Cinematographer Anand Bansal : यह प्रेरक कहानी है पैशनेट फोटोग्राफर से प्रोफेशनल बनने की !

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Cinematographer Anand Bansal: यह प्रेरक कहानी है पैशनेट फोटोग्राफर से प्रोफेशनल बनने की !

यह फोटो है मेरे भतीजे आंनद बंसल की . मैं बहुत खुश होता हूँ यह तस्वीर जब भी देखता हूँ .यह तस्वीर एक उभरते हुए युवा की है ,यह  तस्वीर एक ट्राफी  के पहले पायदान की है ,यह तस्वीर एक बच्चे की रूचि के विकास की है .यह कहानी तो उस ‘पैशनेट फोटोग्राफर ‘बच्चे की भी है,और यह कहानी है एक छोटी सी ख़ुशी की .वैसे यह कहानी एक कैमरे की भी है .यह तस्वीर मुझे बार बार कहती है कि बच्चों को उनकी रूचि में केरियर बनाने में सहभागी बनाना ही सबसे बड़ी ख़ुशी है .मैं खुश इसलिए होता हूँ उसकी भी एक कहानी है , जब मैंने एक बच्चे को एक छोटी सी ख़ुशी दी थी और बदले में उसके चहरे पर अनमोल हंसी देखी थी ,वह हंसी मेरे  मन और मस्तिष्क  की स्थाई मेमोरी में आज भी जमा है मुझे यह  ख़ुशी आप सभी से इसलिए बांटनी है ताकि यह किसी और बच्चे की ख़ुशी में बदल सके ,यह प्रेरणा बन सके कि हमें बच्चों पर करियर थोपना नहीं चाहिए उनकी रूचि अनुरूप करियर चयन में थोड़ी सी मदद करनी चाहिए .यह कहानी इस तरह है –           यह कहानी है पैशनेट फोटोग्राफर से प्रोफेशनल फोटोग्राफर बनने की ……..

Cinematographer Anand Bansal
Cinematographer Anand Bansal

फाइल फोटो आनंद बंसल

                           रूचि को कैरियर बनाकर आंनद ने बनाए कीर्तिमान

यह फोटो है मेरे भतीजे आंनद बंसल की   उसके हाथ में जो ट्राफी है … वह है .. आस्कर की ट्राफी …. जो मिली थी … द एलिफेंट व्हिस्परर्स डॉक्यूमेंट्री फिल्म के लिए सन् 2022 में … इस फिल्म निर्माण टीम का एक सदस्य सिनेमेटोग्राफर के रूप में आंनद भी था … 4 सिनेमेटोग्राफर में से 1 आनंद भी उस फिल्म का हिस्सा था।

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आप सोच रहे होंगे, दो साल पुरानी बात मैं क्यों कर रहा हूं ? यही सोच रहे हैं ना आप … मुझे भी अचानक यह बात क्यों स्मरण आई है … यही बताने जा रहा हूं।
आज ही अनुज भ्राता सुभाष की पुण्यतिथि है, और आज ही उसका बेटा आनंद संपूर्ण स्कालरशिप एवं स्टायफंड की सुविधा पर सिनेमेटोग्राफी के उच्च अध्ययन हेतु 18 माह के लिए यूरोप गया है, जहां वह 6-6 माह तीन पृथक-पृथक देश में अध्ययन करेगा। हालांकि यह एक ही कोर्स का हिस्सा है और डिग्री भी एक ही रहेगी । इस कोर्स में प्रायः फिल्म की एक विधा से एक देश से एक विद्यार्थी का चयन किया जाता है। सिनेमेटोग्राफी में आंनद चयनित हुआ है। इसी लिए मुझे आज आनंद के बाल्य एवं युवा विद्यार्थी जीवन की घटनाएं स्मरण आ रही है।

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आंनद के पिता एवं मेरे अनुज भ्राता सुभाष की असामयिक मृत्यु 41 वर्ष की उम्र में हो गई थी … तब आनंद केवल 7 साल का था। सुभाष की रूचि फोटोग्राफी में थी , कुछ समय प्रोफेशन के रूप में फोटोग्राफी को भी अपनाया था। पैतृक रूचि आंनद को फोटोग्राफी में कक्षा 8 वीं 9 वीं से ही हो गई थी। फोटोग्राफी की रूचि के कारण उसे SLR कैमरे की आवश्यकता थी .. कैमरे की कीमत एवं उसकी उम्र को देखते हुए परिवार ने हां नहीं की … मुझे जब यह बात पता चली तो कैमरा उपलब्ध करा दिया। इंदौर में शौकिया फोटोग्राफर का एक ग्रुप था ‘पैशनेट फोटोग्राफर्स’ … 16 वर्षीय आंनद सबसे कम उम्र का लेकिन बेहद सक्रिय सदस्य था … इनके ग्रुप द्वारा लगाई गई फोटो प्रदर्शनी में आंनद के फोटो को भी मीडिया व दर्शकों द्वारा सराहना मिलती थी। देहरादून में 2013 में इंडियन पब्लिक स्कूल काँन्फ्रेस में विजुअल आर्ट कैटेगरी में भी दो पुरस्कार मिले थे ।
महाविद्यालयीन शिक्षा हेतु विषय चयन में परिवार की प्राथमिकता विज्ञान विषय की थी, क्योंकि परिवार के अन्य बच्चों ने भी विज्ञान विषय लेकर उच्च सफलता प्राप्त की थी। आंनद विज्ञान विषय न लेकर मुंबई के व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट से फोटोग्राफी में पढ़ने का इच्छुक था। मैं उसकी इस इच्छा पूर्ति में सहभागी बना ।
व्हिसलिंग वुड्स में रहते हुए ही जार्जिया की राजधानी तिब्सिसी के अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल ( गोल्डन आई) में आनंद की फिल्म ‘द रूम विद नो विंडो’ हेतु स्टुडेंट कैटेगरी में सिनेमेटोग्राफर का पुरस्कार प्राप्त हुआ। फिल्म ‘गमक घर’ , टीवी सीरियल ‘गुल्लक’ सहित कुछ और अन्य फिल्मों में की गई सिनेमेटोग्राफी को भी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली। कम उम्र में सिनेमेटोग्राफी में सफलता मिलने पर JNU तथा यूरोप में जहां अब पढ़ने जा रहा है, वहां के भी छात्र ने आंनद पर केस स्टडी की है।
इतना सब कहने का उद्देश्य यही है कि यदि उसे कैमरा नहीं दिलाते, विज्ञान विषय दबाव डालकर दिलाते, तो उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त से वंचित रह जाता, पराक्रम के पर्वत बनाने से वंचित रहता। फिल्म थ्री इडियट की कहानी बहुत सही है … जिसमें रूचि हो , वहीं कार्य करें। रूचि को प्रोफेशन बनाने पर सदैव आंनद ही आंनद मिलेगा।

महेश बंसल, इंदौर