मुख्यमंत्री का मास्टर स्ट्रोक
मुख्यमंत्री मोहन यादव इंदौर जिले के प्रभारी मंत्री क्या बने कई नेताओं की रातों की नींद उड़ गई। क्योंकि, बीजेपी के शासनकाल में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री किसी जिले का प्रभारी मंत्री भी बना हो। लेकिन, मोहन यादव की आदत है कि वे लाइन ही ऐसी खींचते हैं कि दूसरों की लाइन अपने आप छोटी हो जाती है। मोहन यादव यूं ही प्रभारी मंत्री नहीं बने इसके पीछे बहुत बड़ी रणनीति दिखाई दे रही है। क्योंकि, यह सबको पता है कि इंदौर में भाजपा के इतने बड़े-बड़े नेता हैं जिनका हर मामले मे हस्तक्षेप रहता है। यह किसी से छिपा भी नहीं है।
इंदौर की परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी बन जाती हैं कि यहां का प्रभारी मंत्री कुछ निर्णय लेने की बजाय निर्णय नहीं लेने की स्थिति में ज्यादा रहता है। फिर बाद में निर्णय मुख्यमंत्री को ही करना पड़ता था। अब, जबकि मुख्यमंत्री खुद प्रभारी हैं, तो कम से कम ये हालात तो नहीं बनेंगे। चाहे दिग्गी राजा हों, उमा भारती या शिवराज सिंह चौहान, सभी ने इन हालात को देखा है। यही वजह है कि मोहन यादव ने सोचा कि निर्णय मुख्यमंत्री के रूप में मुझे ही करना है, तो प्रभारी मंत्री बनकर निर्णय और जल्दी कर सकता हूं। इससे जनता के काम और योजना में अनावश्यक देरी होने से मुक्ति मिलेगी और नेताओं को भी जादूगरी करने का अवसर कम मिलेगा। यानी कि फिलहाल तो मुख्यमंत्री के इंदौर प्रभारी मंत्री बनने वाला निर्णय शहर हित के लिए मोहन यादव का मास्टर स्ट्रोक ही माना जा रहा है।
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*दो IAS मनीष के दिन फिरे*
राज्य सरकार द्वारा हाल ही में किए गए प्रशासनिक फेरबदल में भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो मनीष के भी दिन फिरे हैं। माना जा सकता है कि शिवराज के निकट रहे इन दोनों योग्य अधिकारियों को मोहन यादव की सरकार बनने के बाद महत्वहीन विभाग दे रखे थे। ऐसा लगता है कि यह बात सरकार को अब समझ में आई की इन अधिकारियों का भी प्रॉपर उपयोग होना चाहिए इसलिए अब इन दोनों अधिकारियों को उपयोग की दृष्टि से महत्वपूर्ण कार्य सौंप गए हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा में 1994 बैच के अधिकारी मनीष रस्तोगी प्रमुख सचिव वित्त बनाए गए हैं जो सरकार की वित्तीय व्यवस्था पर नियंत्रण रखेंगे। 2009 बैच के मनीष सिंह को हाउसिंग बोर्ड का MD बनाया गया है।
*संजय दुबे को GAD मिलने की कथा*
प्रमुख सचिव संजय दुबे को हल्के में लेने वालों को इस खबर ने चौंका जरूर दिया होगा कि सरकार ने उन्हें कुछ ही दिनों बाद विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के साथ सामान्य प्रशासन की जिम्मेदारी सौंप दी। संजय दुबे की ऊर्जा विभाग की धमाकेदार कार्य शैली के बाद उन्हें गृह विभाग का प्रमुख सचिव बनाया गया था। यहां तक तो ठीक, लेकिन हाल ही में गृह विभाग से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में उन्हें भेजे जाने को लूप लाइन माना जा रहा था। लेकिन, उन्हें ताजा बदलाव में जो जिम्मेदारी दी गई वह प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गई है। इसके पीछे की कुछ कहानी अब सामने आ रही है। बताया गया है कि हाल ही में जब मुख्यमंत्री प्रदेश में निवेश बढ़ाने साउथ के दौरे पर गए, तो वहां अधिकारियों के साथ संजय दुबे भी गए थे। बताने वाले बताते हैं कि वहां संजय दुबे ने अपनी मुख्यमंत्री को प्रभावित किया। माना जा रहा है कि शायद यही कारण रहा है कि संजय दुबे को सामान्य प्रशासन विभाग की बागडोर सौंप दी गई।
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*हीरेंद्र बहादुर का क्या दोष था!*
मध्यप्रदेश में वैसे तो कांग्रेस में सब ठीक तो नहीं चल रहा, पर इससे बड़ी बात यह भी है कि भाजपा में भी अब वैसा ठीक नहीं चल रहा, जैसा चलने का दावा किया जाता है। ठीक नहीं चलने के वैसे तो कई कारण हैं, लेकिन अभी ताजा मामले ने एक बार फिर भाजपा और संघ की एकता में संतरे जैसा अहसास कराया। प्रदेश कार्यसमिति सदस्य हीरेंद्र बहादुर से विवाद की असल कहानी कुछ और ही है। असल मे उसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। यह दोनों के बीच का अंदरुनी व्यक्तिगत मामला था जिसने बाद में राजनीतिक रंग ले लिया।
अब चूंकि हीरेंद्र बहादुर लंबे समय से शिवराज सिंह के विश्वस्त है तो पुलिस कार्यवाही हीरेंद्र के खिलाफ तो होना थी। अब कहने वाले यह भी कह रहे है कि भाजपा और संघ में ऊपरी स्तर पर जो खटास चल रही है, वह अब नीचे तक देखने को भी मिल रही है। यानी हीरेन्द्र और लोकेश का विवाद आपसी खटास का कम ऊपरी खटास का रूप ज्यादा है। ये विवाद अब आने वाले दिनों में भूचाल भी लाए, तो कम मत समझना क्यों कि झगड़े के वक्त जो आरोप लगाए, वे कम से कम भूचाल तो लाने के लिए पर्याप्त हैं।
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*गौतम और वैष्णव की परवान चढ़ती दोस्ती*
अब जरा चर्चा धार की। यह बताने की जरूरत नहीं है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा और कांग्रेस नेता बालमुकुंद गौतम की जंग दूध और दही जैसी रही है। लेकिन, बताते हैं कि अब विक्रम वर्मा के घनघोर समर्थक संजय वैष्णव की गौतम से निकटता बढ़ रही है। इसलिए इस इस जंग के अलग ही मायने निकाले जा रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं को भी समझ नहीं आ रहा है कि आखिर इन दिनों संजय वैष्णव अपने राजनीतिक गुरु विक्रम जी से ज्यादा बालमुकुंद गौतम की चिलम ज्यादा क्यों भर रहे हैं! गौतम भी संजय को अपना सबसे बड़ा हितेषी मानने लगे।
दोस्ती का आलम यहां तक पहुंच गया कि संजय को ठंड लगती है तो गौतम स्वेटर पहन लेते हैं और गौतम को बुखार आता है तो गोली संजय खा लेते हैं। लेकिन, इन दोनों की दोस्ती जिनको नहीं पच रही, वे पूछ रहे हैं कि क्या इसमें विक्रम जी की सहमति है या संजय को पीथमपुर नगर पालिका के अध्यक्ष बनने के सपने आने लगे हैं? कुछ भी हो, इन दोनों की दोस्ती के चर्चे पूरे जिले में हो रहे हैं। दोनों पार्टी के कार्यकर्ता इस ताजी-ताजी दोस्ती देखकर अपना सिर खुजा रहे हैं कि फिर हमने 20 साल क्यों चोच लड़ाई!
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*… और अंत में*
आजकल कांग्रेस के पूर्व मंत्री सचिन यादव की नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के साथ खूब घुट रही है। उधर, उनके बड़े भाई अरुण यादव पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की चिलम भर रहे है। इसका कोई भी कुछ भी मतलब निकाले, पर पटवारी जी आप सावधान हो जाओ। क्योंकि, राजनीति में हर निकटता का कोई मतलब होता है।
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