्ताह पहले ब्रिक्स सम्मलेन के दौरान  दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति रामफोसा ने मेहमानों के लिए राजकीय डिनर दिया, तब  उनके भाषण  में चंद्रयान 3 और भारत ही छाया रहा। भोज में रामफोसा ने कहा, ‘आज की रात एक ऐसी रात है जब हमारे पास ब्रिक्स भागीदारों के रूप में जश्न मनाने का और भी अधिक कारण है।  कुछ घंटे पहले भारत ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक चंद्र मॉड्यूल उतारकर इतिहास रच दिया और ऐसा करने वाला वह पहला देश बन गया।’ उन्होंने कहा, ‘हम चंद्रयान-3 मिशन की सफलता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भारत सरकार और वहां के लोगों तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को बधाई देते हैं।’ दक्षिण अफ्रीका के एक अखबार  में पीएम मोदी की शान में कसीदे पढ़े गए | जिसका अंदाजा हेडलाइंस से ही लग जाता है। हेडिंग है- इंडियाज मोदी ऑउट ऑफ दिस वर्ल्ड यानी भारत के मोदी इस दुनिया के बाहर की चीज हैं। दक्षिण अफ्रीकी अखबार में भारतीय प्रधानमंत्री का छाना सिर्फ एक राजनेता नहीं बल्कि 140 करोड़ भारतीयों का सम्मान है। ‘

     आज भारत, रक्षा और रणनीतिक मोर्चे पर अमेरिका को लेकर अपनी ऐतिहासिक हिचकिचाहट को न केवल खारिज कर रहा है बल्कि नए आयामों पर भी कार्य कर रहा है । स्पष्ट रूप से, मोदी प्रशासन इस बात पर साफ़ है की भारत के लिए क्या महत्वपूर्ण है और भारत पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग में उन्हें कैसे प्राप्त करना चाहता है, इस पर आवाज उठाने से बिलकुल भी हिचकिचा नहीं रहा है। आज का भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संलग्नता पर सवालों को न ही टाल रहा है और न ही इस बात को जाहिर करने में कतरा रहा है कि आज का भारत शांति और शक्ति दोनों में समन्वय रखने में विश्वास रखता है।भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय रणनीतिक सहयोग पिछले लगभग दो दशकों में धीरे-धीरे बढ़ा है, लेकिन हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। यह साफ़ है कि भारत ने एशिया में दोनों देशों के हितों के अभिसरण के बीच अमेरिका के साथ रक्षा और उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्र में संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए परमाणु सहयोग जैसे मुद्दों पर हिचकिचाहट के युग से खुद को बदल दिया है जो अभूतपूर्व और सराहनीय है।प्रधान मंत्री मोदी ने अमेरिका की यात्रा के अवसर पर  कहा था  कि “हम मानते हैं कि भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था इस बात से निर्धारित होगी कि लोकतंत्र इन उभरती प्रौद्योगिकियों को हमारे पक्ष में काम करने के लिए तैयार कर सकता है या नहीं, चाहे वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) या क्वांटम या 5G या 6G या सेमीकंडक्टर्स, बायोटेक्नोलॉजी और अन्य  क्षेत्र ।”  भारत की सॉफ्ट और हार्ड पावर क्षमताओं के मामले में भारत की कूटनीति के बदलते आयामों को प्रदर्शित करती है।  प्रधानमंत्री 21 मई को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस समारोह में शामिल हुए  । यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा, स्वस्थ जीवन शैली और “वसुधैव कुटुंबकम” जिसका अर्थ ‘विश्व एक परिवार है’ की भारत की विचारधारा को प्रतिबिंबित करता है ।    यह भारत की कूटनीतिक सफलता और प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों का ही परिणाम था कि 21 मई को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी गई।

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नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं बुनियादी सुविधाओं पर खर्च तेजी से बढ़ा। इसमें कोई शक नहीं कि नरेन्द्र मोदी के विचार दर्शन का आधार ज्ञान शक्ति, जन शक्ति जल शक्ति, ऊर्जा शक्ति, आर्थिक  शक्ति  और रक्षा शक्ति है। लगता है दिन-रात उनका ध्यान इसी तरफ रहता  है।  इसलिये भारत की ग्राम पंचायतों से लेकर दूर देशों में बैठे प्रवासी भारतीयों को अपने कार्यक्रमों, योजनाओं से जोड़ने मे उन्हें सुविधा रहती है। योग, स्वच्छ भारत, आयुष्मान भारत – स्वस्थ भारत , शिक्षित भारत जैसे अभियान सही अर्थों में भारत को शक्तिशाली और संपन्न बना सकते हैं।  कोरोना महामारी से निपटने में  में भारत की स्थिति दुनिया के अधिकांश संपन्न विकसित देशों से बेहतर रहने कि बात विश्व समुदाय मान रहा है | विशालतम आबादी के अनुपात में मृत्यु दर सबसे कम और कोरोना से प्रभावित होकर ठीक होने वालों की संख्या सर्वाधिक है |   आतंकवाद से निपटने के लिए आतंकवादियों के खात्मे के साथ रचनात्मक रास्ता भी सामाजिक-आर्थिक विकास है। तभी तो नरेंद्र मोदी के प्रयासों से दुनिया भारत के साथ खड़ी है और इस्लामिक देश भी पाकिस्तान  से दूर  हो गए हैं |

कश्मीर की तरह पूर्वोत्तर राज्यों को मोदी ने पिछले नौ वर्षों के दौरान अधिकाधिक महत्व दिया | मोदी  के प्रधान मंत्री बनने के बाद  क्षेत्र का राजनीतिक वातावरण बदलता रहा है | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर को विशेष महत्व देने , निरंतर यात्रा करने , सांसदों , विधायकों और पार्टी के नेताओं को इन राज्यों में सक्रिय रखने से भाजपा  का प्रभाव बढ़ता जा रहा है |  केवल मणिपुर किसी षड्यंत्र के कारण भारी हिंसा और तनाव से प्रभावित हो गया |आशा है शीग्र स्थिति सुधरती जाएगी | पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन की छतरी के नीचे पार्टी उत्तर पूर्व के सभी आठ राज्यों में गठबंधन सरकारों का हिस्सा है | इसका लाभ 2024 के चुनाव और उसके बाद केंद्र में सहयोगी दलों को जोड़ने में मिल सकता है  |

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इस समय कांग्रेस और प्रतिपक्ष के दल सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर साम्प्रदायिक भेदभाव और नफ़रत के गंभीर आरोप लगाकर मुस्लिम वोट पर कब्जे के प्रयास कर रहे हैं | कर्नाटक में कांग्रेस ने पिछड़ी जाति और मुस्लिम कार्ड खेलकर सफलता पाई | लेकिन इसका दूसरा बड़ा कारण स्थानीय नेताओं की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार था | बहरहाल शायद अन्य राज्य इस पराजय से सबक लेंगे | मोदी सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सभी गरीब और जरूरतमंदों को समान रूप से मिल रहा है। इनमें शौचालय, घर, बिजली, सिलेंडर और फ्री राशन जैसी योजनाएं लाभार्थियों का बड़ा वर्ग तैयार किया है, जिनमें पसमांदा मुस्लिम भी शामिल है।    इस दृष्टि से मोदी की कोशिश रही है कि विभिन्न राज्यों में मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय के अलावा अन्य मंत्रालयों की कल्याण योजनाओं का लाभ अधिकाधिक मुस्लिम लोगों को भी मिले | असल में हर वर्ग के लिए  शिक्षा , स्वास्थ्य , रोजगार , ग्रामीण विकास , किसानों को उनकी खेती का सही लाभ और सामाजिक जागरुकता के निरंतर प्रयासों से केवल चुनावी सफलता मिल सकती है  बल्कि देश  और लोकतंत्र का भविष्य उज्जवल हो सकेगा | नई चुनौतियों और सफलताओं के साथ श्री नरेंद्र मोदी के शतायु होने की शुभकामनाएं |

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ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।