कांग्रेस का चुनावी रोड मेप

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कांग्रेस का चुनावी रोड मेप

कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन के जरिये आने वाले आम चुनाव के लिए अपने चुनावी ‘ रोड मेप ‘ को सार्वजनिक कर दिया है .अधिवेशन में पारित विभिन्न प्रस्तावों को आप कांग्रेस के आगामी चुनाव घोषणा पात्र की प्रस्तावना भी मान सकते हैं .इस अधिवेशन से ये भी संकेत मिले कि कांग्रेस में भले ही श्रीमती सोनिया गांधी ने बुझे स्वर में अपनी पारी समाप्ति की घोषणा का दी हो लेकिन कांग्रेस आज भी राहुल गांधी के इर्दगिर्द ही घूम रही है .

कांग्रेस को श्रीमती सोनिया गांधी ने कोई कोई एक चौथाई सदी तक चलाया .वे कांग्रेस को सत्ता में भी लाईं और उनके देखते-देखते कांग्रेस चुनावी राजनीति में लगातार हासिये पर भी गयी ,लेकिन अप्रासंगिक नहीं हुई .अब कांग्रेस का दारोमदार एक बार फिर राहुल गांधी पर है. कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी राहुल के मार्गदर्शन के आग्रही हैं .कांग्रेस ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में साफ़ कहा है की अब कांग्रेस ‘ नए खून ‘ को तवज्जो देगी .

आज की राजनीति में कांग्रेस अंतर्विरोधों का दूसरा नाम है. कांग्रेस लगातार कमजोर हुई है लेकिन उसका परिसमापन नहीं हुआ जैसा की भाजपा की कोशिश थी .कांग्रेस तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद प्रमुख विपक्षी दल था और है .तमाम राजनीतिक दल विपक्ष में है और कांग्रेस की तरह भाजपा के खिलाफ लड़ाई की अगुवाई करना चाहते हैं किन्तु देश को कांग्रेस के अलावा कोई और मंजूर नहीं .कांग्रेस ने भी इस हकीकत को समझा है और कहा है कि भविष्य में कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शक्तियों को एकजुट कर भाजपा के खिलाफ न केवल लड़ाई लड़ेगी बल्कि देश को फिर महात्मा गांधी की बताये रास्ते पर लाने की कोशिश करेगी .

मै अक्सर कहता आया हूँ कि कांग्रेस राजनीति का ‘फीनिक्स’ है जो मर,मर कर भी पुनर्जीवित होने की क्षमता रखता है .भारत में कांग्रेस के बिना राजनीति की कल्पना नहीं की जा सकती .भाजपा देश में भले पच्चीस साल शासन कर ले किन्तु कांग्रेस को जनता के दिलो-दिमाग से बाहर नहीं कर सकती .कांग्रेस ही भाजपा का पहला और आखरी विकल्प है .भाजपा भी मन मारकर कांग्रेस को ही अपना मुख्य प्रतिद्वंदी मानती है और लगातार कांग्रेस नेतृत्व पर प्रहार भी करती है .भाजपा के निशाने पर अब कांग्रेस के सहयोगी और शुभचिंतक दल भी आ गए हैं .हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पटना में अपने पुराने दोस्त बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर लेकर इस बात को प्रमाणित भी कर दिया .

हाल की भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस में एक नयी शक्ति का संचार हुआ है ,इसलिए कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन में इस यात्रा की निरनतरता को लेकर भी बात हुई है,और बहुत मुमकिन है कि कांग्रेस ‘ भारत जोड़ो यात्रा ‘ को निरंतरता देकर शेष भारत को भी इससे जोड़ने की कोशिश करे .भाजपा ने जिस तरह 2014 में जनता को ‘ अच्छे दिनों ‘ का ख्वाब दिखाकर लूटा था उसी तरह इस बार कांग्रेस ने इस बार ‘ लोकतंत्र और स्वतंत्रता के नवीनीकरण ‘ का नारा दिया है .
कांग्रेस के साथ अब आम जनता भी ये महसूस करने लगी है कि आज भारत में लोकतंत्र और स्वतंत्रता उस रूप में नहीं है जैसी पहले थी.बीते साढ़े आठ साल में लोकतंत्र और स्वतंत्रता के मायने बदल गए हैं. लोकतांत्रिक तना-बना शिथिल हुआ है और स्वतंत्रता को लेकर तमाम खतरे नजर आने लगे हैं. स्वत्नत्रता में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल है .भारत की आजादी को 75 साल हो गए हैं इसलिए इसके परिमार्जन की बात करना सामयिक भी है आवश्यक भी .कांग्रेस आम आदमी के मन में यदि इस ध्येय वाक्य को बैठा सके तो मुमकिन है कि आने वाले दिनों में देश का परिदृश्य बदले .

एक समय देश पर एकछत्र शासन करने वाली कांग्रेस आज देश के कुल जमा तीन राज्यों में सत्तारूढ़ है.भाजपा कांग्ग्रेस कि मुख्यप्रतिद्वन्दी है .भाजपा चुनाव से ,छल-बल से हिकमत अमली से कांग्रेस की सरकार या तो बनने नहीं दे रही या फिर बनी हुई सरकारों को गिरा देती है .जिस छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा है ,वहां की कांग्रेस सरकार को भाजपा गिराने में नाकाम रही क्योंकि भाजपा को अब तक छत्तीसगढ़ में कोई बिभीषण नहीं मिल पाया .कांग्रेस जैसे-तैसे राजस्थान में भी भाजपा का दांव उलटा करने में कामयाब रहे ,लेकिन क्या अब कांग्रेस 2024 में दिल्ली की सल्तनत हासिल करने की स्थिति में आ गयी है ?

राजनीति में नीतियां और नेतृत्व के साथ ही आक्रामकता भी एक महत्वपूर्ण औजार होता है. कांग्रेस के पास नीतियां भी हैं,नेतृत्व भी है किन्तु आक्रामकता की कमी है. कांग्रेस धीरे-धीरे अपनी आक्रमण क्षमता बढ़ा रही है. पहली बार कांग्रेस संसद से सड़क तक आक्रामक होती दिखाई दी है.छत्तीसगढ़ से मंथन-चिंतन कर कांग्रेस कितनी आक्रामक होती है ,ये कहना अभी कठिन है ,लेकिन कांग्रेस की कोशिशें उम्मीद बढ़ातीं हैं .कोई माने या न माने आज दुनिया और देश कांग्रेस की और आशा भारी नजरों से देख रहा है. इसीलिए शायद बार-बार कांग्रेस कमर कसती दिखाई देती है .कांग्रेस कि यही कसावट भाजपा कि बौखलाहट में आप महसूस कर सकते हैं .

सबसे अच्छी बात ये है कि कांग्रेस ने अपना रास्ता नहीं छोड़ा है. कांग्रेस आज भी महात्मा गाँधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार बल्लभ भाई पटेल के रास्ते पर चलने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस के आर्थिक राजनीतिक प्रस्तावों में भी इसकी झलक साफ़ दिखाई दे रही है. कांग्रेस ने सभी संवैधानिक संस्थाओं को दोबारा से शक्तिशाली बनाने ,चुनाव क़ानून और पुलिस सुधार कोई बात भी की है. कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर को उसका पुराना वैभव लौटने और पूर्वोत्तर राज्यों की विभूति बहाल करने की बात कही है .काश कांग्रेस का संदेश जहां पहुंचना है वहां तक पहुँच जाए .

भाजपा ने अपने कार्यकाल में देश को मजबूत बांया है या कमजोर किया है इसे दोहराने कि जरूरत नहीं है, जनता सब कुछ जानती है .जनता जानती है कि आज देश में मुंह खोलने की क्या सजा है और भक्तिभाव दिखने का क्या सुफल है ? जनता को पता है कि परदे के पीछे आखिर हो क्या रहा है. जनता ने देश के एक बड़े हिस्से में भारत जोड़ो यात्रा भी देखी है और मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में भाजपा की विकास यात्रा भी देखी है .इसलिए जनता को समझाने में बहुत जयादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है .जरूरत इस बात की है कि लोकतंत्र का अपहरण न होने पाए .इस अपराध में पूरा सिस्टम शामिल है .

आज की कांग्रेस सोनिया गांधी की कांग्रेस नहीं है.आज की कांग्रेस खड़गे और राहुल गांधी की कांग्रेस है .देश की जनता भाजपा के मुकाबले इस नयी कांग्रेस को अपना निगेबान बनाती है या नहीं ,ये बहुत जल्दी पता लगने वाला है,क्योंकि देश में आम चुनावों से पहले 9 राज्यों में विधानसभा का चुनाव होने वाला है.विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की संगठन की अग्निपरीक्षा होना है. कांग्रेस बीते एक-डेढ़ दशक में इसी मुद्दे पर मात खाती रही है .कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भाजपा कार्यकर्ताओं की तरह अभी भी आग नहीं भरी जा सकी है .यदि कांग्रेस के कार्यकर्ता बूथ स्तर पर भाजपा से मोर्चा लेने कि स्थित में आते हैं तो तय मानिये कि बदलाव होकर रहेगा .श्रीमती सोनिया गांधी के बिना नए चुनावों के लिए तैयारियों में लगी कांग्रेस क्या 2003 के आम चुनावों जैसा करिश्मा कर पायेगा ? ये देखना दिलचस्प होगा .