मध्यप्रदेश में हुए चार विधानसभा उपचुनावों में से तीन जीतकर भाजपा संगठन और कार्यकर्ताओं ने अपनी मेहनत और कुशलता का लोहा मनवाया है। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय बटोरा है। अब इन उपचुनावों के बाद मिंटो हॉल में हो रही भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति जहां इस बात को लेकर चर्चा में है कि उपचुनावों में जीत के बाद भाजपा अब इस कार्यसमिति में आगामी विधानसभा चुनाव 2023 जीतकर फिर प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने की रणनीति पर फोकस करेगी।
तो चर्चा इस बात को लेकर भी है कि जिस मिंटो हॉल में भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति हो रही है, कार्यसमिति के बाद क्या वह अपना नाम बचाने में सफल हो पाएगा? क्योंकि जिस तरह भाजपा-कांग्रेस के बीच मिंटो हॉल का नाम बदलने को लेकर बयानबाजी हो रही है, उससे लग रहा है कि सरकार कार्यसमिति संपन्न होने के बाद नाम बदलने पर फैसला ले ही लेगी और लेना भी चाहिए। तब हो सकता है कि मिंटो हॉल में प्रदेश भाजपा कार्यसमिति अंतिम बड़ा आयोजन साबित हो और इसके बाद बदले हुए नाम से कंवेंशन सेंटर गौरव के साथ सिर ऊंचा कर कह सके कि अब असल आजादी का समय आ गया है जब अंग्रेजों के नाम से देश मुक्त हो रहा है।
जिस तरह हबीबगंज स्टेशन इतिहास में दर्ज हो गया और रानी कमलापति, स्टेशन के नाम के साथ लोगों के जेहन में जिंदा हो गईं। उसी तरह हो सकता है कि भारत में सांप्रदायिक निर्वाचन के जनक मिंटो का नाम भी माटी में मिल जाए और डॉ. हरि सिंह गौर या कोई और नाम इस पर दर्ज हो पुनर्जीवन पा ले। जब नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू हो ही गई है, तो फिर भारत को गुलाम बनाए रखने की साजिश करने वाले इन नामों से आखिर कैसा लगाव?
अगर मिंटो का नाम बदलने की सुगबुगाहट शुरू हो ही गई है, तो इसको अमलीजामा पहनाकर मूर्त रूप दे ही दिया जाना चाहिए। और जिस तरह कहा जा रहा है कि हबीबगंज स्टेशन का नाम अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर करने की योजना अंतिम समय में मात खा गई, तो मिंटो का नाम बदलकर अटल के नाम पर कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी यह इच्छा पूरी कर सकते हैं कि शहर की हर दृष्टि से एक महत्वपूर्ण विरासत का नाम देश के इस सर्वाधिक लोकप्रिय नेता को समर्पित हो जाए।
आइए जानते हैं कि मिंटो हाल कैसे बना? 12 नवंबर 1909 को भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड मिंटो ने इस इमारत की नींव रखी थी। साल 1909 में भारत के तात्कालीन वायसराय लॉर्ड मिंटो भोपाल आए। उन्हें उस समय राजभवन में रुकवाया गया था लेकिन वायसराय वहां की व्यवस्था देखकर काफी नाराज हुए।
इसे देखते हुए तत्कालीन नवाब सुल्तानजहां बेगम ने आनन-फानन में एक हॉल बनवाने का निर्णय लिया और इसकी नींव वायसराय लॉर्ड मिंटो से रखवाई। कहा जाता है उन्हीं के नाम पर इस हॉल का नाम मिंटो हॉल रखा गया। इस इमारत को बनने में करीब 24 साल लगे और इस इमारत की संरचना शाहजहां बेगम के बेटे नवाब हमीदुल्ला खान ने पूरी की। इतनी भव्य औऱ सुंदर इमारत के निर्माण में उस समय कुल 3 लाख रूपये लगे थे। जिसके मुख्य आर्किटेक्ट एसी रोवन थे, जिन्होंने इस इमारत को आलीसान बनाया।
भोपाल की तत्कालीन शासक नवाब सुल्तान जहां बेगम की इस इमारत का इस्तेमाल गेस्ट हाउस के रूप में कम हुआ, जिसके लिए इसे बनाया गया था। यह साल 1956 में मध्यप्रदेश के गठन के बाद मध्यप्रदेश सरकार का विधानसभा भवन बन गया। इसके बाद 1996 में नया भवन बनने के बाद विधानसभा भवन उसमें शिफ्ट हो गया।
फिर यह राज्य की सेना का मुख्यालय, आर्थिक सलाहकार और पुलिस मुख्यालय के रूप में इसका इस्तेमाल होता रहा। इसमें होटल खोलने की घोषणा की गई थी, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण अब इसे कन्वेंशन सेंटर के रुप में तबदील कर दिया गया है।
तो अंग्रेजी हुकुमत, नवाबी शासन के दौर और लोकतंत्रीय शासन का साक्षी रहा मिंटो हॉल अब कन्वेंशन सेंटर के रूप मे तबदील हो गया है, लेकिन अंग्रेजी शासन, नवाबी हुकुमत और लोकतंत्र शासन की गाथाएं आज भी इसकी दर-ओ-दीवार पर पढ़ी जा सकती हैं। आज भी यह भवन अपनी खूबसूरती से यहां पर आने वाले पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। खैर चाहे डॉ. हरि सिंह गौर के नाम पर हो या अटल के नाम पर हो या किसी और नाम पर लेकिन अब मिंटो के प्रति ममत्व का भाव तब खास तौर से मायने नहीं रखता, जबकि नाम बदलने की मुहिम मध्यप्रदेश में रफ्तार पकड़ ही चुकी है।
क्योंकि मिंटो ने ही पृथक प्रतिनिधित्व का उपबंध कर शायद भारत को बांटने की चिंगारी पैदा की थी, जो आजादी मिलने से पहले ही अखंड भारत की सोच को दावानल बनकर खाक कर चुकी थी। तो मिंटो कई दूसरे नामों की तरह अब तुम्हारे जाने का वक्त आ चुका है, यदि मध्यप्रदेश की सरकार तुम्हें जीवनदान न दे तो… प्रदेश कार्यसमिति के बाद नए नामकरण के लिए मिंटो हॉल तुम तैयार रहो …! हो सकता है कि कार्यसमिति में ही सीएम के भाषण में इसके संकेत मिल जाएं…देखते हैं मिंटो तुम्हारी किस्मत में अब क्या है?