कन्फ्यूज भाजपा कार्यकर्ता और मुद्दे छीनती कांग्रेस…
कभी एक चुनाव के बाद दूसरा चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाली भाजपा इन दिनों कन्फ्यूज सी लगती है। इसे समझने के लिए वन डे और टी 20 क्रिकेट और एक सुपर हिट फिल्म का तराना खासा मौजू जान पड़ता है। भाजपा हाईकमान,सिलेक्टर,टीम मैनेजमेंट, कोच,कप्तान और खिलाड़ी सब के सब कन्फ्यूज दिख रहे हैं। एक मशहूर फिल्म आई थी थ्री इडियट्स। उसके एक गाने के बोल थे ‘ जब लाइफ हो आउट ऑफ कंट्रोल ,होंठो को करके गोल, सीटी बजा के बोल,आल इस वेल, मुर्गी न जाने अंडे का क्या होगा, लाइफ मिलेगी या तवे पे फ्राई होगा, कोई न जाने अपना फ्यूचर क्या होगा, कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है सॉल्यूशन का कुछ पता नही… ‘ बाकी गाने की लाइन जो इस पीड़ा से गुजरने वाले नेता- कार्यकर्ता हैं वे कोरस में गा कर गम गलत करते हुए पूरा कर सकते हैं। राजकुमार हिरानी निर्देशित इस फ़िल्म के गाने लिखें हैं स्वानन्द किरकिरे ने। इसके हीरो रेंचो बने आमिर खान। खान ने प्रसिद्ध साइंटिस्ट फुनसुख वांगडू का किरदार निभाया था। सुपर हिट थ्री इडियट्स तो सदा बहार हो गई लेकिन संगठन और चुनाव लड़ने के मामले में भाजपा का सदाबहार प्रबंधन शिखर से शून्य की तरफ फिसल रहा है।
फिसलन की बानगी देखिए। मप्र में विधानसभा चुनाव चार महीने बाद होने है लेकिन अभी तक चुनाव प्रबंधन समिति नही बनी है। एक एक दिन की कार्य समिति की बैठकें बिना राजनीतिक प्रस्ताव के सम्पन्न हो रही है। एक बेहद जिम्मेदार कार्यकर्ता ने अपनी पीड़ा एक वाक्य में कुछ इस तरह बयां की ‘ चुनाव सिर पे और कार्यकर्ता घर पे’… वे यहीं नही रुकते कहते हैं ‘ कुशाभाऊ ठाकरे और राजमाता विजया राजे सिंधिया और कार्यकर्ताओं के खून पसीने से बना प्रदेश भाजपा का ऑफिस जिसे मंदिर मानते थे उसे तोड़कर जिस मिट्टी के कण कण में भ्रष्टाचार और बेईमानी रची बसी हो, कभी आरटीओ ऑफिस रहे ऐसे स्थान पर भाजपा का अस्थाई दफ्तर चल रहा है …’ पैसा तो है पर पवित्रता पर प्रश्न है। जैसा आए धन और अन्न, वैसा होए मन, वाले हालात हैं। मिलने वाली विजय की बरकत में कमी ।
एक बाद दूसरे चुनाव की तैयारी करने वाली पार्टी कार्यकर्ताओं को चुनाव की तैयारी के ना तो निर्देश दे पा रही है और ना कोई रोड मैप बनाती दिख रही है प्रदेश स्तर पर ही तैयारियों को लेकर कंफ्यूजन है। चुनाव समिति, चुनाव प्रबंध समिति और चुनाव को देखते हुए नए सिरे से कोर ग्रुप और उनकी बैठकें,सब की प्रतीक्षा की जा रही है। नए- पुराने जानकार कह रहे है ऐसा सन्नाटा तो पहले शायद कभी नही रहा। सब पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव जीतना चाहते हैं। लेकिन कर्नाटक और हिमाचल में ऐसा नही हुआ। सभा में भीड़ तो सरकार के प्रबंधन से आ सकती है मगर वोट तो संगठन की संजीदगी, सक्रियता और कार्यकर्ताओं के मान व समर्पण से आएगा। कार्यकर्ता पूछते हैं आखिर सभाओं मे भीड़ आने के बाद भी चुनाव क्यों हारते जा रहे हैं ?
ऐसा लगता है पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को लगता है कि वन डे व री 20 मैच की तरह आखिरी ओवर्स और एमएस धोनी की तरह आखिरी गेंद पर छक्का मार में कर जीत जाएंगे। लेकिन हर दफा ऐसा नही होता। अभी तक तो प्रभारियों की फौज, मैनेजर, कोच -कप्तान कार्यकर्ता सब कन्फ्यूज लग रहे हैं।
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कांग्रेस चढ़ाव पर…
गुजरात विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद बैकफुट पर आई कांग्रेस ने खुद को सम्भाला। नई रणनीति बनाई और भाजपा को कर्नाटक में करप्शन को मुद्दा बना कर चित कर दिया। कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी के साथ दो ‘बच्चों’- राहुल और प्रियंका गांधी की पार्टी ने कर्नाटक में चीं बोले भाजपा के दिग्गजों को चिंता में डाल दिया है। 230 विधानसभा सीटों वाले मध्यप्रदेश में सबके अपने अपने गुणा भाग हैं। कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के जरिए सत्ता छीनने वाली भाजपा से हिसाब चुकता करने की तैयारी में है। कांग्रेस का दावा है कि अबकी बार 150 सीटे जीत कर सरकार बनाएगी। भाजपा का कहना पिछली बार की तरह अबकी बार दो सौ पार का है। हालांकि तब वह 109 सीट पर रुक गई थी। कांग्रेस 114 विधायकों के साथ बहुमत से एक कदम दूर सबसे बड़ी पार्टी बन कमलनाथ के नेतृत्व में सत्ता में आई थी। अब आगे मध्यप्रदेश में 2018 के बाद फिर तगड़ी पटखनी देने की कछुआ चाल रणनीति पर दिग्विजय-कमलनाथ की जोड़ी की मैदान में है। ये दोनों बुजुर्ग नेता प्रदेश में युवा तुर्को से भरी भाजपा की टीम को अभी तक तो नाकों चने चबवा रहे है। भाजपा लम्बे समय से शहरी इलाकों में मजबूत रही है। लेकिन पिछले नगरनिगम चुनावों में कांग्रेस के ये दोनों बुजुर्ग खलीफा 16 में से सात में धोबी पछाड़ लगा चुके हैं। कर्नाटक चुनाव की जीत ने मप्र कांग्रेस को विश्वास से भर दिया है।
कांग्रेस मप्र में बहुत संभल कर खमोशी के साथ काम कर रही है। कहावत है ज्यादा रसोइए खाना खराब कर देते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस के ‘किचन’ में अब दो ही दिग्विजयसिंह और कमलनाथ के हाथ मे कमान हैं। इसलिए रणनीति बनाने से लेकर टिकट तय करने तक में कोई ज्यादा हंगामा खड़ा होगा इसके आसार कम ही है। दिग्विजयसिंह ने पार्टी में संवाद-समन्वय का जिम्मा ले रखा है। वे कार्यकर्ताओं के गिले शिकवे दूर कर उन्हें संगठित कर सक्रिय करने में लगे हैं। ठीक वैसे ही जैसे कभी यह काम भाजपा में संगठन मंत्री किया करते थे। श्री सिंह उम्मीदवारी के लिहाज से मैदानी दावेदारों की लिस्ट भी तैयार कर रहे हैं।
ग्राउंड जीरो पर इससे कांग्रेस के पक्ष में माहौल भी बनता दिख रहा है। इस बढ़त -चढ़त के बीच भाजपा के कई असन्तुष्ट भी दिग्विजय सिंह के सम्पर्क में हैं। अनेक बागियों से सिंह-कमलनाथ का मेलजोल बना हुआ है जो इशारा मिलते ही बगावत का झंडा उठा लेंगे। वरिष्ठ भाजपा नेता दीपक जोशी के बाद पूर्व विधायक ध्रुव प्रताप का कांग्रेस में जाना इस तरह के अनुमानों की पुष्टि भी करता है। आयाराम- गयाराम के रूप में दोनो ही दलों में अनेक नेता – कार्यकर्ता कतार में हैं। राजनीति के आखिरी पड़ाव में चल रहे जिन विधायकों और दावेदारों की समझाया बुझाया नही गया तो वे उम्मीदवारी खारिज होगी दल बदल कर सकते हैं। मनाने के मामले में मजबूत रही भाजपा 2018 से दिन ब दिन ज्यादा कमजोर होती जा रही है। कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व विधायक ध्रुवप्रताप ने तो सरकार- संगठन की तुलना धतराष्ट्र और दुर्योधन से कर डाली है।
यह बात बताती है कि अच्छे कार्यकर्ता कांच के बर्तन की भांति हैं मिस हैंडलिंग हुई तो टूट जाएंगे। ‘हेंडिल विथ केयर’ के मामले में पांच प्रभारी भी संगठन की जो फौज है उस पर भारी पड़ रहे हैं।
ऐसे अनेक निर्णय और घटनाएं हैं जो भाजपा संगठन – सरकार को कमजोर कर रहे हैं। सरकार में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और संगठन में उनकी अनदेखी हालात को ‘करेला और नीम चढ़ा’ जैसी बना रही है।
कांग्रेस में भी उपेक्षा और अनदेखी का माहौल था लेकिन इस सिलसिले को दिग्विजयसिंह ने रोका है। चुनावी साल में पीसीसी चीफ कमलनाथ भी मौका और दस्तूर देखते हुए खुद को खासे बदल रहे हैं। इन कारणो से भी कांग्रेस चढ़ाव पर दिख रही है।
कमलनाथ का साफ्ट हिंदुत्व…
पीसीसी चीफ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सूबे की सियासत में हनुमान भक्ति के साथ सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते भाजपा के हिंदूवाद की काट खोज रहे हैं। इससे भाजपा और उसकी सरकार से नाराज वोटर को कांग्रेस के पाले में लाने का रास्ता सुगम हो रहा है। नाथ हनुमान चालीसा और सुंदरकांड के पाठ करवा कर धार्मिक मतदाताओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। गौ सेवा के लिए ग्राम पंचायतों गौशाला खोलने की बात कर वे गौ भक्तों तक कांग्रेस की पकड़ बनाने का काम कर रहे हैं। अब तक गौभक्तों पर भाजपा का ही प्रभाव था। लेकिन लव जिहाद और धर्मांतरण के साथ आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले संगठनों को लेकर कांग्रेस की सॉफ्ट एक्ट उसे भाजपा की तुलना में कमजोर साबित करता है। धारा 370 को हटाने से लेकर राम मंदिर बनाने के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड (यूसीसी)पर कांग्रेस का विरोध बहुसंख्यक मतदाताओं में भाजपा को मजबूत बनाता है। अभी इस मुद्दे पर कांग्रेस को जल्द कोई सर्वमान्य रणनीति बनाने की जरूरत पड़ेगी ताकि वह बहुसंख्यक वोटर को भाजपा के पाले में जाने से रोक सके।