

City With RET Specialisation : वन विभाग इंदौर में सजावटी नहीं औषधीय पौधों से हरियाली करेगा!
Indore : इंदौर शहर को हरा-भरा बनाने के लिए केवल सजावटी पौधों पर निर्भर नहीं रहा जाएगा। वन विभाग की पहल से इंदौर देश का पहला ऐसा शहर बनने जा रहा है, जहां हरियाली बढ़ाने के लिए आरईटी (रेयर, एंडेंजर्ड एंड थ्रेटेंड) यानी दुर्लभ, संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय प्रजातियों का उपयोग किया जाएगा।
सीसीएफ पीएन मिश्रा और डीएफओ प्रदीप मिश्रा के निर्देशन में वन विभाग इंदौर व पर्यावरण वानिकी परिक्षेत्र के संयुक्त तत्वावधान में ‘अर्बन ग्रीनरी बाय आरईटी’ स्पीसीज विद रेफरेंस टू नर्सरी एस्टेब्लिशमेंट एंड मैनेजमेंट विषय पर एक दिवसीय कांफ्रेंस का आयोजन किया गया। इसमें होलकर मॉडल ऑटोनॉमस साइंस कॉलेज समेत अन्य संस्थानों के विद्यार्थियों ने भाग लिया।
मुख्य वक्ता सेवानिवृत्त पीसीसीएफ पीसी दुबे और डीएफओ प्रदीप मिश्रा ने छात्रों को नर्सरी प्रबंधन, आरईटी प्रजातियों की पहचान और उनके संरक्षण के तरीकों पर मार्गदर्शन दिया। विद्यार्थियों द्वारा आरईटी स्पीसीज पर तैयार की गई पुस्तक का विमोचन भी इस मौके पर हुआ। डीएफओ मिश्रा ने बताया कि आरईटी विशेषज्ञता से अब शहरी क्षेत्र में भी पौधे लगेंगे, इसके लिए आमजन और खासकर युवाओं को वन विभाग द्वारा जागरूक किया जाएगा। इसके लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
इंदौर में होगा नवाचार
एसडीओ केके निनामा और रेंज ऑफिसर पर्यावरण वानिकी कौशाम्बी झा ने बताया कि अब गुलमोहर और पेल्टाफॉर्म जैसे विदेशी पौधों की जगह देशज और औषधीय महत्व की प्रजातियों का रोपण किया जाएगा। इससे न केवल हरियाली बढ़ेगी, बल्कि जैव विविधता और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी बल मिलेगा। वन विभाग द्वारा तैयार की जा रही नर्सरियों में ऐसी विलुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित कर आम जनता तक पहुँचाया जाएगा। होलकर कॉलेज समेत शहर के छात्र अब ‘पर्यावरण दूत’ बनकर इस बदलाव में सक्रिय भूमिका निभाएंगे।
ये हैं प्रमुख आरईटी प्रजातियां और उनके लाभ
1. एसनक (Litsea glutinosa) : दर्द, सूजन, बुखार व डायरिया में लाभकारी।
2. नफगेन (Cordia macleodii) : कैंसर, खून की कमी व लीवर रोगों में उपयोगी।
3. लसूणपाट (Oroxylum indicum) : त्वचा रोग, बुखार और विषनाशक गुण।
4. गम्ह (Radermachera xylocarpa) : रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला।
5. चित्ता (Pterocarpus marsupium) : खुजली, खाज और विषहरण में सहायक।
6. कुल्लू (Sterculia urens) : गर्मीजन्य रोग, नकसीर और झुर्रियों में लाभदायक।
7. ढोक (Anogeissus latifolia) : दांत, मसूड़े व कीट नियंत्रण में कारगर।
8. सलई (Boswellia serrata) : जोड़ों का दर्द, अस्थमा और सूजन में उपयोगी।
9. पिजर (Buchanania cochinchinensis) : कफ, अपच और ब्लड शुगर नियंत्रक।
10. ढाक (Erythrina suberosa) : माहवारी समस्याएं, UTI और कृमिनाशक गुण।