टिप्पणी: इंदौर में 4 जून को कोई चुनाव नहीं हारेगा, न बीजेपी न कांग्रेस!  

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टिप्पणी: इंदौर में 4 जून को कोई चुनाव नहीं हारेगा, न बीजेपी न कांग्रेस!  

देश में मध्यप्रदेश की इंदौर संसदीय सीट का नतीजा क्या होगा, इससे कोई अनजान नहीं है। यही वजह है कि यहां न तो कोई उत्सुकता है और न इंतजार। जब पूरे देश में चुनावी चर्चा चरम पर रही, इंदौर में राजनीतिक सन्नाटा रहा। इसलिए कि इस सीट पर कोई मुकाबला ही नहीं है। इंदौर से कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार ने न सिर्फ चुनाव से पलायन किया, बल्कि अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता भी बदल ली। इसके बावजूद उम्मीद के विपरीत यहां मतदान संतोषजनक हुआ। अब उत्सुकता दो आंकड़ों को लेकर बची है। पहली तो यह कि बीजेपी उम्मीदवार अपने निकटतम उम्मीदवार से कितने अंतर से चुनाव जीतता है। दूसरी उत्सुकता ‘नोटा’ के खाते में जाने वाले वोटों को लेकर है। कयास लगाए जा रहे हैं कि दोनों ही मामलों में इंदौर रिकॉर्ड बनाएगा। क्योंकि, रिकॉर्ड बनाना और कुछ नया करना इंदौर वासियों आदत रही है।

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इंदौर एक संभावनाशील शहर है, जो हमेशा कुछ नया करने की कोशिश में रहता है। स्वच्छता में लगातार सात बार देश में अव्वल रहने के बाद शुद्ध हवा के मामले में भी शहर ने रिकॉर्ड बनाया। यहां की आबोहवा को जीवन के लिए बेहतर माना गया और यहां की हवा की शुद्धता उत्कृष्ट रही। देश के स्मार्ट शहरों में भी इंदौर का नाम चमका। यहां स्मार्ट शहर की दिशा में जो काम हुआ, उसे देश में सराहा गया। जहां तक खानपान की बात है, तो इंदौर से ज्यादा बेहतर खानपान देश के शायद किसी और शहर में होगा। ये शहर भौगोलिक रूप से देश के मध्य में स्थित है, इसलिए यहां चारों दिशाओं की संस्कृति और खानपान का असर है। यहां ठेठ मालवी खाना भी पसंद किया जाता है और राजस्थानी और पंजाबी भी।

ये ऐसा शहर है जो सबको आत्मसात कर लेता है। इसलिए यहां इंदौर के मूल निवासियों के अलावा राजस्थान के लोग भी मिलेंगे, महाराष्ट्र के भी उत्तर प्रदेश के साथ पंजाब के भी। दक्षिण भारत के लोगों की भी बहुतायत है। बिहारियों की भी यहां बड़ी तादाद है। अब यह शहर चुनाव के इतिहास में भी देश में अपना नाम बनाने जा रहा है। भले ही यह एक संभावना हो, लेकिन जो दिखाई दे रहा और समझा जा रहा, उससे इंकार नहीं किया जा सकता। मुद्दा यह है कि इस बार इंदौर ‘नोटा’ में भी रिकॉर्ड बनाएगा। बीजेपी का उम्मीदवार रिकार्ड मतों से चुनाव जीतेगा, इसलिए कि यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार ने एन वक्त पर अपना नाम वापस ले लिया था। ऐसी स्थिति में बीजेपी के उम्मीदवार के सामने कोई ताकतवर प्रतिद्वंदी नहीं है। जो 16 निर्दलीय मैदान में हैं, उनमें उनका किसी का ऐसा वजूद नहीं कि कोई चमत्कार हो सके।

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यहां 25 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। इनमें से करीब साढे 15 लाख ने वोट डाले। यानी मतदान करीब 61% से ज्यादा हुआ। तय है कि इसमें ज्यादातर वोट उस बीजेपी के उम्मीदवार के खाते में जाएंगे, जिसके सामने कोई मुकाबले में ही नहीं है। ऐसी स्थिति में कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार के मैदान छोड़ने के बाद किसी निर्दलीय उम्मीदवार को समर्थन नहीं दिया। उसने कांग्रेस समर्थकों से अपील की, कि वे ईवीएम में ‘नोटा’ का बटन दबाकर अपना विरोध दर्ज करें। इस वजह से है उम्मीद की जा रही है कि ‘नोटा’ में सर्वाधिक वोट का देश में दर्ज पुराना रिकॉर्ड टूटेगा, जो अभी तक बिहार की गोपालगंज संसदीय सीट के नाम है। वहां ‘नोटा’ के खाते में 61,550 वोट पड़े थे। ऐसा अनुमान है कि इस बार इंदौर इस आंकड़े से बहुत आगे निकल सकता है। क्योंकि, कांग्रेस ने ‘नोटा’ के बटन को अपने उम्मीदवार की तरह समझा और मतदाताओं को भी समझाया। अब इसका फायदा रिकॉर्ड बनने में मिलेगा।

जहां तक 16 निर्दलीय उम्मीदवारों की बात है, तो उनमें से कोई भी इतना ताकतवर नहीं, जो बीजेपी उम्मीदवार का प्रतिद्वंद्वी माना जाए। ऐसे में पिछली बार जो बीजेपी उम्मीदवार साढ़े 5 लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीता था, संभावना है कि इस बार वह करीब दुगना होगा। इससे एक तरफ ईवीएम में ‘नोटा’ के बटन दबाने का रिकॉर्ड बनेगा, दूसरी तरफ बीजेपी उम्मीदवार की जीत का। इसलिए कहा जा सकता है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां नतीजे वाले दिन अपनी-अपनी पीठ थपथपाएंगे। कांग्रेस को इस बात की ख़ुशी होगी कि मतदाताओं ने ‘नोटा’ में बटन दबाकर उसका साथ दिया और देश में ‘नोटा’ का रिकॉर्ड बना। बीजेपी भी जीत की ख़ुशी मनाएगी। पर, उसके समर्थकों में ये कसक भी रहेगी कि वे ऐसा मुकाबला जीते, जिसमें कोई प्रतिद्वंदी ही नहीं था। सीधे शब्दों में कहा जाए तो इंदौर में बीजेपी भी जीतेगी और कांग्रेस भी।

इंदौर संसदीय क्षेत्र के चुनाव में इस बार जो हुआ, वो वास्तव में अजूबा ही कहा जाएगा। यहां जिस दिन नाम वापसी का दिन था, उसी दिन कांग्रेस के उम्मीदवार ने अपना नाम वापस लेकर कांग्रेस पार्टी को मुकाबले से बाहर कर दिया। उन्होंने न सिर्फ चुनाव मैदान छोड़ा, बल्कि उसी समय प्रतिद्वंदी पार्टी बीजेपी में शामिल हो गए। ये देश के चुनाव इतिहास में हुई अजीब घटना है। कई घंटों तक कांग्रेस की राजनीति में सन्नाटा छाया रहा। क्योंकि, नया फैसला करने का समय भी नहीं बचा था। मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस के हाथ से एक और सीट निकल गई। लेकिन, उसने कोई नया प्रयोग नहीं किया और बजाए किसी उम्मीदवार का समर्थन करने के एक तरह से समर्पण ही किया। लेकिन, मतदाताओं से यह आह्वान जरूर किया कि वे यदि इन हालातों को लोकतंत्र के लिए सही नहीं मानते. तो ईवीएम मशीन का सबसे आखिरी वाला ‘नोटा’ का बटन दबाएं। इससे देश के सामने यह संदेश जाएगा कि जो हुआ वो ठीक नहीं था। कांग्रेस की अपील कितना असर दिखाती है, ये तो नतीजे बताएंगे। लेकिन, देश के सामने इस लोकसभा सीट का चुनाव भी एक उदाहरण है।

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हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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