यात्रा, यात्री और सियासत के रंग

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यात्रा, यात्री और सियासत के रंग

‘ भारत जोड़ो यात्रा ‘से भारत जुड़ रहा है या नहीं ये जानने के लिए किसी ने अभी तक कोई मीटर बनाया नहीं है। बिना मीटर वाली ये यात्रा अब उन लोगों के लिए मुसीबत बनती जा रही है जो भारत में रहकर भी भारत में नहीं रहते। ये वे लोग हैं जिनकी अपनी दुनिया होती है।

हाल ही में भारत जोड़ो यात्रा में विभिन्न क्षेत्रों की शीर्ष हस्तियों ने भागीदारी कर उन लोगों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है जो सियासत से दूर रहकर अपने काम से काम रखते हैं। ऐसे लोगों में सबसे ज्यादा परेशान किया जा रहा है अमिताभ बच्चन को। अमोल पालेकर के इस यात्रा में शामिल होने के बाद लोग अमिताभ बच्चन की खामोशी पर हैरान हैं।

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सब जानते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा की परिकल्पना कांग्रेस की है, हालांकि कांग्रेस इस यात्रा को अराजनीतिक बताते हुए नहीं थकती। आजादी के 75 साल बाद ये पहली यात्रा है जिसमें भागीदारी करने वाले कांग्रेसियों के अलावा गैर राजनीतिक यात्रा लोग भी शामिल होकर खुद को गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। खिलाड़ी, अभिनेता, कलाकार, समाजसेवी सब इस यात्रा का हिस्सा बन चुके हैं,या बन रहे हैं।

यकीन मानिए हम और हमारी पीढ़ी के तमाम लोग जो आजादी के आसपास पैदा हुए वे इस बात का अफसोस करते हैं कि काश! वे कुछ समय पहले पैदा हो जाते तो कम से कम महात्मा गांधी की किसी यात्रा में शामिल हो सकते थे। ऐसे लोगों के लिए ये भारत जोड़ो यात्रा एक अवसर है। वे इस यात्रा के बहाने भारत को समझ और जान सकते हैं, भले राजनीति से उनका कोई ताल्लुक हो या न हो।

आजादी के बाद भारत जोड़ो यात्रा से पहले भी अनेक यात्राएं निकाली गई लेकिन उनका रास्ता और मकसद बहुत सीमित था। यहां तक कि देश में आपातकाल के बाद भी ऐसी कोई यात्रा नहीं निकाली गई। किसी को न सूझा और न किसी ने इतना जोखिम उठाने का हौसला दिखाया। 3500 किमी पैदल चलकर जनता से संवाद करना आसान काम नहीं है।

अमिताभ बच्चन और उन जैसे तमाम लोग यदि भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होते तो यात्रा का नहीं यात्री का मान बढता।वे यात्रा से अपने आपको अलग रख रहे हैं, ये उनका अपना फैसला है। अमिताभ को यात्रा में शामिल होने के लिए विवश नहीं किया जा सकता।जो लोग अमिताभ बच्चन से यात्रा में शामिल होने की तवक्को कर रहे हैं,मै उनके साथ नहीं हूं। हां यदि मुझे मौका मिलता तो मैं जरूर इस तरह की यात्रा में शामिल होता।

भारत जोड़ो यात्रा से आतंकित लोग इस यात्रा में शामिल लोगों को आतंकवादी भले मानते और कहते हों,पर हकीकत ये है नहीं।मै तो कहता हूं कि यदि हमारे प्रधानमंत्री जी भी इस यात्रा को अपना आशीर्वाद देते और ‘ डबल इंजन ‘ की तमाम सरकारों को भी इस यात्रा को तवज्जो देने के लिए कहते तो शायद उनका भी कद और बढ़ गया होता, लेकिन ऐसा न होना था और न हुआ।

इस यात्रा से देश में जनता और जनप्रतिनिधियों के बीच संवाद का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। अन्यथा सत्तारूढ़ होने से पहले जो लोग जनता से संवाद करने के लिए चाय की केतली हाथ में लिए नुक्कड़ों पर खड़े रहते थे, वे अब जनता का सामना करने के बजाय मन की बात भी बेमन से टीवी और रेडियो के जरिए संवाद करने लगे हैं।

भारत जोड़ो यात्रा पर देश के अर्बन नक्सलियों (बुद्धजीवियों) ने बहुत कुछ दांव पर लगा रखा है। कुछ खुलकर यात्रा के साथ हैं और कुछ खामोशी के साथ। ऐसे लोगों में बहुत से अमिताभ बच्चन जैसे कम साहसी लोग भी हैं।