Jhuth bole kaua kaate : अंधविश्वास पर वार, योगी (CM Yogi Adityanath) करेंगे बेड़ा पार?

Jhuth bole kaua kaate : अंधविश्वास पर वार, योगी करेंगे बेड़ा पार?

Jhuth bole kaua kaate : अंधविश्वास पर वार, योगी (CM Yogi Adityanath) करेंगे बेड़ा पार? 

33 साल से चले आ रहे नोएडा के मिथक ने उप्र के दो मुख्यमंत्रियों की कुर्सी छीन ली, पर एक संन्यासी सीएम को डरा नहीं सकी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 नवंबर को दुनिया के चौथे और भारत के सबसे बड़े आधुनिकतम नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट (जेवर एयरपोर्ट) का शिलान्यास किये जाने तक सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) ने अनेकों बार नोएडा का दौरा कर एक बार फिर अंधविश्वास को खुली चुनौती दी है।

अब पूर्व मुख्यमंत्रियों और विपक्ष के मन में इन मिथकों के सहारे 2022 के लिए लड्डू फूट रहे हों, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

 

Jhuth bole kaua kaate : अंधविश्वास पर वार, योगी (CM Yogi Adityanath) करेंगे बेड़ा पार?

दरअसल, 2017 में सीएम बनने के 6 महीने के भीतर योगी नोएडा गए थे। नोएडा में मेट्रो की मेजेंटा लाइन के उद्घाटन के बाद बीटेक धारी सपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था, ‘मैं अंधविश्वास में यकीन करता हूं। अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों ने वहां का दौरा किया। अब इसका प्रभाव देखने को मिलेगा।

’ हांलाकि, सपा मुखिया ने सीएम योगी (CM Yogi Adityanath) को भी डरा हुआ सिद्ध करने की कोशिश की और कहा कि ‘नोएडा जाने पर जो अंधविश्वास है, वह दिख रहा है। मैंने तस्वीरों में देखा कि उन्होंने (योगी) मेट्रो सेवा शुरू होने पर झंडी नहीं दिखाई और न ही मेट्रो की शुरूआत वाला बटन दबाया।’ हांलाकि, तब मीडिया ने सीएम योगी से जब पूछा कि नोएडा आकर कुर्सी जाने का डर नहीं सताया? मुस्कुराते हुए योगी ने कहा था कि हम बार-बार नोएडा आएंगे और मुख्यमंत्री भी रहेंगे। सच है, सीएम योगी नोएडा बार-बार आते रहे। अबतक तो उनकी बात सही निकली है। 2022 भी दूर नहीं।

नोएडा को लेकर उपरोक्त अंधविश्वास तब प्रचलित हुआ जब कांग्रेस के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह 23 जून 1988 को नोएडा गए। इसके अगले दिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उनको अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। वीर बहादुर सिंह के बाद नारायण दत्त तिवारी, मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह से लेकर अखिलेश यादव तक मुख्यमंत्री बने लेकिन नोएडा सबको डराता रहा।

मायावती डरी तो नहीं, पर चली गई कुर्सी

मायावती जब चौथी बार पूर्ण बहुमत की सरकार के साथ मुख्यमंत्री बनी तो उन्होंने 14 अगस्त 2011 को इस अंधविश्वास के डर से लड़ने का फैसला किया। वह नोएडा में करीब 700 करोड़ रुपये की लागत से बने दलित प्रेरणा पार्क का उद‌्घाटन करने गईं। हालांकि, अगले वर्ष ही उनकी कुर्सी चली गई। इसके बाद तो, शानदार बहुमत की सरकार के साथ सत्तासीन हुए अखिलेश यादव ने नोएडा जाने की हिम्मत कभी नहीं की। वे नोएडा की योजनाओं का बटन लखनऊ में अपने 5, कालिदास स्थित आवास से ही दबाते रहे।

अंधविश्वास को तोड़ते रहे सीएम योगी

दूसरी ओर, नोएडा का अंधविश्वास तोड़ने के एक महीने बाद सीएम योगी आदित्यनाथ  (CM Yogi Adityanath) 31 जनवरी 2018 को वाराणसी पहुंचे। यहां उन्होंने सदियों से चले आ रहे एक और अंधविश्वास पर प्रहार किया। यह मिथक था चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण में भोजन न करने का। संत रविदास जयंती पर चंद्रग्रहण के बीच मंदिर में मत्था टेकने के बाद योगी ने संगत में बैठकर प्रसाद ग्रहण किया। काशी में सीएम योगी ने जिस मिथक को तोड़ा वह ग्रहण पर लगने वाले सूतक को लेकर था। चंद्रग्रहण के सूतक के दौरान अन्नग्रहण नहीं किया जाता है।

Jhuth bole kaua kaate : अंधविश्वास पर वार, योगी (CM Yogi Adityanath) करेंगे बेड़ा पार?

नोएडा व ग्रेटर नोएडा दौरे के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ताजनगरी आगरा में भी एक अंधविश्वास को तोड़ा। आगरा सर्किट हाउस को लेकर मिथक है कि जो यहां रुकता है उसकी कुर्सी चली जाती है।

जनवरी 2018 में जब इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू आगरा के दौरे पर आए थे तब योगी आदित्यनाथ यहां के सर्किट हाउस में रुके थे। 16 साल के बाद ऐसा हुआ जब कोई सीएम आगरा के सर्किट हाउस में रुका था। उनसे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह सर्किट हाउस में रुके थे। प्रदेश के सीएम की कुर्सी जाने के भय के कारण मायावती ने कभी आगरा में रात नहीं बिताई तो अखिलेश हमेशा यहां के होटलों में रुके।

लेकिन, योगी अंधविश्वास के मिथकों को तोड़ने के काम में कभी नहीं रूके, जबकि वे मुख्यमंत्री होने के साथ ही गोरक्ष पीठाधीश्वर और हिंदुत्व का प्रखर चेहरा भी हैं। हिंदुओं में मान्यता है कि किसी भी नए काम की शुरुआत पितृपक्ष से नहीं की जाती है। कोई भी शुभ कार्य पितृपक्ष में करना प्रतिबंधित होता है। ऐसे में नया और अच्छा काम पितृ पक्ष में करना अशुभ माना जाता है, लेकिन प्रदेश में विधानसभा चुनाव से चंद महीने पहले ही सीएम योगी ने अपने नए मंत्रियों को पितृपक्ष में शपथ दिलाई।

मध्य प्रदेश भी मिथक परंपरा में पीछे नहीं

प्रसंगवश, मध्य प्रदेश के इन मिथकों का भी जिक्र जरूरी है। एक जिला है अशोकनगर। जो भी सीएम यहां जिला मुख्यालय आया उसकी कुर्सी चली गई। मध्य प्रदेश के 11 मुख्यमंत्रियों के साथ ऐसा ही हो चुका है। अपने 13 साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कभी भी अशोकनगर के दौरे पर नहीं गए और जब गए तो अशोकनगर का मिथक उनके साथ भी सच हो गया और पिछले चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ गई।

शिवराज के बाद कमलनाथ ने राज्य की कमान संभाली और 15 महीने मुख्यंमत्री रहे। लेकिन शिवराज और पुराने मुख्यमंत्रियों का हाल देखकर कमलनाथ ने भी अपने 15 महीने के कार्यकाल में अशोकनगर का रुख नहीं किया। सुंदरलाल पटवा अपने मुख्यमंत्रित्व काल में यहां उद्घाटन करने पहुंचे थे। 15 दिन बाद ही कुर्सी से हाथ धोना पड़ गया। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री रहते अशोकनगर को जिला घोषित करने यहां गए थे, तो कुछ दिनों बाद ही कुर्सी चली गई। यही नहीं, 10 साल का राजनीतिक वनवास भी झेलना पड़ा।

Jhuth bole kaua kaate : अंधविश्वास पर वार, योगी (CM Yogi Adityanath) करेंगे बेड़ा पार?

इतिहास गवाह है, 1975 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी पार्टी के अधिवेशन में अशोकनगर गए और साल खत्म होते-होते दिसंबर में उनकी कुर्सी चली गई। 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ला तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने अशोकनगर गए। इसके बाद 29 मार्च 1977 को राष्ट्रपति शासन लगा और उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा।

1985 में कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह भी इस मिथक के जाल में फंस गए। उनके मुख्यमंत्री रहते तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी दौरे पर आए। अर्जुन सिंह को उनके साथ अशोकनगर जाना पड़ा, फिर सियासी हालात ऐसे बने कि उन्हें अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। 1988 में मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा अशोकनगर के रेलवे स्टेशन के फुट ओवरब्रिज का उद्घाटन करने रेलमंत्री माधवराव सिंधिया के साथ पहुंचे थे। इसके बाद सीएम की कुर्सी पर वह भी नहीं रह पाए।

लालू यादव को भी लगा अशोकनगर का ग्रहण

लालू यादव जब बिहार के मुख्यमंत्री थे, उस दौरान एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने अशोकनगर पहुंचे थे। यहां से लौटे तो कुछ समय बाद ही उन्हें कुर्सी राबड़ी देवी को सौंपनी पड़ी। सीहोर जिले के इछावर विधानसभा सीट के बारे में मिथक है कि जो भी सीएम इस विधानसभा सीट पर अपने चुनावी प्रचार-प्रसार या किसी भी कार्यक्रम के चलते यहां पहुंचा, उसे अपनी सीट गंवानी पड़ी है।

इछावर के मिथक को तोड़ने का प्रयास भी कई मुख्यमंत्रियों ने किया लेकिन जिसने भी यहां कदम रखा, उन सभी को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। 1962 में कैलाश नाथ काटजू, 1967 में द्वारका प्रसाद मिश्रा, 1977 में कैलाश जोशी, 1979 में विरेंद्र कुमार सकलेचा और 2003 दिग्विजय सिंह ने भी यहां का दौरा करने के बाद अपनी सीएम की सीट गवां दी थी।

झूठ बोले कौआ काटे

घर से बाहर निकलते वक्त छींक आ जाये तो व्यक्ति कहीं बैठने की जगह ढूंढता हैं। बिल्ली रास्ता काट जाये तो किसी के निकलने की राह देखता हैं। ऐसी ही अनगिनत मान्यताएं, हैं जिनमे फंस कर व्यक्ति अपने आप को डराता हैं।

वास्तव में, डर एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज किसी के पास नहीं लेकिन फिर भी उसका इलाज ढूंढा जाता है और इसी के कारण उत्पन्न होता हैं अंधविश्वास। एक कहानी बताता हूं।

एक बार एक बादशाह ने अपने मंत्री से पूछा कि, मंत्री जी! ‘अंधविश्वास’ का क्या मतलब होता है? मंत्री बोला, महाराज! चार दिन की छुट्टी दे दें फिर मैं आपको इसके बारे में बताऊंगा। बादशाह ने उसे चार दिनों की छुट्टी दे दी।

अब मंत्री एक मोची के पास गया और बोला कि, भाई! डेढ़ फुट लंबी और एक बित्ता चौड़ी जूती बना दो। हीरे जवाहरात भी जड़ देना। सोने और चांदी के तारों से सिलाई कर देना और हां!

पैसे की चिंता मत करना, मुंहमांगा दूंगा। मोची ने कहा, ठीक है तीन दिन में दे दूंगा! तीसरे दिन जूती लेने से पहले मंत्री ने उस मोची से ठोस आश्वासन ले लिया कि वह किसी भी हालत में इस जूती के बारे में किसी से भी, कभी भी जिक्र नहीं करेगा। जूती की बात अतिगोपनीय रहनी चाहिए।

अब मंत्री ने एक जूती अपने पास रख ली और दूसरी पूजा/इबादत स्थल में फेंक दी। सुबह पुजारी/मौलवी/प्रीस्ट आया तो उसको वो जूती वहां पर मिली। वह मन में सोचने लगा, यह जूती किसी इंसान की तो हो ही नहीं सकती जरूर ईश्वर/अल्लाह/गॉड यहां आए होंगे और उनकी छूट गई होगी।

तो उसने वह जूती अपने सिर पर रखी, मत्थे में लगाई पूजा-पाठ किया और जूती को खूब चूमा। वहां मौजूद सभी लोगों को उसने जूती दिखाया। सब लोग बोलने लगे कि हां भाई यह जूती तो ईश्वर/अल्लाह/गॉड की छूट गई। उन्होंने भी उसको सिर पर रखा और खूब चूमा।

यह बात बादशाह तक गई। बादशाह ने देखा तो वह भी बोला, यह तो ईश्वर/अल्लाह की ही जूती है। उसने भी उसे खूब चूमा, सिर पर रखा और बोला इसे पूजास्थल/इबादतगाह में ही संभाल कर अच्छे स्थान पर रख दो!

उधर, छुट्टी समाप्त होते ही मंत्री उतरा हुआ मुंह लेकर बादशाह के आगे खड़ा हो गया। बादशाह ने मंत्री से पूछा कि क्या हो गया? तो मंत्री ने कहा, हुजूर, हमारे यहां चोरी हो गई।

बादशाह बोला, क्या चोरी हो गया?

मंत्री ने उत्तर दिया, हमारे परदादा की जूती थी, चोर एक जूती उठा ले गया। एक बची है….!

बादशाह चौंका, ‘क्या एक जूती तुम्हारे पास ही है?’

मंत्री ने कहा, जी वह मेरे पास ही है। उसने वह जूती बादशाह को दिखाई। बादशाह का माथा ठनका और उसने पूजा/इबादत स्थल से दूसरी जूती मंगाई और बोला या ईश्वर/अल्लाह मैंने तो सोचा कि यह जूती ईश्वर/अल्लाह की है। मैंने तो इसे चूम लिया था।

मंत्री ने तब कहा, हुजूर यही है ‘अंधविश्वास’। भेड़-चाल में चलते जाना। अंधविश्वास का मतलब है बिना अपना दिमाग लगाए, बिना सोचे समझे मान लेना।

झूठ बोले कौआ काटे, उप्र में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 100 मुस्लिम बहुल सीटों में से 75 पर जीत हासिल करके ये मिथक तोड़ दिया था कि एकमुश्त मुस्लिम वोट ही जीत दिलाता है।

यही नहीं, भाजपा 100 दलित बाहुल्य सीटों में से 84 जीत गई, जबकि दलित वोट बैंक मायावती की खेती मानी जाती है। यादव कभी मुलायम सिंह की साइकिल का साथ नहीं छोड़ सकता यह सियासी सोच भी धराशायी हो गई। यादव बहुल 60 सीटों में से 41 सीटें जीत भाजपा ने ये मिथक भी ध्वस्त कर दिया।

 

Jhuth bole kaua kaate : अंधविश्वास पर वार, योगी (CM Yogi Adityanath) करेंगे बेड़ा पार?

 

बोले तो, जब कमलनाथ मुख्यमंत्री घोषित हुए तो मध्यप्रदेश की राजनीति का 38 साल पुराना मिथक टूटा था। बुदनी विधानसभा के बारे में मिथक था कि जिस पार्टी का उम्मीदवार बुदनी विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करता है, मध्यप्रदेश में उसी पार्टी की सरकार बनती है।

1980 से लेकर 2013 तक आठ बार बुदनी का यह मिथक सीएम की कुर्सी को लेकर दोहराया जाता रहा। लेकिन 2018 में मिथक टूटा और भाजपा के शिवराज सिंह चौहान ने बुदनी विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार अरुण यादव को हराया। प्रदेश में सरकार बनी कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की।

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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योगी मिथकों-अंधविश्वास के डर से बाहर निकल सके हैं तभी, मिथकीय स्थानों के भी प्रत्यक्ष दौरों को अंजाम दे पा रहे और अपनी कार्य-योजनाओं को धरातल पर उतार पा रहे। देखना है कि मिथकों-अंधविश्वास के खतरों को धता बताते आ रहे सीएम योगी आदित्यनाथ क्या 2022 में अपनी कुर्सी बरकरार रख पाएंगे?

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रामेन्द्र सिन्हा
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