भाजपा के ‘गांधी’ का ‘गांधीवाद’

1646
Varun Gandhi

जाने से काँटा निकालना बहुत आसान नहीं होता. भाजपा ने वर्षों पहले कांटे से काँटा निकालने की आजमाई हुई तरकीब इस्तेमाल करते हुए श्रीमती मेनका गांधी को अपनी पार्टी में शामिल किया था, लेकिन वे भाजपा के लिए लोकसभा की एक सीट जिताने के अलावा दुसरे किसी काम में नहीं आयीं. वे न तो श्रीमती सोनिया गांधी की आंधी में टिक पायीं और न ही राहुल, प्रियंका की बढ़त को रोक सकीं. अब भाजपा के दूसरे गांधी, वरुण भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं. उन्होंने आंदोलनरत किसानों की मांगों के सिलसिले में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री को एक चिठ्ठी लिख दी है.

इतिहास बताता है कि गांधी कांग्रेस के अलावा किसी दूसरे दल को फैले ही नहीं. महात्मा गांधी से लेकर आज के गांधी भी कांग्रेस ही सम्हाल पा रही है. भाजपा के गांधी कभी भी कांग्रेस के गांधियों की भाषा बोलने लगते हैं. भाजपा में गांधी की कलम लगा तो दी गयी लेकिन उसे पनपने किसी ने नहीं दिया. मेनका गांधी मंत्री बनतीं रहीं लेकिन वरुण गांधी सांसद बनकर ही प्रौढ़ हुए जा रहे हैं. भाजपा इन मां-बेटे को भाजपा का गांधी बनाकर स्थापित नहीं कर पाए. मुमकिन है कि  भाजपा में ये सब किसी योजना के तहत किया गया हो, लेकिन भाजपा के गांधी अभी भी कांग्रेस के गांधी खानदान से जोड़कर पहचाने जाते हैं.

श्रीमती मेनका गांधी सत्रह साल पहले भाजपा में शामिल हुईं थीं और तब से अब तक लगातार चार मर्तबा भाजपा प्रत्याशी के रूप में लोकसभा का चुनाव लड़ और जीत चुकी हैं. भाजपा ने उन्हें मंत्री भी बनाया लेकिन पार्टी का नेता आज तक नहीं बना पाई जबकि उनके पास लोकसभा के 10 चुनाव लड़ने और मात्र 2 चुनाव जीतने का अनुभव भी है. मेनका के इकलौते बेटे वरुण गांधी को भी भाजपा में शामिल हुए आज 17 साल हो रहे हैं. वे भाजपा की ही सांसद हैं लेकिन उनकी भी पहचान अब तक भाजपा के युवा नेता के रूप में नहीं बन पायी, जबकि उनके बाद भाजपा में आये पार्टी नेताओं के अनेक पुत्र शीर्ष पर हैं.

मजे की बात ये है कि श्रीमती मेनका गांधी और वरुण गांधी कभी भी संघदक्ष भाजपा नेताओं की तरह स्वीकार नहीं किये जाते. जबकि 2004 में वरुण गांधी ने प्राणपन से भाजपा के लिए 40 लोकसभा सीटों पर प्रचार किया था, लेकिन मां-बेटे पहले दिन से ही भाजपा में संदिग्ध हैं. वे दोनों बीच-बीच में ऐसे विवाद खड़े कर देते हैं की भाजपा कांटे से काँटा निकालने का असली काम भूल ही जाती है।

वरुण गांधी भाजपा की दम पर नहीं बल्कि अपनी लोकप्रियता और गांधी होने की वजह से जीतते आये हैं. वे एक बेहतरीन सांसद, वक्ता और लेखक भी हैं. लेकिन जब भी गांधी परिवार के बारे में कोई बोलता है वे या तो मौन हो जाते हैं या फिर उनका बचाव करते हैं. वरुण ने अपनी माँ मेनका गांधी की तरह गांधी परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ चुनाव लड़ने की गलती नहीं की हालांकि भाजपा के कुछ नेताओं ने कई बार ऐसी कोशिश की. वे लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर अन्ना हजारे के समर्थक भी रहे और इस बारे में एक विधेयक भी ले आये थे. अब किसानों के मुद्दे पर भी वरुण की ओर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखी गयी चिठ्ठी उनके गांधी तत्व को उजागर कर रही है.

भाजपा में महामंत्री जैसे पद पर रह चुके वरुण की चिट्ठी के पीछे उनके उदार विचार हैं या खुद भाजपा की कोई छिपी हुई रणनीति, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि जिस तरह वरुण गांधी किसी भी समय कोई भी रुख अख्तियार कर लेते हैं ठीक उसी तरह भाजपा भी छिपी रणनीति बनाकर काम कर उठती है. मिसाल के तौर पर एक लम्बे मौन के बाद भाजपा और संघ का किसान संगठन किसान आंदोलन का समर्थक बनकर सामने आ गया है.

वरुण गांधी ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि गन्ने की कीमतों में अच्छी वृद्धि की जाए, गेहूं और धान की फसल पर बोनस दिया जाए, पीएम किसान योजना में मिलने वाली राशि को दोगुना कर दिया जाए और डीजल पर सब्सिडी दी जाए। वरुण गांधी का यह खत किसानों को जरूर खुश कर सकता है, लेकिन योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। वरुण के किसान आंदोलन के अप्रत्यक्ष समर्थन से विपक्ष राहत की सांस तो ले सकता है लेकिन इस चिठ्ठी का लाभ नहीं ले सकता, क्योंकि वरुण गांधी और उनकी माँ ने आजतक इस मसले से भाजपा की केन्द्र या राज्य सरकार के बारे में कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है.

मेनका गाँधी और वरुण गांधी भाजपा के लिए धरोहर बनने के बजाय एक अघोषित आफत बन गए हैं, क्योंकि इन दोनों की चाल, चरित्र और चेहरे से आज दो दशक बाद भी गांधी परिवार की ही झलक नजर आती है. भाजपा इन्हें न पार्टी से अलग कर सकती है और न पार्टी के लिए खुलकर इस्तेमाल ही कर सकती है. वरुण ने यूपी में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के लिए चुनौती बनी कांग्रेस की श्रीमती प्रियंका वाड्रा के खिलाफ कभी अपने गांधियों का इस्तेमाल नहीं किया. भाजपा अपने गांधियों का इस्तेमाल राहुल गांधी के खिलाफ भी नहीं कर पा रही है. शायद कर भी नहीं पायेगी, क्योंकि भाजपा के गांधी कांग्रेस के गांधियों के खिलाफ खुलकर खड़े ही नहीं होंगे.

आने वाले दिनों में भाजपा के पास एक और मौक़ा है की वो कांटे से काँटा निकालने के पुराने तरीके का प्रियंका और राहुल के खिलाफ इस्तेमाल करते हुए मेनका गांधी और वरुण गांधी का इस्तेमाल करे. भाजपा यदि ऐसा करने में कामयाब न हुई तो मानकर चलिए की अब भाजपा के गांधी उमा भारती की तरह किनारे भी कर दिए जायेंगे. भाजपा आखिर गांधियों के मुकाबले के लिए अतिथि गांधियों के शक्ति प्रदर्शन की प्रतीक्षा करेगी? क्योंकि भाजपा के गांधियों का गांधीवाद जब तब हिलोरें मारता ही रहता है.