मुख्यमंत्री मोहन यादव का पहला साल: एक मजबूत शुरुआत!
निरुक्त भार्गव की विशेष रिपोर्ट
प्रादेशिक और राष्ट्रीय राजनीतिक फ़लक पर जिन्हें “एक अनजान नेता”, “पर्ची वाला मुख्यमंत्री” और “केंद्र का पपेट सीएम” निरूपित किया गया, ठीक एक साल बाद उस शख्स का किस तरह मूल्यांकन किया जा रहा है! अपनी चुस्त, दुरुस्त और लगातार सक्रिय कार्यशैली से जिस व्यक्ति ने अपने धुर विरोधियों और आलोचकों तक को मोह लिया! ये भी सिद्ध कर दिया कि वो सूबे को तरक्की के रास्ते पर तेजी से आगे ले जाने में सक्षम है!
जी हां, यहां जिक्र हो रहा है मध्य प्रदेश के मुखिया मोहन यादव का, जो 13 दिसम्बर को अपने मुख्यमंत्रित्व का पहला साल पूर्ण कर रहे हैं. शिवराज सिंह चौहान के 18 वर्षों के ऐतिहासिक मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल के बाद खुद को स्थापित करना, शायद ये सबसे पहली चुनौती रही होगी, मोहन जी के लिए! “लाड़ली बहना” जैसी बेहद खर्चीली मगर सर्वाधिक लोकप्रिय योजना को जारी रखना मामूली बात नहीं रही होगी! राज्य विधानसभा में अपार सीटें प्राप्त करने के बाद क्षेत्र, जाति, योग्यता, वरिष्ठता आदि मापदंडों के मद्देनज़र अपने मंत्रीमंडल को संतुलित आकार देना कितना जोखिम-भरा रहा होगा! विभागों का बंटवारा और बाद में जिला प्रभारी मंत्रियों के निर्णय किस तरह लिए गए होंगे!
धार्मिक स्थलों से ऊंची आवाज़ में बजने वाले ध्वनि विस्तार यंत्रों को उतरवाने, सार्वजनिक स्थानों पर मांसाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री पर सख्ती से रोक लगाने के निर्णय हों या फिर इंदौर की बंद कपड़ा मिल के श्रमिकों के करोड़ों रुपए के अटके पड़े भुगतान का मसला हो; गुना जिले में घटित भीषण बस दुर्घटना कांड में कलेक्टर, एसपी सहित ट्रांसपोर्ट विभाग के आला अफसरों पर गाज़ गिराने का काम हो अथवा आलीराजपुर जिले में अग्नि विस्फोट के चलते एसपी–कलेक्टर के खिलाफ कार्रवाई का सन्दर्भ हो—मोहन जी ने बिना हिचके मुख्यमंत्री होने के इक़बाल का परिचय दिया. उन्होंने सीएम सचिवालय सहित मंत्रालय और ठेठ संभाग, जिला, तहसील और टप्पा स्तर तक मातहतों से काम करवाने का जज़्बा पेश किया.
राज्य सरकार ‘फॉर्म’ में आती उससे पहले-ही लोक सभा के चुनाव सिर पर आ गए. उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक जैसे भाजपा के मज़बूत किलों पर जब प्रतिपक्षी दलों ने सेंध लगा दी, मप्र ने सभी 29 सीटें प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की झोली में डाल दीं. इस ऐतिहासिक उपलब्धि का श्रेय भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और सीएम मोहन यादव के नेतृत्व को मिला. सफलता के इस बल को घनीभूत करते हुए मोहन जी रोजाना इस प्रकार के नीतिगत फैसले लेते गए कि उन्हें सामाजिक गठबंधन का पैरोकार कहा जाने लगा! हर कैटेगरी की सरकारी नौकरी के लिए बाकायदा भर्ती करने की प्रक्रिया आरम्भ की गई, तो निजी क्षेत्र में भी रोजगार की संभावनाएं बलवती हुईं.
ये कहना एकतरफा होगा कि मोहन जी का गुलदस्ता कांटों-विहीन कलियों, महकते फूलों और हरी-हरी पत्तियों से सराबोर है! सीएस की पदस्थापना में कथित तौर पर उनको साइड-लाइन करने की सुर्ख़ियों के बीच जब उज्जैन के कैलाश मकवाणा को राज्य पुलिस का मुखिया बनाया गया, तो उसने उनकी रेटिंग बढ़ाई! सोयाबीन की उपज को बेचने के दौरान मंडियों में व्यापारियों और संबंधित अमले ने जो कहर ढाया, उसको लेकर संघ के अनुषांगिक संगठन भी मुखर हुए! आततायी महंगाई और बेक़ाबू बेरोजगारी ने उनकी ब्रांडिंग को फीका ही किया है! अनगिनत घोषणाओं और उनके असल क्रियान्वयन ने तो जनमानस को झकझोर रखा है! सड़क छाप लोगों की भी ये आस है कि वे वेश बदलकर जायजा लें, इको-सिस्टम का!